शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल ( पार्ट -४८)
डॉक्टर शुभम की दोनों बेटीयां रूपा आंटी और शुभम की शादी के लिए तैयार करते हैं। और मार्केट में शोपिंग के लिए निकलते हैं।
अब आगे....
दिव्या और प्रांजल के जाने के बाद डॉक्टर शुभम और रूपा अकेले रह गए हैं।
थोड़ी देर तक डॉक्टर शुभम रूपा को देखते रहते हैं।
सोचते हैं कि आज भी रूपा बहुत सुंदर दिखती है, कहीं मेरी नज़र न लग जाए। रूपा ने मेरे लिए इंतजार किया। किसी दूसरे मर्द के साथ शादी नहीं की। मेरे दोनों बच्चों की परवरिश के लिए ध्यान रखा था । रूपा ने मेरे लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया था। दिव्या मेरी और रूपा की बेटी होने के बावजूद वह अपनी बेटी को बेटी नहीं कह सकती थी। वो तो अच्छा था कि रूपा के चचेरे भाई ने दिव्या की परवरिश अच्छी की है। जब भी वह मिलेंगे मैं उनका शुक्रिया अदा करूंगा। आजकल कोई दूसरे के बच्चे का पालन-पोषण ठीक से नहीं करते। मेरा अच्छा नसीब है जो आज़ मुझे फ़िर से खुशियां मिल रही है।
एक दिव्या बेटी के रूप में और दूसरा रूपा से शादी।
डॉक्टर शुभम को चुप बैठा देखकर रूपा बोली:-' क्या सोच रहे हो? क्या कोई तकलीफ़ है। मन में बातें मत रखो। हमे अपने दिल की बातें बता सकते हो। ऐसे चुपचाप बैठने का क्या फ़ायदा।'
शुभम के मुख पर स्मरण आ गई।
शुभम:-' मैं सोच रहा हूं कि मैं कितना खुशनसीब हूं। मेरी दोनों बेटीयां समझदार हो गई है।'
रूपा:-' सो तो है। और मैं भी खुशनसीब हूं। मुझे तुम फ़िर से मिल गये। एक समय था जब हम इतने नजदीक थे कि हम एक-दूसरे के बगैर जी नहीं सकते थे। लेकिन किस्मत की करवटें ने मेरी किस्मत बदल डाली। एक रेगिस्तान जैसा मेरा जीवन बन गया था और दिव्या नामक एक हरियाला रास्ता मिल गया। आज तक मैं दिव्या को देखकर ही जी रही थी। हालांकि दिव्या को मेरे भाई के पास छोड़ दिया था। लेकिन मुझे तसल्ली थी कि दिव्या मेरे सामने तो है। दिव्या हम दोनों के प्यार की निशानी है।'
शुभम:-' तुमने जिंदगी में बहुत तकलीफें उठाईं। बदनामी का डर से ही तुम से दूर रही और तुम्हारी हिम्मत भी काबिले तारीफ है, आज़ तक वह बात को गुप्त रखा। मेरा जी चाहता है कि तुम्हारा हाथ चुम लूं।'
रूपा:-' ओह,आज प्यार उमड़ रहा है! किसने मना किया है? हिम्मत है तो मेरा हाथ चुम लो।'
डॉक्टर शुभम रूपा के नजदीक आया और उसका हाथ अपने हाथों में लिया।
रूपा के एक हाथ को धीरे से चुम लिया।
रूपा के मुख पर स्माइल आ गई।
बोली:-' बस, इतना ही! मैं तुम्हारी जगह होती तो गाल पर एक दो तीन चार बार चुंबन कर देती।'
शुभम:-' वो तो तुम औरत हो इसलिए मुझे अपने प्रति आकर्षित करने के लिए बोल रही हो। एक मर्द जल्दबाजी नहीं करता। औरत की मर्जी समझनी चाहिए।'
रूपा:-' तो मेरी मर्जी समझो। वर्ना मैं पहल करूंगी। अपनी बाहों में लेने की इच्छा ज्यादा हो रही है। कितने साल हो गए हैं, तुमने मुझे अपनी बाहों में लेने।'
इतना कहकर रूपा शुभम की और झुकी और शुभम के दोनों गालों पर चुम्बन किया।
शुभम ने भी वैसा ही जवाब दिया और रूपा को करके आलिंगन किया।
थोड़ी देर बाद...
दोनों स्वस्थ होने के बाद..
रूपा:-' क्या मैंने गलती की है? तुम्हें अच्छा लगा? मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती। मेरे ख्वाबों में तुम, मेरी सोच में तुम,हर घड़ी तुम ही दिखाई देते हो।'
शुभम:-' मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ सकता हूं। अपने प्रेमी के लिए इतना लंबा इंतजार कौन करता है। तुमने मेरे जीवन को आनंददायक बना लिया है।'
रूपा:-' बहुत दिनों बाद ऐसी प्यार भरी बातें कही। बस ऐसे ही प्यार करते रहना। अब हमारी जिंदगी में खुशियां ही खुशियां है।'
शुभम:-' शादी के बाद मुझे अस्पताल वापस जाना होगा। मैं तुम्हारे यहां आता जाता रहूंगा। और कुछ साल में मैं इस्तीफा दे दूंगा। फिर हम और हमारी खुशनुमा लाइफ।'
रूपा:-' शुभम , तुम्हें मालूम है कि हमारी बेटियां बहुत समझदार है।जानबूझ कर दोनों शॉपिंग के बहाने गए. ताकि हमें एकांत मिले। वो दोनों बड़ी हो गई है, उनके लिए भी अच्छा लड़का ढूंढना होगा। हमारे प्यार को पहचान गइ है।'
यह कहते हुए रूपा डॉक्टर शुभम के पास आई।
और डॉक्टर शुभम का माथा चूम लिया.
बोली:- 'आज मैं खुद को भाग्यशाली समझ रही हूं कि मैंने तुम्हें कितनी बार प्यार किया।'
ये सुनकर डॉक्टर शुभम भी रोमांटिक हो गए.
और रूपा को गले लगा लिया.
रूपा ने तुरंत कहा:-'शुभम, क्या मैं पहले जैसी ही दिखती हूं? तुम थोड़े थोड़े बुढ्ढे होते जा रहे हो। जवानी का जोश कम दिखता है।'
यह सुनकर डॉक्टर शुभम ने रूपा को आलिंगन से मुक्त कर दिया।
बोले:-' तुम भी उम्र लायक हो गई हो लेकिन जवानी जैसी ही तुम्हारी हरकतें है। अपने शरीर को बेखूबी से बना कर रखा है।'
रूपा हँस पड़ी।
बोले:-'मैं तैयार होने जा रही हूं। आप भी तैयार हो जाइये। हम खरीदारी करेंगे और रात का खाना खाएंगे और फिर थोडा़ घुमकर वापस आएंगे।'
डॉक्टर शुभम:- 'ठीक है..लेकिन मैं अपनी कार ख़ुद चलाऊंगा।'
रूपा:- 'नहीं..नहीं..आज मेरी कार लेनी है लेकिन डिनर के बाद मैं कार चलाऊंगी।'
दोनों व्यक्तियों ने मीठी-मीठी बातें कीं कि क्या खरीदना है।
फिर दोनों तैयार होकर बाजार में शॉपिंग करने चले गये।
डॉ. शुभम के लिए शर्ट, पैंट, ब्लेज़र, गाउन, शेरवानी और शूट की खरीदारी की।
रूपा ने अपने लिए कुछ शॉपिंग भी की.
डॉक्टर शुभम ने रूपा के लिए कांजीवरम साड़ी खरीदी।
शॉपिंग के बाद दोनों एक अच्छे होटल में खाना खाने गये।
( आगे आगे देखो क्या होने वाला है। जिंदगी सीधी दिखती है लेकिन जिंदगी भी करवटें लेती है। जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे