क्या सच में भुत प्रेत होते है।
भूत प्रेत। देवी देवता , इस संसार में कुछ तो अजीब शक्तियां होती है। जिसे हम नहीं समझ पाते। आइए जानते है एक ऐसी ही घटना के बारे में।
फरीदाबाद सिटी
चार दोस्त राज , विशाल , मुकेश और सुरेश फरीदाबाद में रहते हैं। ये चारों ही एक मिडिल क्लास परिवार का हिस्सा हैं। जहाँ राज और मुकेश के घर का वातावरण धार्मिक है, वहीं सुरेश और विशाल के घर में पूजा-पाठ सिर्फ किसी बड़े त्यौहार तक ही सीमित है।
राज को नई-नई जगह और पौराणिक स्थानों पर घूमना और उनके बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। आज भी ये चारों दोस्त राज के बताये हुए नोएडा के किले जाने की तैयारी कर रहे हैं। सुबह 6:00 बजे दो मोटरसाइकिल पर ये चारों दोस्त अपनी मंजिल नोएडा के किले की ओर निकल गए।
फरीदाबाद से नोएडा की दूरी लगभग 45 किलोमीटर की है, रास्ते में कई मनोरम दृश्य दिखाई देतें हैं। किले से कुछ पहले हजरत पीर बाबा की दरग़ाह है, जिसकी इस क्षेत्र में बहुत मान्यता है। जितना मनोरम यहां का नज़ारा दिन में होता है उतना ही ये रास्ता रात में वीरान और सुनसान हो जाता है।
किला एक ऊँची पहाड़ी पर है, जहां जाने के लिए ऊबड़-खाबड़ पथरीले रास्तों की तीन-चार पगडंडियाँ हैं। बैसे तो चढ़ाई थोड़ी कठिन है पर ये चारों नौजवान मस्ती करते हुए आसानी से किले तक पहुंच जाते हैं।
किले को देख कर जहाँ एक ओर राज का चेहरा खिल जाता है वहीं विशाल और सुरेश के लिए ये पत्थरों के पुराने खंडहर के अलावा कुछ भी नहीं। पर मुकेश इस किले में रुचि दिखता हुआ राज के पास जाकर उससे इस किले का इतिहास और इसकी विशेषता बताने को कहता है। चारों दोस्त किले के बाहर एक पत्थर पर बैठ जाते हैं और राज कहना चालू करता है.....
"ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। किला बलुआ पत्थर की चट्टान पर ऊंचाई पर खड़ा है। यहां ऊंची दीवार और बुर्ज किले को और दिलचस्प बनाते हैं। किले के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों के नौ द्वार व तेरह बुर्ज हैं।"
राज एक साइन बोर्ड की ओर इशारा करके कहता है "किला पुरातात्विक विभाग के सर्वेक्षण का हिस्सा है, इसे क्षति पहुंचाना या इसके वास्तविक स्वरूप से छेड़छाड़ करना दण्डनीय अपराध है" ऐसा इस बोर्ड पर लिखा है, तो हम में से कोई भी यहाँ की किसी भी चीज को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, खास तौर पर तुम दोनों वो विशाल और सुरेश की ओर उँगली दिखा कर कहता है। दोनों ही अपनी गर्दन हिला कर राज को अपनी ओर से निश्चिंत करते हैं।
सुरेश और विशाल किले को अब तक दो बार पूरा घूम चुके हैं। पर राज और मुकेश अभी केवल आधा किला ही देख पाये हैं, वो बहुत बारीकी से इस किले के भव्य इतिहास को समझते हुए इसे करीब से जानने की कोशिश कर रहे हैं। पर अब तक सुरेश और विशाल को भूख लग आती है और वो दोनों राज और मुकेश से बहुत परेशान हो बार-बार उन्हें नीचे चलने को कह रहे हैं। पर राज और मुकेश को तो मानो भूख और प्यास थी ही नहीं, वो सिर्फ किले को नजदीक से जानने के लिए उत्सुक हैं।
