ishq aur Irade - 3 in Hindi Love Stories by Aarti Garval books and stories PDF | इश्क और इरादे - 3

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इश्क और इरादे - 3

सुबह की हल्की गुलाबी धूप खिड़की के शीशे से छनकर शिवम के कमरे में फैली हुई थी। दीवार पर टंगी घड़ी की सूई जैसे धीमे-धीमे उसके दिल की धड़कनों के साथ दौड़ रही थी। आज उसका पहला दिन था—शहर के उस प्रतिष्ठित कॉलेज में, जहाँ तक पहुँचने का सपना उसने न जाने कितनी रातों तक देखा था।

सविता बेन ने चुपचाप दरवाज़े पर आकर देखा—शिवम आइने के सामने खड़ा, अपने हल्के से काले बाल सँवार रहा था, और माथे पर हल्की शिकन थी। माँ ने प्यार से उसकी कमीज़ पर हाथ फेरा, “टिफिन रख दिया है बैग में। बस समय पर खाना खा लेना।”

शिवम ने मुस्कराकर माँ की तरफ देखा, फिर सोनाली को आवाज़ दी जो स्कूल यूनिफॉर्म में तैयार खड़ी थी।

“चल बहन, दोनों एक साथ निकलते हैं।”

दरवाज़ा बंद हुआ। बाहर एक नई दुनिया शिवम का इंतज़ार कर रही थी।


कॉलेज की ऊँची इमारतें, चमकती दीवारें, और चारों ओर हँसते-बोलते स्टूडेंट्स। शिवम ने घबराते हुए कदम बढ़ाए। हर तरफ उसे एक अलग ही दुनिया नज़र आ रही थी—जैसे वो किसी फिल्म के सेट पर आ गया हो। महंगी गाड़ियों की कतार, स्टाइलिश कपड़े पहने छात्र, और सेल्फी खींचती लड़कियाँ।

उसका साधारण सा बैग, हल्की मटमैली शर्ट और छप्पर पर टिकी उम्मीदें शायद यहाँ सबसे अलग थीं।

वो धीरे-धीरे कैंपस में आगे बढ़ रहा था कि तभी पीछे से आवाज़ आई—

“अरे, किताबों वाले लड़के!”

शिवम ने पलटकर देखा—एक लंबा, गोरा, और घमंड से भरा लड़का, जिसने काले गॉगल्स आँखों पर टिकाए थे। उसके साथ दो और दोस्त, और एक महंगी बाइक पास ही खड़ी थी। ये था रौनक त्रिवेदी—कॉलेज का सबसे अमीर, और सबसे घमंडी छात्र। उसका नाम कॉलेज की गलियों में मशहूर था, लेकिन उसकी दोस्ती सिर्फ स्टेटस से होती थी।

“नाम क्या है तेरा?” रौनक ने ठंडी हँसी के साथ पूछा।

“शिवम…” उसने धीरे से जवाब दिया।

“अरे वही ना, स्कॉलरशिप वाला लड़का? बढ़िया है भाई, मेहनत करके आया है। लेकिन यहाँ सिर्फ किताबों से नहीं चलता, यहाँ स्टाइल भी चाहिए।”

शिवम कुछ कहता, उससे पहले एक आवाज़ गूंजी—

“रौनक! अब बस भी करो…”

शिवम की नज़र मुड़ी—वो प्राची थी। सिंपल लेकिन आत्मविश्वास से भरी हुई। हल्के नीले सूट में, बालों को क्लिप से बाँध रखा था। उसकी आँखों में नज़ाकत के साथ एक सख्ती भी थी।

“ये कॉलेज सबका है। और शिवम यहाँ अपनी मेहनत से आया है, किसी के बाप के पैसे से नहीं।”

रौनक की हँसी थम गई। उसने एक तीखी नज़र शिवम पर डाली और वहाँ से निकल गया।

शिवम का दिल अभी भी तेज़ धड़क रहा था। लेकिन प्राची ने उसका बैग पकड़कर कहा, “चलो, मैं दिखा देती हूँ तुम्हें क्लासरूम कहाँ है।”


क्लास में शिवम की बेंच सबसे पीछे थी। वो खिड़की के पास बैठा था, हवा में पुराने कॉलेज के सपने और इस नए माहौल के फर्क को महसूस करता हुआ। सामने की बेंच पर प्राची बैठी थी, नोट्स बना रही थी। कभी-कभी वो पीछे मुड़कर देखती और मुस्करा देती।

शिवम को ऐसा लगा जैसे उसके जीवन की किताब में एक नया अध्याय खुल रहा हो—जहाँ अक्षर सिर्फ पढ़ाई के नहीं, रिश्तों और संघर्षों के भी होंगे।


प्राची, शिवम और कुछ नए दोस्त बैठकर बातें कर रहे थे।

“तुम्हारा सपना क्या है, शिवम?” दीपाली नाम की लड़की ने पूछा।

शिवम ने चाय का घूंट लिया और बोला, “मैं प्रोफेसर बनना चाहता हूँ। एक ऐसा शिक्षक, जो गाँव के बच्चों को वो सब दे सके जो मुझे कभी नहीं मिला।”

प्राची की आँखें चमक उठीं।

“और तुम?” शिवम ने पलटकर पूछा।

प्राची थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, “मुझे पत्रकार बनना है। सच को उजागर करने वाला, आवाज़ों को शब्द देने वाला पत्रकार।”

शिवम ने उसकी आँखों में देखा—शायद पहली बार किसी ने उसके सपने को समझा था।


और वहीं दूर से एक जोड़ी आँखें ये सब देख रही थीं—रौनक की।

उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं। उसके लिए ये सिर्फ ईर्ष्या नहीं थी, एक चेतावनी थी—एक किताबों वाला लड़का, उसकी दुनिया में सेंध लगा रहा था।