गरीबी सिर्फ जेब में नहीं होती, यह इंसान के दिल और दिमाग पर भी असर डालती है। शिवम ने बचपन से ही इस सच्चाई को बहुत करीब से देखा था। उसका जन्म एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, जहाँ हर दिन संघर्षों से भरा रहता। उसके पिता, मनोहर भाई, एक छोटी-सी लोहे की दुकान चलाते थे, और माँ, सविता बेन, घर संभालने के साथ-साथ सिलाई का काम भी करती थीं ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। लेकिन फिर भी, महीने के आखिरी दिनों में घर का खर्चा चलाना किसी जंग से कम नहीं होता।
घर में पैसों की किल्लत कोई नई बात नहीं थी, लेकिन शिवम की आँखों ने कभी अपने माता-पिता को हार मानते नहीं देखा। वे कम में भी खुश रहना जानते थे, मगर शिवम को यह स्वीकार नहीं था। जब भी वह अपने माता-पिता को परेशान देखता, उसके अंदर एक अजीब-सी बेचैनी घर कर जाती। उसे महसूस होता कि इस परिस्थिति से निकलने के लिए उसे कुछ बड़ा करना होगा, अपने परिवार को इस संघर्ष से बाहर निकालना होगा। लेकिन ‘कैसे?’ यह सवाल हमेशा उसके मन में घूमता रहता।
एक दिन, स्कूल में जब शिवम अपनी किताबों में डूबा हुआ था, तब प्रिंसिपल ने उसे अपने ऑफिस में बुलाया।
"शिवम, तुम्हारी पढ़ाई में गहरी रुचि और मेहनत को देखते हुए, मैं तुम्हें इस साल की सबसे प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप के लिए नामांकित करना चाहता हूँ। अगर तुम यह स्कॉलरशिप हासिल कर लेते हो, तो तुम्हारी आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा वहन किया जाएगा।"
स्कॉलरशिप! यह शब्द सुनते ही शिवम की आँखों में उम्मीद की एक चमक आ गई। यह उसके लिए सिर्फ आर्थिक सहायता नहीं थी, बल्कि अपने सपनों की ओर बढ़ने का पहला कदम था। यह मौका उसे गरीबी के उस दलदल से निकाल सकता था, जिसने उसके परिवार को सालों से जकड़ रखा था।
शिवम ने ठान लिया कि वह इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देगा। अब उसके दिन और रात किताबों के बीच बीतने लगे। वह जब भी थकता, तो माँ-पिता की मेहनत और उनके चेहरे पर छाई चिंता उसे फिर से ऊर्जा से भर देती।
एक शाम, जब परीक्षा की तैयारियों से थोड़ा ब्रेक लेने के लिए वह अपने दोस्त की जन्मदिन पार्टी में गया, तब उसकी मुलाकात प्राची से हुई—एक तेज़तर्रार और आत्मविश्वासी लड़की, जो समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में अपना नाम बनाना चाहती थी। उसकी आँखों में एक अलग-सी चमक थी, जैसे वह दुनिया को बदलने का सपना देखती हो।
बातचीत के दौरान प्राची ने कहा, "सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ मेहनत ही नहीं, सही दिशा भी चाहिए। कई लोग मेहनत करते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि किस ओर जाना है।"
शिवम को यह बात गहराई तक छू गई। क्या वह अब तक सिर्फ मेहनत कर रहा था, बिना यह सोचे कि उसकी मंज़िल क्या होगी?
उस रात, जब वह घर लौटा, तो उसके मन में उम्मीद और हौसले की एक नई लौ जल रही थी। लेकिन अभी उसका सफर लंबा था।
समय बीतता गया, और परीक्षा का दिन आ गया। शिवम ने अपनी पूरी ताकत और तैयारी के साथ परीक्षा दी। अब बस परिणाम का इंतज़ार था।