Manzile - 23 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 23

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मंजिले - भाग 23

------------------------ दिल्ली दूर नहीं --------------------

                          🥀 दिल्ली दूर नहीं... का मतलब ये  हैं, कि हम ज़िन्दगी मे बहुत कुछ  किसी की ख्वाइशो पे रख देते हैं, पर वो कभी पूरा करने मे अ- समर्थ होता हैं। ये असमर्थता कभी कभी इतनी भावक हो जाती है.. कि हम सोच भी नहीं सकते। सोचना बहुत दूर की बात हैं , कभी समझ सकना भी हमारे मन मे नहीं होता।

            बात 1984 की हैं, मै सिख पंथ की बात करता हू। मेरा दोस्त निरंजन सिंह एयरपोर्ट गया था। उनकी फ्लाइट थी...  फ्लाइट कब की, पता हैं.. नहीं न,  उस वक़्त आस्मिक बंद हो चूका था। 

               उसे एक रिश्तेदार के पनाह मिली थी... वो सरदार नहीं, हिन्दू हो गए थे, हवा देख कर बदल गए थे, मैंने पूछा था  :- चचा जी ये कया जातिवाद घर मे। " 

वो सुन कर हस पड़े... " कल कया हो जाये कोई नहीं जानता। फ्लाइट कैंसल इसी का प्रणाम हैं, जवान। "  चाचा ने रोब से कहा। दिल्ली मे  पक्का फ़साद होंगे। 

" मैंने कहा कयो चाचा जी ? "  चाचा ने गहरे चितक होकर कहा। " मेरा लाखो का बिजनेस शायद धरा का धरा रहे जाये। " चाचा ने भौहे सिकोड़ते हुए कहा ।

"----हमारे सिख हम जिसको मानते हैं, वाहेगुरु जिसमे हाजर नाजर समझ ते हैं, हर मंदिर साहब उसका क्रोध फूटे गा, निरजन सिंह... तुम गांव  कल ही वापस चले जाओ... "  उसने सुना और चुप सा कर गया।

                                अगले दिन अचानक पुलिस की गश्त शुरू हो चुकी थी... टीवी पर प्रसारण था , प्रधान मंत्री की गोलियों से हत्या हो चुकी थी। करफु लग चूका था। खून की होली दिल्ली मे खेली जा रही थी। जो सिख थे... खालसा पंथ के जिम्मेदारी से काम करने वाले अभ चुप हो चुके थे, पंजाब मे फौज गश्त था, 

दिल्ली मे सिख कभी हिंदू को बचाने मे सरब्स वार देने बाले को याद कर रहे थे। लेकिन ये कुछ और तमाशा लग गया था। उसकी माँ अकाल चलाना कर गयी। पर उसने कया कोई दिमाग़ से सोचा, " जो खालसा पंथ कश्मीरी पंडितो के लिए सरब्स वार गया, वोही सिख के गले मे आग की लपटो के टायर पा देंगे। 

                निरजन कया सब सिख कौम के सरपरस्त इसके वरखिलाफ थे, इसमें सब सिखो का कया कसूर हैं। खालिस्तान जो माँग रहे हैं, उनको देश की हकूमत देश द्रोह का मुकदमा करे। सब सिखो को कयो सजा दी जा रही हैं।

घर घर फुके जा रहे थे, आँखो मे रोने की दशत कम क्रोध की ज्वाला जायदा थी। कयो हो रहा था ये सब ?

                        एक इंद्रा गाँधी किसी की माँ, इतना बड़ा फैसला, कयो ? 

  निरजन सोचता था। आसमान मे धुआँ ही धुआँ था। कौन कल सूरज या चाद वैखे गा। किस किस को बली चाड़ दिया गया... कया सिर्फ वो शायद अकेला होगा कमाने वाला??? 

                        जिन्दे जला देना, कयो इसलिए, कि प्रतिशोध हैं, ईर्ष्या हैं, सब को कया तुम बिन माँ के कर देना चाहते हो ? 

          ये इंसाफ हैं ? सब को कयो ऐसा किया गया।

आज भी वो चुरसते पूछते हैं , सडके पूछती हैं,  इंसाफ आज भी मांगती हैं, ऐसा कयो हुआ, कौनसे कटेंहरे मे वो गाँधी परिवार जवाब कभी दे पायेगा??? शायद कभी नहीं, कयो, अभी दिल्ली दूर हैं।

मेरी हर क़लम बंद कहानी, उपन्यास, निशुल्क हैं, मै जवाब दे हू, अगर कोई साबत कर दे, कि  कोई चोरी की हैं, अगर मैंने किसी को इसका गलत इस्तेमाल होते देखा, मेरी किसी भी कलमबंद लेखनी को, बहुत लम्मा कोट केस मे उलझाऊ गा। ये राइट्स मेरे पास राखवे हैं, सिर्फ मात्र भूमि के लिए.... आप का आभारी।

(चलदा )  ------- नीरज शर्मा।

              शाहकोट, जलधर 

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