Bhoot Lok - 17 - The End in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | भूत लोक -17 (अंतिम भाग)

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भूत लोक -17 (अंतिम भाग)

तालाब में कदम रखते ही उसे ऐसा लग मानों वो जमीन पर नहीं बल्कि बादलों पर चल रहा हो, उसका शरीर धुएँ के जैसा हल्का था और उसे अपने हाँथ, पैर रुई के सामान कोमल और हलके लग रहे थे अब ये अंगारा  की माया का प्रभाव था या उस रुद्रांक्ष  की माला का। पर इस समय राज  इसमें ही खो गया वो भूल गया की उसे तांत्रिक भैरवनाथ  ने यहाँ किस काम के लिए भेजा था।
अचानक राज  किसी से टकराया उसने ऊपर सर उठा कर देखा तो वहां एक विशाल स्तंभ था जिसका न कोई आदि और न ही कोई अंत था, उससे निकलने वाले प्रकाश में एक अजीब सा आकर्षण था, वो प्रकाश राज  को चारों ओर से घेरे हुए था, तभी जैसे किसी ने उसे नींद से उठाया हो वो अपने सपने से बाहर आया तब सब कुछ अलग था, उसके चारों ओर कंकाल थे, कुछ ही दूरी पर तांत्रिक भैरवनाथ  एक चबूतरे पर बैठे थे तब उसे याद आया की वो यहाँ अंगारा  भूत  का कंकाल तलाशने के लिए आया था।
राज  अपने चारों ओर के सभी कंकालों को ध्यान से देखता हुआ आगे बढ़ता है, इस समय उसके मन में डर के कोई भाव नहीं हैं, न जाने कहाँ से उसके अंदर अपने लक्ष्य तक पहुँचने का जनून भर है, वो एक- एक करके सभी कंकालों को बहुत ही ध्यान से देखता हुआ आगे बढ़ता जाता है, तभी उसे अपने दाहिनी ओर एक कंकाल दिखाई देता है जिसकी बाजू और पसली पर सिंदूर का निशान है अब राज  उसकी जंघा के निशान को तलाशने के लिए नीचे झुकता है पर तभी वो कंकाल वहां से गायब हो जाता है।
इस तरह से कई बार उसे वो कंकाल दिखता है और साथ ही वो खो जाता है, अब राज  अपने दिमाग का उपयोग कर घुटने के बल चलने लगता है जिससे की वो एक बार में ही उस कंकाल की बाजू, पसली और जंघा तीनों एक साथ देख सके, ठीक तभी उसकी आँखों के सामने उसे एक कंकाल की जंघा पर सिंदूर के निशान दिखाई देते हैं, वो नजर उठा कर देखता है तो फिर उसके बाजू और पसली पर भी उसे वही निशान दिखते हैं वो समय गवाएं बिना उस कंकाल के गले में रुद्रांक्ष  की वो माला डाल देता है जो उसे स्वयं तांत्रिक भैरवनाथ  जी महाराज ने दी थी।
अचानक सभी कुछ शांत हो जाता है अब तालाब में केवल एक कंकाल रहा जाता है, राज  उस कंकाल के साथ ही खड़ा हुआ है, रुद्रांक्ष  की माला डालते ही उसके ऊपर लगा सिंदूर चमकाने लगता है। तांत्रिक भैरवनाथ  जी राज  को वहां से निकलने का इशारा करते हैं और अपने आसन पर बैठ जाते हैं।
राज  वहाँ पहुंचकर देखता है की तांत्रिक भैरवनाथ  ने यहाँ पर एक अजीव तरह का चक्र बना रखा है उस चक्र के अग्र भाग में मानव खोपड़ी है और आजू- बाजू में कई और जानवरों के कंकाल हैं और उसके अंत में उल्लू का कंकाल है, उस चक्र को देख कर ही समझ आ सकता है की वो चक्र न तो किसी की मुक्ति के लिए है और न ही वो चक्र किसी देवी की उपासना के लिए बनाया गया है।
राज  उस चक्र को देखकर तांत्रिक भैरवनाथ  जी से कहता है “भैरवनाथ  जी आपने जैसा कहा मैंने बैसा ही किया पर ये चक्र, इस चक्र को देख कर लगता तो नहीं की आप किसी सात्विक शक्ति का आवाहन कर रहे हो, मुझे तो ये लगता है की आप केवल इन्हें अपना गुलाम बनाना चाहते हो जैसा की आपने और भी कई भूतो  के साथ किया है पर अगर आप ऐसा कुछ भी चाहते हैं तो भूल जायें में वैसा होने नहीं दूंगा”
तांत्रिक भैरवनाथ  राज  की ओर इस तरह देखते हैं जैसे एक सिंह किसी मृग को देखता है और कहते हैं “राज  अब समय इन सब बातों का नहीं है क्योंकि इस भूत  को मोक्ष दिलवाने के चक्कर में हम सब मारे जायेंगे, पर जो मैंने कहा था की युवराज दक्ष  और वो सब भूत  जो मोक्ष पाना चाहते हैं उनके लिए में मोक्ष का कार्य अवश्य करूँगा पर अभी हमें अंगारा  का बारे में सोचना है”
“पर जहाँ तक में जानता हूँ की वो मोक्ष नहीं चाहता और उसके रहते हुए हम किसी और को भी मोक्ष नहीं दिला सकते, इसीलिए मैंने युवराज दक्ष  की आत्मा को इस बात के राजी कर लिया है की वो हमें भूत -लोक तक का रास्ता दिखाए जिससे की हम अंगारा  को उस लोक में छोड़ कर फिर बाकी सभी को मोक्ष दिलवा सकें, क्या में अब इस क्रिया को आगे ले जा सकता हूँ”
राज  के अन्दर ग्लानि के भाव थे की वो कैसे तांत्रिक भैरवनाथ  जी से इस तरह के प्रश्न कर सकता है वो वहीं खड़े होकर उनकी आगे की क्रिया विधि को ध्यान से देखने लगा।
तांत्रिक भैरवनाथ  जी अपने आसन पर बैठते हैं और राज  समेत सभी दोस्तों से कहते हैं की “तुम सब एक जगह आकर माँ कालरात्रि  का ध्यान करो और सब अपनी आँखें बंद रखना किसी भी परिस्थिति में आँखें मत खोलना, अगर किसी भी कारण से ये करना हो तब भी सिर्फ एक दूसरे के ऊपर विश्वास रखना और कुछ नहीं, क्योंकि अब हम जहाँ जाने वाले हैं वो कोई साधारण जगह नहीं है वो भूत  लोक है”
इतना कह कर बिना किसी की सहमती का इंतजार किये तांत्रिक भैरवनाथ  युवराज दक्ष  की आत्मा को कुछ इशारा करते हैं और ध्यान में लीन होकर मंत्र पढ़ने लगते हैं,
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।“
इस मंत्र का जाप करते हुए अभी कुछ ही समय बीता था की वो सभी अनंत ब्रह्माण्ड की यात्रा पर निकल जाते हैं और बहुत से अच्छे बुरे लोकों से होते हुए वो एक लोक को पहुँचते हैं जिसे भूत -लोक कहते हैं।
इस लोक में चारों ओर बहुत चीख पुकार है और जो भी आवाज आती है लगता है किसी अपने प्रियजन या पहचान वाले की है, शरीर इस तरह से धधकता है मानों को ज्वालामुखी के अन्दर हो, कानों वो आती करुण पुकार जो अपने किसी पहचान वाले की हो इस तरह से लगती है की ये अपने बिलकुल पास है और इसे बचाया जा सकता है।
राज  इस परिस्थिति को समझ कर सभी से बोला की “चाहे कुछ भी हो जाये हमें आपने आँखें नहीं खोलनी है मैं समझ सकता हूँ की हम तक जो आवाजें आ रहीं हैं वो हमारे प्रिय जनों की हैं और उन्हें नजरंदाज करना बहुत मुश्किल है पर तुम सभी जानकारी के लिए में बता दूं की में भी अपने पिता जी की आवाज सुन सकता हूँ पर मुझे पता है की वो मेरे पापा हैं यहाँ सिर्फ भूत  हमें बहकाने की कोशिश कर रहा है, उसके किसी प्रलोभन में नहीं आना है क्योंकि ये अपना लोक नहीं हैं ये भूत -लोक है”
तांत्रिक भैरवनाथ  अपने समर्थ के आधार पर युवराज दक्ष  की आत्मा की सहायता और माँ कालरात्रि  के आशीर्वाद से भूत  अंगारा  का ध्यान आकर्षित करते हैं और उसे मजबूर करते हैं की वो और भी भूतो  की सहायता प्राप्त करने के लिए इस चक्र से बाहर जाये।
इसके लिए तांत्रिक भैरवनाथ  अंगारा  से कहते हैं की “ लो मैं तुम्हें तुम्हारे लोक ले आया ये भूत -लोक है तुम अगर चाहो तो तुम्हारे साथ के भूतो  की सहायता ले सकते हो, पर फिर भी तुम मुझे  हरा नहीं पाओगे”
भैरवनाथ  जी के इतना कहते ही अंगारा  चक्र से निकलकर भूत -लोक में जाता है और दूसरे भूतो  की सहायता के बारे में सोचता है ।
ठीक तभी तांत्रिक भैरवनाथ  जी युवराज दक्ष  की आत्मा को आदेश देते हैं। वापस आ जाओ । और वो सभी उस जगह से निकल कर कुछ ही समय में वापस आ जाते हैं।
यहाँ आने के बाद तांत्रिक भैरवनाथ  माँ कालरात्रि  का आवाहन करके युवराज दक्ष  समेत सभी  भूतो  को मुक्त करते हैं। और राज  और उसके सभी दोस्तों को भविष्य में कभी भी किसी अनजान चीज को न छूने के सलाह देते है । और वहां से चले जाते हैं।




The End.....