Tasveer - Part - 4 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | तस्वीर - भाग - 4

Featured Books
Categories
Share

तस्वीर - भाग - 4

सुरेश के मन में मकान बेचने के विचार ने उथल पुथल मचा रखी थी क्योंकि यह कोई आसान निर्णय नहीं था। अपने मन में आये इस विचार से वह बहुत ही परेशान रहने लगे थे। अपनी परेशानी को अपनी पत्नी के साथ बाँटना ज़रूरी समझ कर एक दिन उन्होंने अनुराधा को अपने पास बुला कर कहा, "अनु हम इस समय बहुत मुसीबत में हैं, मुझे लगता है इस आर्थिक तंगी से बचने का केवल एक ही रास्ता है; हमारा घर ..."

यह सुनते ही चौंकते हुए अनुराधा ने कहा, "घर ...? तुम यह क्या कह रहे हो सुरेश?"

"हाँ अनु, मुझे कुछ व्यापारियों को उनके पैसे लौटाने हैं, जिनसे माल खरीद लिया था। वह सारा माल अब खराब हो गया है। मैं पैसों में कमी के कारण उनका सही समय पर उपयोग नहीं कर पाया। व्यापारियों ने काफ़ी इंतज़ार कर लिया। उन्होंने बहुत धैर्य भी रखा क्योंकि वे सब मेरे साथ काफ़ी समय से जुड़े हुए थे। लेकिन अब उन्हें भी तो तंगी हो रही है। मैं इन दिनों बहुत परेशान रहता हूँ इसलिए सोच रहा हूँ कि कहीं छोटा-सा घर ले लेंगे। भगवान चाहेगा तो भविष्य में सब ठीक हो जाएगा फिर से अच्छे दिन भी आ जाएंगे। इस समय यह मकान ही हमें इस मुसीबत से छुटकारा दिलवा सकता है। अनु, कर्ज़ का बोझ बहुत भारी होता है। डर लगता है कहीं मैं उस कर्ज़ के नीचे दब ना जाऊँ, मेरा दम घुटता है। जब तक सब का पैसा लौटा नहीं दूंगा, मैं चैन से जी नहीं पाऊंगा।"

अपने पति को इस तरह तनाव में देखकर अनुराधा ने कहा, "ठीक है सुरेश, अपना घर छोड़ने में दुख तो बहुत होगा लेकिन वह दुख तुम्हारी मानसिक परेशानी के आगे कुछ भी नहीं है। प्रॉपर्टी होती ही इसीलिए है कि मुसीबत के कठिन समय में हमारे काम आ जाये। "

अनुराधा के इस सकारात्मक जवाब को सुन कर एक ठंडी सांस लेते हुए सुरेश ने कहा, "ठीक है, थैंक यू अनु मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।"

अब तक उनका बेटा मिलन जवान हो चुका था। उसने जब यह सुना तो अपने पापा मम्मी को समझाते हुए कहा, "कोई बात नहीं पापा, अब मेरी पढ़ाई भी पूरी हो गई है। मैं भी तो कमाऊंगा ना, सब जल्दी ही ठीक हो जाएगा।"

उसके बाद सुरेश ने वह मकान बेचकर पूरा कर्ज़ उतार दिया। वे लोग छोटे से तीन कमरों के घर में रहने आ गए। इसी बीच सुरेश की माँ अवंतिका अंदर ही अंदर इस दुख का बोझ अधिक दिन तक ढो ना पाई और उनका स्वर्गवास हो गया।

दिन-रात अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ते रहे, सूरज चांद भी रोज़ आते जाते रहे और इसी तरह ज़िन्दगी आगे बढ़ती रही।

मिलन को भी जल्दी ही नौकरी मिल गई और उनका रोजमर्रा का काम आराम से चलने लगा। मिलन को जल्दी पैसे कमा कर आराम दायक जीवन चाहिए था। अनुराधा भी अपने पुराने समय के ऐशो आराम को भुला नहीं पाई थी। उसे भी फिर से वैसी ही ज़िन्दगी चाहिए थी। सुरेश चाह कर भी अपना धंधा पहले जितना अच्छा नहीं चला पा रहे थे ।

इसी बीच मिलन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे। इन रिश्तों में अनुराधा एक बहुत अच्छी बहू तलाश कर रही थी, जो दिखने में सुंदर और सुशील हो। उससे ज़्यादा उनकी चाह यह थी कि वह लड़की मालदार परिवार से हो ताकि अच्छा दहेज मिल सके और उनके घर की डूबती नैया को सहारा भी मिल जाए।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः