ishq aur Irade - 2 in Hindi Motivational Stories by Aarti Garval books and stories PDF | इश्क और इरादे - 2

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इश्क और इरादे - 2

सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर झाँक रही थी, लेकिन शिवम की आँखें मोबाइल स्क्रीन पर टिकी थीं। आज स्कॉलरशिप के परिणाम घोषित होने वाले थे। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी। उसके लिए यह सिर्फ एक परीक्षा का परिणाम नहीं था, बल्कि उसके और उसके परिवार के भविष्य का फैसला था।

घर में भी एक अलग-सा माहौल था। माँ, जो हर रोज़ सुबह जल्दी उठकर चाय बना देती थीं, आज बार-बार शिवम के पास आकर पूछ रही थीं, "बेटा, रिजल्ट आया क्या?"

शिवम सिर हिलाकर फिर से फोन की स्क्रीन पर देखने लगा। पिता, मनोहर भाई, चुपचाप अख़बार पढ़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी आँखें भी बार-बार शिवम की ओर उठ जातीं।

"भैया, स्कॉलरशिप मिलेगी तो न तू बड़ा आदमी बन जाएगा?" उसकी छोटी बहन सोनाली ने हँसते हुए कहा।

शिवम मुस्कुरा दिया, लेकिन अंदर ही अंदर उसके हाथ पसीने से भीग रहे थे। उसके लिए यह मज़ाक का वक्त नहीं था।

अचानक फोन पर एक नोटिफिकेशन आया। उसने घबराकर स्क्रीन पर नजर डाली—

"बधाई हो! आपको स्कॉलरशिप के लिए चयनित किया गया है!"

क्षणभर के लिए उसे यकीन नहीं हुआ। उसने दोबारा पढ़ा, फिर ज़ोर से चिल्लाया, "माँ! पापा! मुझे स्कॉलरशिप मिल गई!"

मनोहर भाई ने चश्मा उतारकर शिवम को देखा। उनकी आँखों में अविश्वास और गर्व की मिली-जुली चमक थी। एक पल के लिए मानो समय ठहर गया। फिर, बिना कुछ कहे, वे अपनी कुर्सी से उठे, उनकी चाल में एक नई ऊर्जा थी। उन्होंने शिवम को जोर से गले लगा लिया, जैसे बरसों की मेहनत और संघर्ष का सारा बोझ इस एक पल में हल्का हो गया हो। उनकी आँखों में नमी थी, लेकिन चेहरे पर संतोष की चमक थी।

"बेटा, मुझे पता था कि तू कर दिखाएगा!" उनकी आवाज़ हल्की सी कांप रही थी, मगर गर्व से भरी हुई थी। उन्होंने अपने हाथों से शिवम के सिर को सहलाया, मानो उसमें छुपी सारी थकान को मिटा देना चाहते हों।

सविता बेन की आँखों में आँसू छलक आए, लेकिन ये आँसू ग़म के नहीं, गर्व और असीम ख़ुशी के थे। उनका बेटा, जिसने बचपन से ही संघर्ष देखा था, आज अपने सपनों की पहली सीढ़ी चढ़ चुका था। उन्होंने काँपते हाथों से शिवम के सिर पर स्नेह भरा स्पर्श किया, उनकी उंगलियाँ हल्के-हल्के उसके बालों में फिसल रही थीं, जैसे अपने आशीर्वाद को उसमें बुन रही हों।

"अब तू अपने सपने पूरे कर सकेगा, बेटा," उनकी आवाज़ में राहत, गर्व और ढेर सारा प्यार घुला हुआ था।

इतने में सोनाली उछलती हुई दौड़कर आई और शिवम के गले में झूल गई। उसकी आँखों में मासूमियत भरी चमक थी, और होंठों पर शरारती मुस्कान।

"भैया, अब तू हमें भी बड़ी गाड़ी में घुमाएगा ना?" उसने उत्साह से कहा, मानो शिवम की सफलता उसकी भी जीत हो।

शिवम हँस पड़ा और सोनाली को गोद में उठाकर प्यार से उसकी नाक खींची।

"ज़रूर, छोटी! एक दिन ऐसा भी आएगा जब तू अपनी मनचाही जगह घूम सकेगी," उसने वादा किया, और उसके दिल में एक नया संकल्प जाग उठा—अब उसे न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपने परिवार की हर खुशी के लिए लड़ना था।

शाम को शिवम अपने दोस्त की किताब लौटाने लाइब्रेरी गया। वहाँ उसकी नजर अचानक प्राची पर पड़ी। वह एक कोने में बैठी थी, किताबों के पन्नों में खोई हुई। उसके चेहरे पर वही आत्मविश्वास था, जो पहली मुलाकात में शिवम ने देखा था।

"अरे, शिवम! यहाँ कैसे?" प्राची ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"बस... किताब लौटाने आया था। और हाँ, मुझे स्कॉलरशिप मिल गई!"

प्राची की आँखों में खुशी झलक उठी, "ओह, वाह! मैं जानती थी कि तुम कर लोगे। अब आगे क्या प्लान है?"

शिवम ने गहरी सांस ली, "अब असली सफर शुरू होगा।"