"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -४७)
डॉक्टर शुभम को उनकी दोनों बेटीयां प्रांजल और दिव्या डाक्टर रूपा से शादी के लिए मना लेती है और रूपा आंटी के घर दो दिनों के लिए जाना है ऐसा बताती है। डॉक्टर शुभम मान जाता है।
अब आगे....
डॉक्टर शुभम:- 'ठीक है लेकिन एक हफ्ते से ज्यादा छुट्टी नहीं लेनी है। मैं डॉ. तनेजा को चार्ज दूंगा। मैंने तुम दोनों की बातें मान ली है। तुम दोनों मेरी प्यारी बेटियां हो।'
दिव्या और प्रांजल एक साथ बोले:-' मेरे अच्छे पापा,हम आपको प्यार करते हैं।'
डॉक्टर शुभम ने अस्पताल से दो दिनों के लिए छुट्टी ले ली। और डाक्टर तनेजा को चार्ज दे दिया और कहा कि
बादमें दूसरी छुट्टी ले लूंगा।
अगली सुबह चाय-नाश्ते करने के बाद तीनों रूपा के घर के लिए निकले।
जब रूपा दोपहर के भोजन की तैयारी कर रही थी, तीनों रूपा के घर पहुंचे। रूपा ने सब का भोजन बना लिया था।
रूपा खुश थी। वह डॉक्टर शुभम और बेटियों का इंतजार कर रही थी।
दोपहर के भोजन के बाद शादी की योजनाएँ शुरू हुईं।
दिव्या और प्रांजल जानबूझ कर दूसरे कमरे में चले गये, ताकि पापा रूपा आंटी से खुलकर बातचीत कर सकें।
दिव्या और प्रांजल के जाने के बाद थोड़ा समय शांति रखने के बाद...
रूपा:- 'धन्यवाद शुभम्। अंततः तुम्हें बच्चों की बात पर विश्वास करना ही पड़ा। मेरी गलती के लिए मुझे माफ़ कर दो। मैं भी अपराधी हूं, तुम अकेले अपराधी नहीं हो।अब हमें सब कुछ भूलकर नई जिंदगी शुरू करनी होगी। विवाह का निर्णय हो चुका है। हम शादी आर्य समाज में करने वाले है। मैंने सब प्रबंध कर लिया है, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैंने शादी के लिए मेरी पर्चेज कर ली है। तुम्हारे लिए लाना है।मैं दिव्या का इंतजार कर रही थी, लेकिन दिव्या सीधा तुम्हारे घर चली गई।अब तुम्हारी तैयारी के लिए हम शाम को बाजार चलेंगे। आप आओगे!'
डॉक्टर शुभम:-'मेरे पास जो है, उससे काम चलेगा। समय बर्बाद मत करना नहीं है। फ़िर भी तुम कुछ खरीदना चाहती हो तो हम साथ में जायेंगे।'
रूपा:-'नहीं..नहीं..नहीं.. हमें साथ में जाना होगा। तुम्हारे लिए मुझे कुछ खरीदना है। मेरे साथ आओगे? '
डॉक्टर शुभम:-'बस ठीक है..जो तुम चाहती हो वही होगा। मैं नहीं आऊंगा तो तुम्हें बुरा लगेगा। लेकिन जो भी खरीदारी होगी उसका भुगतान मैं करूंगा।'
---------
शाम ढल गई.
दिव्या और प्रांजल तैयार हो जाते हैं।
प्रांजल ने शुभम के पास आकर कहा- पापा, हमें कुछ शॉपिंग के लिए जाना है। मैं दिव्या के साथ मार्केट में शोपिंग के लिए जा रही हूं। दिव्या को भी शोपिंग करनी है। मैं उसे शहर में साथ में घुमाऊंगी। हमें आने में देर हो जाएगी और हम डिनर करके आएँगे। आप भी रूपा आंटी के साथ कुछ शॉपिंग करने चले जाओ।'
इतना कहकर प्रांजल ने दिव्या की तरफ देखा और धीरे से मुस्कुरा दी।
डॉक्टर शुभम मन ही मन समझ गये कि बेटियां होशियार हो गई है। हमें अकेले साथ में रहने का मौका दे रही है।
डॉक्टर शुभम:-'अच्छा बेटा, लेकिन तुम्हारे पास रूपये,पैसा और कार्ड है! मेरे पास एक दूसरा कार्ड है। रुपये लेकर आया हूं। मैं एटीएम से रूपये निकाल दूंगा। चलो तुम दोनों कहते हो तो हम भी थोड़ी देर बाद मार्केट जायेंगे। मुझे रूपा के लिए कुछ लेना है। और हम होटल में डिनर करके आयेंगे।'
कुछ मिनट बाद दिव्या और प्रांजल साथ में मार्केट में शोपिंग करने के लिए निकले।
रास्ते में दोनों बातचीत करते करते जा रहे थे।
प्रांजल:-'दिव्या, तुम्हारा आइडिया मुझे पसंद आया।यह अच्छा है कि हम पापा को आंटी के पास छोड़कर जा रहे हैं। यह अच्छा है कि वे लोग थोड़ा करीब आ जाएं। एक दूसरे से फिर से अपनापन महसूस करें।साथ में अकेले रहेंगे तो एक दूसरे के प्रति स्नेह बढ़ेगा और हमारा काम भी हो जाता है।'
दिव्या:-'हां.. हमने अच्छा किया, पहले हम शॉपिंग करेंगे और फिर कहां जाने का प्लान है?'
प्रांजल:- ' मुझे हर्ष का मैसेज आया था। एक दो घंटे में वह हमें मिलेगा। उसने पता भेजा है, उसने हमारे घर आने से इनकार कर दिया है।'
यह सुनकर दिव्या खुश हो गई।
दिव्या:-'तो हमारा दोस्त इसी शहर में है?'
प्रांजल:- 'हां..उसकी मां इसी शहर में रहती है। वह भी हमारी तरह छुट्टियों पर आया है।'
दिव्या यह सुनकर फिर से ख़ुश हूई।
बोली:-' ओह.. हर्ष की मम्मी इसी शहर में रहती है? मुझे पता नहीं था या हर्ष ने हमें बताया नहीं था। क्या पापा मम्मी की शादी में हर्ष को बुलाना पसंद करोगी?'
प्रांजल:-' पापा मम्मी की शादी में हर्ष को आमंत्रण नहीं देना है। यह हमारे परिवार की खुशी का फंक्शन है,हमारा नहीं।
जब भी मेरी या तुम्हारी शादी होगी तब हर्ष को आमंत्रण देंगे। अभी इस बारे में बातें करना नहीं चाहिए।'
दिव्या के मुख पर स्मित आ गया।
बोली:-' मैं शादी करूंगी तो हर्ष जैसे युवा के साथ,जो हर मुश्किल में मेरा साथ दे और मेरे साथ साथ खड़ा रहें।'
प्रांजल ने हंसते हुए कहा:-' तो मैं मम्मी से तेरी बात चलाऊं?'
दिव्या:-' किस बारे में? शादी के लिए? किससे?'
प्रांजल:-' तुम समझदार हो, मैं क्या कहना चाहती हूं। समय आने पर मैं तेरे लिए अच्छा सा काम करूंगी।
दिव्या:- 'ठीक है.. बातें बहुत हो गई।अब देर मत करो...चलो...'
( आगे की कहानी जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे