Mera Rakshak - 6 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 6

Featured Books
Categories
Share

मेरा रक्षक - भाग 6

 6. कमज़ोरी 

 मीरा ने रोज़ी को फोन लगाया।

"मीरा!!!!!!! तू कहां है? तू ठीक तो है न। मैंने तुझे कितने call किए तू कहां है।"

"मैं एकदम ठीक हूं रोज़ी। तू कहां है और कैसी है।"

रोज़ी ने बताया गोली चलने की वजह से एकदम अफरा तफरी मच गई थी। रोज़ी मीरा को ढूंढने उसी जगह  गई थी जहां उसने मीरा को छोड़ा था। मीरा उस जगह नहीं थी। एक आदमी आया काले लिबास में, उसने कहा वो रणविजय का आदमी है और मीरा रणविजय के साथ ही है एकदम सुरक्षित। रोज़ी को घर छोड़ने की जिम्मेदारी उस आदमी की है ये कहकर उस आदमी ने रोज़ी को उसके घर सुरक्षित छोड़ दिया।

रोज़ी की बात सुनकर मीरा को तसल्ली हुई। 

"मीरा तू अभी कहां है"

"वो...... रोज़ी...... बात ये है कि मैं अभी रणविजय सिंह राठौड़ के घर पर हूं।" मीरा ने सारी बात रोज़ी को बताई। रोज़ी बहुत चिंता में थी कि जिस तरह का इंसान रणविजय है कहीं मीरा को कोई चोट न पहुंचा दे।

"रोज़ी तू चिंता मत कर मैं बस थोड़ी देर में घर ही जा रही हूं, फिर मिलती हूं तुझसे।" जैसे ही मीरा ने रोज़ी से बात करके फोन काटा, रणविजय कमरे में आया। रणविजय को देखकर  ms.rosy ( रणविजय की caretaker) कमरे से बाहर चली गईं।

"तुम ठीक हो"  रणविजय ने मीरा से पूछा।
 
"हां, और आप?  मीरा ने बिना रणविजय को देखे नीची नजर करके पूछा।
रणविजय से पहली बार किसी ने पूछा कि वो ठीक है या नहीं। रणविजय का दिल मीरा के इस सवाल से जोर से धड़कने लगा। उसने खुद को संभालते हुए कहा

"ठीक हूं मैं। "  

"सर, मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"

"रणविजय नाम है मेरा, तुम रणविजय बोल सकती हो।"

मीरा ने नजर उठाकर रणविजय की तरफ देखा, दोनों की नजरें मिली और उन कुछ ही सेकेंडों में वक्त ठहर सा गया। 

ठक-ठक

मीरा और रणविजय की आँखें एक दूसरे से हटीं। 

"कौन?" रणविजय ने पूछा।

"बॉस, it's urgent."

"मीरा तुम आराम करो"

ये कहकर रणविजय चला गया। मीरा का फोन बजा......

"मीरा कल 11 बजे सुबह शिवा का ऑपरेशन करना है।"

शिवा!!!!!!! मीरा शिवा को कैसे भूल सकती है। मीरा सारा time शिवा को अकेला छोड़कर यहां है । मीरा को जाना होगा । मीरा नीचे जाती है।

इधर रणविजय कमरे से बाहर आता है तो जॉन उसे बताता है कि बाहर वो आया है जिसने club में रणविजय पर attack किया था। रणविजय का खून खौल जाता है। अगर उस वक्त मीरा साथ न होती तो अबतक रणविजय उस आदमी को मार चुका होता। 

"लगता है तुम्हें मरने से डर नहीं लगता इसलिए तुम यहां, अपनी मौत के पास आ गए हो "रूद्र प्रताप सिंह " 

"रणविजय, रणविजय, रणविजय....... मैं यहां तुम्हारे लिए नहीं आया। मैं तो यहां उस मेहमान से मिलने आया हूं जिसको बचाने के लिए रणविजय ने अपने दुश्मन को जिंदा छोड़ दिया। लगता है ये मेहमान काफी जरूरी है तुम्हारे लिए। मिलाओगे नहीं हमें अपने मेहमान से।"

"रूद्र, अभी शायद तेरी ज़िंदगी के कुछ दिन और है जीने के लिए इसलिए तू अभी तक जिंदा है। चला जा यहां से और वापस कभी मुड़कर यहां मत आना।"

"तो ये सच बात है, की रणविजय का नया शौक इसी घर में है।"

"रूद्र!!!!!!!"  ये कहकर रणविजय ने gun निकालकर  रूद्र की छाती पर रख दी। 

"मैंने बोला न अभी जबतक में तुझे जीने की इजाज़त दे रहा जी ले। क्योंकि जिस दिन मैंने सोच लिया तुझे मारना है उस दिन तुझे कोई नहीं बचा सकता।" "जॉन बाहर निकाल कर फेंको इसे"

"रणविजय आज बहुत कमज़ोर दिख रहा है तू , तेरी इस कमज़ोरी का ध्यान रखना कही किसी गलत हाथों में न आ जाए।" ये कहकर रूद्र हंसते हुए बाहर चला गया।

वो बाहर जा ही रहा था उसे मीरा मिल गई। मीरा को देखते ही वो मीरा के चेहरे में खो गया। खुद को संभालते हुए.....