दोपहर अपने अंतिम पड़ाव पर है और शाम अपनी छटा बिखेरने को आतुर हो रही है। सुरेश और विशाल का सब्र अब जबाब दे चुका है और वो राज से कह कर नीचे उतरने लगते हैं।
राज नें भी सूरज को ढलते देख कर मुकेश से कहा कि "शाम के ५:०० बजने वाले हैं अभी नीचे उतरने में भी कम से कम एक घण्टा लगेगा, चलो हम भी नीचे की ओर चलना चालू करते हैं, जिससे रात होने के पहले नीचे दरगाह तक पहुंच सकें।
राज नीचे आकर देखता है कि विशाल और सुरेश दरगाह के सामने चाय-नाश्ते की दुकान पर चाय की चुस्की ले रहें हैं। मुकेश ने भी दुकान पर आकर अपने और राज के लिए दो चाय ऑर्डर कर दी और सुरेश और विशाल के पास जाकर बैठ जाता है। चारों इधर-उधर की बातें करते हुए चाय की चुस्की का लुत्फ उठा रहे हैं।
विशाल के पेट में चूहे कूद रहे हैं पर यहां खाने के लिए कोई व्यवस्था न देख कर उसने और सुरेश ने फरीदाबाद से 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाले एक ढाबे पर खाना-खाने का प्लान बनाया। चारों दोस्त यहां से निकलने के पहले दरगाह पर हाजिरी देते हैं। दरगाह से फरीदाबाद की ओर निकलते-निकलते अब दिन पूरी तरह ढल चुका है, रात का अंधेरा किसी भी वक़्त अपने चरम पर पहुंचने वाला है। कहने को तो अभी सिर्फ शाम के 7:00 बजे हैं पर पहाड़ी और जंगल में अंधेरा जल्दी घिर आता है।
आज अमावस्या की काली अंधेरी रात है, और ये चारों दोस्त अपनी वर्तमान रिहाइश फरीदाबाद की ओर अपनी मोटरसाइकिल से सफर कर रहे हैं। करीब आधे घंटे चलने के बाद सुरेश की गाड़ी दो-तीन झटके के साथ बंद हो जाती है, मुकेश और राज अपनी गाड़ी सुरेश के पास लगा कर पूछतें है "क्या हुआ"?
सुरेश कहता है "पेट्रोल खत्म हो गया है, शायद जल्दबाजी में डलवाना भूल गया था।"
राज चिन्तित होकर कहता है " ये तो गलत हुआ, अब इस जगह इतने बजे पेट्रोल कहाँ से मिलेगा" फिर कुछ सोच कर उसने मुकेश से अपनी गाड़ी का पेट्रोल देखने के लिए कहा।
मुकेश पेट्रोल टेंक को चेक करते हुए कहता है "मेरी गाड़ी में भी ज्यादा पेट्रोल नहीं है पर इतना तो है कि हम किसी सुरक्षित स्थान तक पहुंच सकें"
सुरक्षित स्थान का नाम सुनकर सुरेश और विशाल उन्हें उस फरीदाबाद मोड़ पर पड़ने वाले ढाबे के बारे में बताते हैं, जिसे राज और मुकेश ने भी पहले से देखा हुआ है। अब चारों अंदाजा लगाते हैं कि उनकी वर्तमान स्थिति से वो ढाबा कितनी दूर है, ढाबे की दूरी का अंदाजा लगाकर मुकेश अपनी गाड़ी का कुछ पेट्रोल सुरेश कि गाड़ी में डाल देता है जिससे वो चारों ढाबे तक पहुंच सकें। ढाबे पर पहुंच कर कुछ न कुछ व्यवस्था कर लेंगे, ऐसा सोच कर चारों आगे निकलते हैं।
पर पेट्रोल को एक गाड़ी से निकालकर दूसरी में डालने के चक्कर में बहुत सा पेट्रोल नीचे गिर जाता है, और साथ ही रात भी काफी हो जाती है। पेट्रोल अब दोनों ही गाड़ियों में कम था और उन चारों का ढाबे की दूरी का अंदाजा भी गलत साबित हुआ। ढाबे से करीब दो किलोमीटर दूर ही, पहले एक गाड़ी का और फिर दूसरी गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो जाता है। वो चारों इस समय अमावस्या की काली रात में सुनसान सड़क पर जंगल के बीच में खड़े हुए थे।
क्रमशः अगला भाग........