तांत्रिक भैरवनाथ राज की बात को सुनकर चिंतित हो गए और फिर कहा “बात तो सही है राज पर तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है हर समस्या का कुछ न कुछ तो समाधान जरूर होता है, मुझे कुछ समय अकेला रहना पड़ेगा पर उसके पहले मुझे ये शरीर मतलब विशाल के शरीर का त्याग करना होगा क्योंकि मानव शरीर की कुछ पाबंदियां होती हैं और में ये भी नहीं चाहता की जो भी में करूँ उसका असर इस पर हो”।
तांत्रिक भैरवनाथ उसी कमरे में पूर्व की ओर मुख करके ध्यान में बैठ गए और कुछ ही देर बाद विशाल का शरीर झटके खाने लगा धीरे- धीरे विशाल के शरीर से एक सफ़ेद प्रकाश निकलने लगा, उस प्रकाश के निकलते ही विशाल बेसुध हो कर वहीं गिर गया और वो सफ़ेद प्रकाश विशाल से अलग हो कर अब एक आकृति में आने लगा। सभी ने देखा की वो प्रकाश एक पुरुष के आकर में आ रहा है जो छह फुट ज्यादा लंबा है, सर के ऊपर कुछ जटाएं बंधी हुई हैं और कंधे तक लटक रहीं हैं, पुरे शरीर पर भस्म लगी है माथे पर त्रिपुण्ड बना हुआ है, शरीर पर वस्त्र के नाम पर केवल एक अंगिया है पैरों और हाथों में अष्ट धातु के कड़े हैं, गले में रुद्रांक्ष की कई मालाएं है जो काफी बड़ी हैं कई तो पेट तक आ रहीं है, दाड़ी लम्बी है और छाती तक लटक रही है पर चेहरे पर एक अलग ही चमक है।
तांत्रिक भैरवनाथ के अघोरी रूप को देखकर चारों दोस्त और वहां उपस्थित भूत भी कुछ समय के लिए जैसे बुत बन गए, न तो कुछ कहते बन पड़ रहा है और न ही पलक झपकते क्योंकि उनके मुख के तेज और कांति ने जैसे सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया है, तांत्रिक भैरवनाथ अपने वास्तविक रूप में सभी के सामने हैं और सब को अपनी ओर इस तरह देख कर वो एक हाँथ आसमान में उठा चुटकी बजाते हैं।
भैरवनाथ जी के चुटकी बजाते ही सभी की टकटकी टूट जाती है और वो सभी एक दूसरे को देखने लगते हैं। राज और बाकी सभी भी भैरवनाथ जी को दंडवत प्रणाम करते हैं और प्रश्न वाचक नज़रों से भैरवनाथ जी की तरफ़ देख रहें हैं इतने में राज ने कहा “आपको तांत्रिक कहूँ या अघोरी महाराज या कुछ और ये तो पता नहीं पर आपको देख कर ये जरूर समझ गया हूँ की आप जो भी हों आप एक सिद्ध पुरुष हैं और आप अपनी एक हज़ार साल की समाधि को तोड़कर सिर्फ हमारे लिए यहाँ हैं”
विशाल जो की अब होश में आ चूका है और वो ये सब घटना क्रम समझने की कोशिश कर रहा है पर वो किसी से कुछ कह नहीं रहा क्योंकि वो जानता है की आज नहीं तो कल उसे सब पता लग जायेगा पर वो इतना तो समझ ही चूका है की कुछ न कुछ तो हुआ है और जो भी कुछ हुआ है वो उनके नोएडा वाले ट्रिप से संबंधित है।
तांत्रिक भैरवनाथ राज की बातों को सुनकर हँसते हुए बोले “बेटा मुझे इतना सम्मान देने की जरूरत नहीं है में तो एक छोटा सा महाकाल का दास हूँ, अगर सम्मान करना ही है और किसी के सामने दंडवत होना है तो अघोरी के अघोरी, भूतों के भूत भूतनाथ भगवान महाकाल के सामने हो। क्योंकि शायद ये उनकी ही इच्छा थी जिससे विशाल ने मेरी समाधि को भंग किया और गुस्से में उसे सबक सिखाने के मकसद से में उसके साथ यहाँ तक आया, नहीं तो में ये सब कैसे जान पाता।
राज तांत्रिक भैरवनाथ से बोला “महाराजा आपसे निवेदन है की आप अपने बारे में हमें सब कुछ बताने की कृपा करें क्योंकि अब हम सब आपके बारे में जाने बिना नहीं रह सकते कृपया कर इस बार मना करना”।
तांत्रिक भैरवनाथ हँसते हुए सभी की तरफ़ देख रहें हैं और उनके चेहरे के भाव से साफ़ दिख रहा है की इस समय वो बहुत ही खुश हैं, भैरवनाथ जी आसन पर बैठते हुए बोले “राज बैसे ये सही समय नहीं है क्योंकि अंगारा इस समय हमारे कमरे के ऊपर ही बैठा हुआ है पर फिर भी क्योंकि तुम सब बार- बार मुझसे ये जानना चाहते हो इसलिए में कहता हूँ, पर उसके पहले मुझे इस कमरे को चारों तरफ़ से सुरक्षित करना होगा”।
इतना कह कर तांत्रिक भैरवनाथ उठकर कमरे को सुरक्षित करने के लिए उठे पर इतने में ही उन्हें फिर से सुरेश के चेहरे पर कुछ नज़र आया और वो राज , मुकेश और विशाल को इशारा करके सुरेश से दूर रहने के लिए कहते हैं, सुरेश जो की अब से कुछ देर पहले तक भैरवनाथ जी के सुरक्षा घेरे में था वो सभी की बातों को सुनने और वहां मौजूद भूत से डर कर सुरक्षा घेरे से बाहर आ गया है।
सुरेश की आँखें लाल हैं और वो जमीन को दोनों नाखूनों से कुरेद रहा है तांत्रिक भैरवनाथ को देख कर वो जोर-जोर से हँसता हुआ बोला “ ऐ तांत्रिक तुझे क्या लगा तुं मुझे इतनी आसानी से यहाँ से निकल देगा, अरे तेरे जैसे कई तांत्रिक, पंडित और मौलाना मिलकर भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते फिर तो तू अकेला है वो भी आत्मा के रूप में, तेरे जैसे लोग शरीर के साथ मेरा कुछ नहीं कर सकते तू क्या कर लेगा”।
इतना कह कर भूत अंगारा ने अपना सर जोर से दीवार पर मार दिया जिससे सिर से खून निकलने लगा, अब तो उसका चेहरा और भी भयानक लगने लगा सर से टपकता जो खून होंठ तक आ रहा है उसे वो बहुत ही स्वाद से जीभ निकाल के चाटता जा रहा है और बहुत ही भद्दी हंसी हंस रहा है।
अब वो एक ही झटके में उठ कर खड़ा हो गया और फिर से सर को दीवार से मारने ही वाला था की इतने में तांत्रिक भैरवनाथ ने अपना हाँथ हवा में उठाया और कुछ मंत्र पढ़ कर ‘फट’ कहते हुए उसकी तरफ़ किया जिससे वो जहाँ था वहाँ पर ही रुक गया मानो किसी ने उसे पीछे से पकड़ रखा हो, पर ये दाव उसे बहुत देर तक रोक नहीं पाया और ‘हूँ’ की आवाज के साथ वो पलट गया, अब वो एकदम तांत्रिक भैरवनाथ के सामने है।
अगला भाग क्रमशः