Manzile - 24 in Hindi Moral Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 24

Featured Books
  • जयकिशन

    जयकिशनलेखक राज फुलवरेप्रस्तावनाएक शांत और सुंदर गाँव था—निरभ...

  • महाभारत की कहानी - भाग 162

    महाभारत की कहानी - भाग-१६२ अष्टादश दिन के युद्ध में शल्य, उल...

  • सर्जा राजा - भाग 2

    सर्जा राजा – भाग 2(नया घर, नया परिवार, पहली आरती और पहला भरो...

  • दूसरा चेहरा

    दूसरा चेहरालेखक: विजय शर्मा एरीशहर की चकाचौंध भरी शामें हमेश...

  • The Book of the Secrets of Enoch.... - 3

    अध्याय 11, XI1 उन पुरूषों ने मुझे पकड़ लिया, और चौथे स्वर्ग...

Categories
Share

मंजिले - भाग 24

                        ----उड़ान ---- 

                   ये पिक्चर एक पतंग चढ़ने की, कब मेरे कैमरे मे कैद हो गयी, मै नहीं जानता। पतंग कड़याली पेड़ मे फ़स गयी। कया करती... खींचने से फाड़ गयी। फिर कया था, डोर टूट गयी। 

                    अलफ़ाज़ भी कुछ ऐसे ही थे, टूट गए। एक सुरत एक सास के।

                       सोचने की तुम तैयारी तो रखो। शून्य कब तक रहोगे, जमाना हैं, यहाँ तरस नहीं, कोशिशे बिफ़्ल कर दी जाती हैं। सब तोड़ दिया जाता हैं।

                          फीड़ा एक ऐसी ही मेरी पात्र हैं.... जो गंठिया की मरीज हैं, ढंग से चल नहीं पा रही। उसका शरीर दर्द मे हैं, बहुत पीड़ा... जयादा समय वो बिस्तर पर कट ती हैं। लेट जाना पर स्कूनता नहीं, दर्द पीड़ा कहारता हुआ मास पुंज....

                      1950 का समय..... इलाहबाद। डाक्टरो का झूर्मट उसके शरीर को पेटीयो से कस कर बाध रहा हैं... वो पल पल मुस्करा रही हैं, बता रही हैं परमेश्वर मै खुश हू, तेरे हर पल मे, जो इंसाफ मुझे मिल रहे हैं, मेरे कर्म हैं, कर्म फल तेज गति हैं, मृत्यु लोक की । "तुम कया चाहते हो " ये मकसद नहीं हैं। "तुम कया खो रहे हो ये  आज का मकसद हैं " यातना उन जन्मों की, जो उसने किये होंगे। उम्र उसकी चौबीस या पचिस की होंगी। 

                      पिता एक दार्शनिक हैं, नाम से ही वो क्रिस्चन हैं, यिसो के पके अनुयायी। उनकी प्राथनो मे दम हैं, जो पिता के अन्दर से आती हैं। दर्द के टीके वो आपनी बेटी के लगा न सका। कयो वो एक डाक्टर की मामूली नौकरी पर हैं? उसका दर्द उसे देखना ऐसा लगता था, जैसे आँखो मे सुनामी आ गयी हो। इंजेक्शन बेटी के लगाना, उसकी कराहरता सुनना, उसे ऐसे लगती, जैसे वो आपने शरीर को किसी नुकिले खजर से काट रहा हो, दूर चला जाता, यहां उसकी कराहरता चीख उसे तोड़ न दे। आखें खाली होती, और हाथ मे भरा जाम एक सास मे पी जाता था। आपनी बेटी को कया दे, जो ऊपर देखती छत उसे अंधेरों मे न ले जाए।

                        हाँ उसका शौक था, केंव्स और पेंटिग। अगले दिन वो ले आया था। उसने आपनी पत्नी एक बड़ी बेटी और पड़ोसी सेमसँग को साथ ले कर एक जश्न के जरिये दिया। और उस रात एक पार्टी की घर पर। वो उठ बैठने को तैयार थी... मन का पूरा संजोग था। फिर वो ख़ुशी मे लड़खड़ाती चली भी... पिता की गोद तक। कितना समय अभूल था, आखें भर आयी थी। सेमसँग की उम्र चालीस थी... वो अकेला था, सब उसको छोड़ गए थे। जितना पैसा था, सब लोगों को खिला चूका था...

                     केंव्स पर उसने पेन्सिल और पेंन्ट से चित्र उकेरा था। जो एक चमकदार बुर्श के रंग से चित्र बना रही थी। जकड़न को उसने दिखा  दिया था। काटो की तारों ने कैसे उसके सुनेहरी शरीर को जकड़ा हुआ था, उसने रक्त नहीं, पानी निकलता दिखा दिया था, ये उसकी अंतर आत्मा का निर्मूल चित्र था। फिर एक लालिमा लिए पतले होठो वाला चित्र केंवीस पर उतारा था... जो उड़ते परीदो को दिखा रही थी। ये तीन चार चित्र अगली प्रदर्शनी के लिए इस लिए रखे थे, कि वो बोझ न बने, आपने प्यारे पापा के ऊपर....

पर पापा उसे हर ख़ुशी देना चाहता था।

( ये सच्ची घटना पर आधारत कहानी हैं, बस इस का स्थान बदला गया हैं।) फिर कभी आगे लिखुगा।

ये निशुल्क कहानी हैं, मेरी हर रचना निशुल्क हैं।

( चलदा )           ----* नीरज शर्मा 

                               शाहकोट, जलधर 

        (144702)