कॉलेज का ऑडिटोरियम हल्की-सी चहलकदमी और हलके संगीत से गूंज रहा था। दीवारों पर चिपके पोस्टर और रंगीन लाइट्स एक उत्सव-सा माहौल रच रहे थे। आज इंटर-कॉलेज पोएट्री कॉम्पिटिशन था—वो मंच जहाँ शब्दों से जज़्बातों का खेल खेला जाना था।
शिवम ग्रीन रूम में बैठा था, हाथ में अपनी डायरी पकड़े हुए। पन्नों पर कई बार पढ़ी गई पंक्तियाँ अब भी उसे अधूरी लग रही थीं। पसीने से भीगते हाथ, दिल की धड़कनों की रफ़्तार, और बाहर से आती तालियों की गूंज—सब उसे उसकी पहली बार का एहसास दिला रहे थे।
"शिवम!" प्राची ग्रीन रूम में दाखिल हुई, हाथ में एक पानी की बोतल थी।
"तुम ठीक हो?" उसने उसकी घबराई सी शक्ल देखी।
शिवम मुस्कराया, लेकिन वो मुस्कान पूरी नहीं थी। “शब्द तो हैं, लेकिन आवाज़ काँप रही है…”
प्राची ने उसकी डायरी उसके हाथ से ली और पढ़ते हुए बोली, "ये जो लिखा है न... ये सिर्फ कविता नहीं है, ये तुम्हारा जीवन है। इसे कोई जज नहीं कर सकता। बस बाँट दो वो दर्द जो इन पंक्तियों में है।"
शिवम ने उसकी आँखों में देखा—उसके शब्दों में विश्वास था, हौसला था।
“और हाँ…” प्राची ने मुस्कराकर कहा, “रौनक भी परफॉर्म कर रहा है… उसके शब्दों में गहराई तो है, लेकिन इरादे में चालाकी भी। याद रखना, मुकाबला सिर्फ मंच का नहीं होता, नज़रें भी तौलती हैं। और इस बार कुछ आँखें जलती भी हैं।”
शिवम ने गहरी साँस ली और खुद से कहा, "आज डर से नहीं, ख्वाबों से लड़ूंगा।"
बाहर स्टेज पर उद्घोषणा हो रही थी—
"अब हमारे मंच पर आ रहे हैं ‘शिवम राज’... एक नई आवाज़, जो पहली बार मंच पर बोल रही है, लेकिन शायद शब्दों में कोई इतिहास लिखने आई है..."
तालियों की हल्की गूंज के साथ शिवम मंच पर पहुँचा। रोशनी की तेज़ किरणें उसकी आँखों पर पड़ीं, और एक पल को वो ठहर-सा गया। मगर तभी उसे माँ-पापा का चेहरा याद आया, सोनाली की मासूम बात, और प्राची की आँखों में झलकती उम्मीद।
उसने माइक पकड़ा, गला साफ किया और कहा—
मैं आया हूँ आवाज़ बनने,
उन अनसुनी कहानियों की,
जिन्हें वक्त की धूल ने ढक दिया,
और समाज ने चुप्पियों में बंद कर दिया।
मैं बोलूंगा उनके दर्द को,
जो शब्दों से कभी कह न सके,
जिनकी रातें तो जागी रहीं,
पर सपने नींद से डरते रहे।
मैं बताऊँगा उन माँओं की बातें,
जिन्होंने आँचल से भूख ढक दी,
उन पिताओं की खामोशी,
जो बेटों की फीस के लिए टूटे मगर झुके नहीं।
मैं लाऊँगा उन सपनों की रोशनी,
जो जुगनू की तरह टिमटिमाते हैं,
हर तंग गली, हर सुनसान राह में,
जो उजाले की उम्मीद जगाते हैं।
मैं आया हूँ सिर्फ कविता नहीं,
एक क्रांति की शुरुआत हूँ,
मैं आवाज़ हूँ उन सबकी,
जो अब तक खामोश थीं,
मगर हिम्मत की बात हूँ।
हर शब्द, हर पंक्ति में शिवम की आत्मा बोल रही थी। ऑडिटोरियम एकदम शांत था। ऐसा लग रहा था जैसे हर कोई उसकी आवाज़ में खुद को ढूँढ रहा हो। उसकी कविता सिर्फ लफ्ज़ नहीं थे—वो तो एक जंग थी, संघर्ष से सपनों तक का सफर।
जैसे ही कविता पूरी हुई, कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया… फिर पूरे हॉल में तालियों की गूंज गूंज उठी। शिवम ने सिर झुकाकर धन्यवाद कहा और मंच से उतर गया।
बैकस्टेज पर आते ही प्राची ने उसे गले लगा लिया, “तुमने कर दिखाया!”
लेकिन तभी, एक धीमा, ठंडा स्वर सुनाई दिया।
“वाह शिवम… अच्छी कविता थी। लेकिन असली जीत तो तब होगी जब तुम्हारे शब्द सिर्फ दिल नहीं, फैसले भी बदलें।” रौनक ने पीछे से आकर कहा, उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी, मगर आँखों में कोई और खेल चल रहा था।
शिवम ने उसकी ओर देखा, “फैसले बदलने का वक्त आ गया है, रौनक… अब इरादे भी साफ हैं… और इश्क़ भी गहरा।”