अपने परिवार में सब की रजामंदी के बाद वंदना ने अनुराधा को फ़ोन करके कहा, "हेलो अनुराधा जी नमस्ते।"
"नमस्ते वंदना, कैसे हो आप सब लोग?"
"जी हम सब ठीक हैं। मैंने आपको यह बताने के लिए फ़ोन किया है कि हमारी तरफ़ से हाँ है। आप लोगों की तरफ़ से भी यदि सब ठीक है तो हम यह रिश्ता पक्का कर देते हैं।"
अनुराधा ने कहा, "अरे मैं ख़ुद ही आपको फ़ोन करने वाली थी कि हमें श्लोका बहुत पसंद है और आपका परिवार भी । इस रिश्ते के लिए हम लोग भी तैयार हैं।"
बस फिर क्या था, दोनों परिवारों की रजामंदी के साथ ही शहनाई बजाने की तैयारी शुरू हो गई। श्लोका के घर बैंड बाजे के साथ बारात का आगमन हो गया और दोनों का विवाह भी संपन्न हो गया।
विदाई के बाद श्लोका जब ससुराल पहुँची तो बहुत ही जोरदार स्वागत के साथ उसका गृह प्रवेश हुआ। उसके बाद जब ट्रक में दहेज का सामान आया और उसे खोला गया तो अनुराधा के अरमानों के टुकड़े-टुकड़े हो गए। दहेज में केवल साधारण पलंग, सोफा सेट, वाशिंग मशीन, जैसी घर की ज़रूरत की चीजें ही थी; जो उनके पास पहले से ही थीं। अनुराधा ने तो सोचा था दहेज में बहुत कुछ मिलेगा। इकलौती बेटी है तो वे लोग उसे कार के साथ ही साथ कैश भी देंगे।
अनुराधा इस समय बेहद दुखी और मन ही मन नाराज भी थी। शादी यही सोच कर तो की थी कि इकलौती बेटी है तो सब कुछ बिना मांगे ही मिल जायेगा। इसीलिये उसने दहेज का भी ज़िक्र नहीं किया था। परंतु यहाँ तो सब कुछ उल्टा हो गया।
दो हफ्ते के बाद, जब सभी मेहमान चले गए, अनुराधा ने एक रात अपने बेटे मिलन को कमरे में बुलाने का सोचा। इस समय सुरेश अपने काम के सिलसिले में बाहर गए हुए थे और श्लोका सो रही थी।
अनुराधा तो कब से ऐसे ही मौके की तलाश में थी जो उसे इस समय मिल गया उसने मिलन को मैसेज करके अपने कमरे में बुलाया।
अपनी माँ का मैसेज देखते ही वह बाहर आया और उसने पूछा, "क्या हुआ मम्मी?"
तब अनुराधा ने उससे कहा, "मिलन उन लोगों ने तो दहेज में कुछ दिया ही नहीं। वही साधारण चीजें दी हैं जो हर माँ-बाप अपनी बेटी को देते हैं। हमने तो क्या-क्या सोच कर रखा था।"
"अरे मम्मी चिंता मत करो, इकलौती है सब मिलेगा। थोड़ी शांति रखनी होगी। अभी कुछ दिन निकलने दो फिर मैं उससे बात करूंगा।"
"पर क्या वह मानेगी?"
"मानेगी क्यों नहीं? उसे मानना ही पड़ेगा उसके पास और कोई रास्ता भी कहाँ बचा है।"
"हाँ ठीक है ऐसा थोड़ी होता है। हमने मांगा नहीं तो उन्होंने दिया ही नहीं। इससे तो हमने करार कर लिया होता तो अच्छा होता।"
तभी बाहर से श्लोका की आवाज़ आई, "नहीं मम्मी जी, फिर तो यह रिश्ता ही नहीं होता।"
मिलन और अनुराधा चौंक कर उठ खड़े हुए।
मिलन ने कहा, "अरे श्लोका तुम?"
"हाँ मिलन मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने आपको बाजू में नहीं देखा, इसलिए बाहर आ गई। मुझे नहीं मालूम था कि तुम्हारे इस नकली चेहरे के पीछे एक असली चेहरा भी छिपा हुआ है; जिसमें लालच का ऐसा वृक्ष है जिसकी हर डाली पर दौलत की भूख लगी हुई है। जिसे तुम मेरे द्वारा पूरा करना चाहते हो। अच्छा ही हुआ जो मैं आ गई, आप लोगों की सच्चाई तो मालूम हुई।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः