देवेश और मेघना किसी ऐसे ही अवसर को चाहते थे,जँहा वो वैष्णवी की बेज्जती कर सके। देवेश ने एक ब्रांडेड सूट और मेघना ने लेस ड्रेस पहनी थी। वे दोनों एक दूसरे के लिए परफेक्ट दिख रहे थे।
जब देवेश ने वैष्णवी को देखा, जो इतने सादे कपड़े पहने हुए थी, तो उसने तुरंत भौंहें सिकोड़ीं और गुस्से से पूछा, "तुम इस तरह के कपड़े क्यों पहने हुए हो?"
"मैं जो पहनती हूं उसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है," वैष्णवी ने आलस के साथ उत्तर दिया।
देवेश का स्वर कठोर था,और उसने वैष्णवी को चेतावनी देते हुए कहा......आज रात मुझे शर्मिंदा मत करना। क्योंकि दूसरे लोगों की नज़र में, तुम अभी भी मेरी पत्नी हो। अगर तुमने इँहा कोई तमाशा करने की हिम्मत की, तो तुम्हारा अंत बहुत बुरा होगा।
तभी मेघना ने एक अच्छी इंसान होने की भूमिका निभाते हुए कहा..... देवेश ऐसा मत कहो शायद मिस वैष्णवी के पास अच्छे कपड़े पहनने का समय नहीं था? मेरे कमरे में कुछ अन्य ड्रेस हैं, और वे सभी बहुत अच्छी हैं। तुम मेरे साथ ऊपर क्यों नहीं आती और एक पहन लेती हो?"
जो लोग नहीं जानते थे, उन्हें लगा कि मेघना कितनी दयालु और उदार थी।
दरअसल, वह वैष्णवी को उकसा रही थी। और दिखावा कर रही थी। तीन दिन में ही, उसने वैष्णवी की जगह ले ली थी और आधिकारिक तौर पर घर की मालकिन के रूप में कुलकर्णी परिवार में आ गई थी।
दुर्भाग्य से, मेघना ने दिखावा करने के लिए गलत व्यक्ति को चुना था। वैष्णवी के लिए, न केवल देवेश महत्वहीन था, बल्कि सौ देवेश भी एक विशेष एजेंट के रूप में उसके पिछले जीवन की उपलब्धियों की तुलना में कुछ भी नहीं थे।
वैष्णवी ने बिना किसी भाव के साथ कहा,"कोई ज़रूरत नहीं, तुम अपने गंदे कपड़े अपने पास रख सकती हो।"
उसके ऐसे निर्दयी शब्दो को सुनकर, मेघना का चेहरा काला पड़ गया और यँहा तक देवेश की अभिव्यक्ति भी कठोर हो गई।
"वैष्णवी, तुम..." उसने गुस्से से जवाब देना शुरू किया, लेकिन एक मध्यम आयु वर्ग की महिला की आवाज ने उसे बाधित कर दिया।
"यंग मास्टर, यंग मैडम, आप आखिरकार आ ही गए। बूढ़े मालिक ने मुझे यहीं प्रतीक्षा करने और आपको आपको उनके पास backyard में ले आने के लिए कहा था," कुलकर्णी परिवार की नौकरानी सविता ने देवेश और वैष्णवी को देखते हुए कहा......
देवेश को वैष्णवी को तलाक देने की अपनी योजना का खुलासा करने का डर था, इसलिए वह चुप रहा और वैष्णवी का पीछे चलने लगा। क्योंकि उन्हें सविता द्वारा हॉल में अंदर ले जाया जा रहा था।
जैसे ही वे बैकयार्ड में पहुंचे, उन्हें वँहा ओल्ड मास्टर कुलकर्णी की घवराई हुई आवाज़ सुनाई दी.... जल्दी से कोई डॉक्टर समीर खन्ना को बुलाओ। उन्होंने चिल्लाते हुए कहा।
जल्द ही, एक घबराया हुआ नौकर उन लोगों के पास से गुजरा। और वे जब आगे बढे तो उन्होंने एक बहुत ही सुंदर युवक को बेंच पर बैठा हुआ देखा, जिसका चेहरा पीला पड़ गया था, और उसकी लम्बी, पतली पलकें हल्की-सी फड़क रही थीं, जबकि उसने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं।
अपने बीमार स्वरूप के बावजूद, भी उसकी सुंदरता में कोई कमी नही आयी थी।
"यह वही है, वैष्णवी ने आश्चर्यचकित होकर अपनी आँखें सिकोड़ लीं।
लेकिन इस समय वह युवक काफी भयानक लग रहा था...
ये इंसान कोई और नही बल्कि रौनक ओबेरॉय था, जिसका चेहरा पीला पड़ चुका था, और उसका पतला, गोरा हाथ उसकी छाती पर दबा हुआ था और वह भारी साँस ले रहा था।
उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि वह किसी बीमारी से पीड़ित हैं।
वह सोचने लगी की आज वह यहाँ क्यों आया है? और उसकी पहचान क्या है।
चारों ओर देखने पर उसे कई लोग दिखाई दिए, जिनमें सुमित्रा कुलकर्णी भी शामिल थीं, जिन्होंने उसके पुनर्जन्म के दिन उस पर हमला किया था।
लेकिन आज, शायद ओल्ड मास्टर कुलकर्णी की उपस्थिति के कारण, श्रीमती सुमित्रा एक तरफ खड़ी हुई थी, और बिना किसी तमाशा किये हुए उसे ही घूर रही थी।
वैष्णवी ने चारों तरफ़ देखा लेकिन उसे रौनक का निजी अंगरक्षक विक्रम दिखाई नहीं दिया।
हालाँकि रौनक भारी साँस ले रहा था, लेकिन उस आदमी की आभा वँहा उपस्थित लोगों में सबसे अधिक चमकदार थी।
उसकी आत्मा की गहराई से निकली एक हल्की सी गुनगुनाहट से ही उसके आस-पास के लोगों को खतरे का अहसास हो जाता था।
रौनक ने अपनी आँखे ऊपर उठाई और वैष्णवी की तरफ देखा, जाहिर तौर पर उसने वैष्णवी की उपस्थिति को नोटिस कर लिया, लेकिन उसकी वर्तमान शारीरिक स्थिति ने उसे ज्यादा कुछ कहने की अनुमति नहीं दी।
"जीजाजी, आपको क्या हुआ?" देवेश ने घवराते हुए पूछा.....बेशक, वह जिस चीज से भयभीत था, वह रौनक की शारीरिक स्थिति नहीं थी। बल्कि उसका बैकग्राउंड था।
वह एक ऐसा आदमी है, जो दुनिया की नज़र में एक दानव और एक देवता जैसा है।
इस शहर में कुलकर्णी परिवार की स्थिति के विपरीत, यह व्यक्ति निर्दयी और क्रूर है, और वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसका व्यापार अंतर्राष्ट्रीय दुनिया के काले और सफेद दोनों पक्षों में फैला हुआ है।
यदि कुलकर्णी परिवार के मुखिया के जन्मदिन के भोज में उसे कुछ हो जाए तो... तो उसके लोगों द्वारा कुलकर्णी परिवार को मिटा दिया जायेगा। जिसकी वजह से आज उपस्थित मेहमानों सहित पूरा कुलकर्णी परिवार प्रभावित होगा।
पूरे बैकयार्ड में सन्नाटा छाया हुआ था।
"खाँसी!" यह वह क्षण था जब रौनक ने अचानक एक हाथ से अपनी छाती पकड़ ली।
अचानक तीव्र दर्द के वजह से उसके माथे की नसें उभर आईं और सूखी खांसी के बाद उसके पतले होठों के कोनों से लाल खून की धार बह निकली।
गहरा लाल खून उसकी ठोड़ी से बहकर उसकी सफेद शर्ट पर फैल गया, जिससे लाल दाग बन गया।
उसने अपना सिर थोड़ा ऊपर उठाया और वैष्णवी की ओर देखा, उसका बीमार और सुंदर चेहरा अंधेरे से लौटे एक दूत जैसा लग रहा था।
यदि इसे सही प्रकार से वर्णित किया जाए तो, बीमार रौनक को इस समय वैष्णवी की मदद की जरूरत थी।
वैष्णवी रौनक को देखते हुए पुरानी यादों में खो गयी।
उसका पिछले जन्म का प्रिय पालतू जानवर एक खूंखार अफ्रीकी बाघ था।
वैष्णवी एक बार अपने मिशन को अंजाम देने के लिये एक घने जंगल से गुजर रही थी। वँहा उसने एक बाघिन के बच्चे को खूंखार गीदडो के बीच में फंसे देखा। जो मरने के कगार पर था, और वैष्णवी को दया भरी नज़रों से देख रहा था।
इस समय उसकी आँखें रौनक की आँखों से बहुत मिलती-जुलती थीं...
मिस्टर कुलकर्णी इस समय बहुत घवराये हुए थे। उन्होंने रौनक से पूछा....तुम्हें कैसा लग रहा है?"
देवेश के दादा मिस्टर कुलकर्णी ने चिल्लाते हुए नौकरो से कहा....."डॉक्टर? डॉ. खन्ना कहाँ है? डॉ. खन्ना को जल्दी बुलाओ।"
दुर्भाग्यवश, जो व्यक्ति वँहा वापस आया, वह डॉ. खन्ना नहीं था, बल्कि वह व्यक्ति था जो उन्हें बुलाने गया था।
"उसने बताया कि डॉ. खन्ना ने आज छुट्टी ले ली है! वह आज सुबह ही ग्रामीण इलाकों में गये है, और उन्हे वहां से यहां आने में कम से कम डेढ़ घंटा लगेगा..."
उस व्यक्ति का यह कहना किसी बम फोड़ने के समान था, क्योंकि एक जो उम्मीद बकाया थी, वो भी टूट चुकी थी।
क्योंकि कुलकर्णी परिवार का घर पहाड़ के आधे रास्ते पर था, जो शहर से बहुत दूर था। और एकमात्र पारिवारिक डॉक्टर यहाँ उपस्थित नहीं था, और शहर से दूसरा डॉक्टर ढूँढने में कम से कम दो घंटे लगेंगे।
ऐसी अचानक बीमारी के कारण, अगर डॉक्टर के आने का इंतजार करेंगे तो बहुत देर हो जाएगी!"हमें क्या करना चाहिए? अगर उसे कुछ हो गया तो सब ख़त्म हो चुके।
"हे भगवान, क्या जिंदगी ऐसे ही खत्म होती है? मैं मरना नहीं चाहता! मैं उसके उस डरावने समूह से निपटना नहीं चाहता!" लोगो आपस में ऐसी बाते करने लगे।
"मदद करो! क्या कोई उसे बचा सकता है!"
जब सबके चेहरे पीले पड़ गए और वे असमंजस में पड़ गए कि क्या करें, तभी अचानक एक स्वर्गीय गीत जैसी मधुर आवाज गूंजी -
यह वैष्णवी थी, जिस पर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था, लेकिन किसी तरह वह रौनक के सामने आ गयी थी।
सबके सामने आते हुए उसने कहा, "मैं उसकी बीमारी ठीक कर सकती हूँ!"
उसकी बात सुनकर बैकयार्ड में मौजूद सभी लोगों को ऐसा लगा जैसे उन्होंने कोई सबसे बड़ा मजाक सुन लिया हो।
पहले का चिंताजनक माहौल अचानक रुक गया, और उसकी जगह दो आँखें वैष्णवी को घूरने लगीं।
कुछ देर की खामोशी के बाद आखिरकार कोई बोला, "क्या यह कुलकर्णी परिवार की बेकार मिस आहूजा नहीं है? वह इस समय यहाँ क्या कर रही है और परेशानी खड़ी कर रही है?"
वे सभी पागल होने की कगार पर थे, और अब वैष्णवी ने हिम्मत करके आकर बकवास करना शुरू कर दिया। वह क्या सोच रही थी?
"उसके जैसा बेकार व्यक्ति ऐसे अहंकारी शब्द बोलने की हिम्मत कैसे कर सकता है, यह कहते हुए कि वह किसी को बचा सकती है? यह बहुत बड़ा मजाक है!"
"बाहर निकलो! बेकार लड़की, भीड़ में से किसी ने चिल्लाते हुए कहा।
भीड़ एक बार फिर बेचैन हो गयी।
दूसरी तरफ, जब वैष्णवी ने बात की तो देवेश बुरी तरह डर गया था। जब तक मेघना ने उसे एक तरफ नहीं खींचा, तब तक उसे होश नहीं आया।
वह क्या सोच रही थी, ऐसे समय में ऐसा दृश्य बना रही थी? क्या उसे लगता है, मैं ऐसे उस पर ध्यान दूँगा... देवेश ने सोचा।
"वैष्णवी, तुम क्या कर रहे हो?" अपना मुंह बंद करो और यहां से चली जाओ! देवेश ने उससे कहा।
वैष्णवी ने उसकी ओर देखा तक नहीं, उसकी नज़रें रौनक पर टिकी थीं।
जिसकी साँसें कमज़ोर होती जा रही थीं... वह अधिक समय तक जीवित नही बचेगा।
अपने आस-पास के लोगों की चीख-पुकार को नज़रअंदाज़ करते हुए वैष्णवी ने ठंडे स्वर में कहा.... "अब, केवल मैं ही उसे बचा सकती हूँ।"
यह कितना अहंकारपूर्ण बयान है। लोगों ने कनाफुसी शुरू कर दी।
यहां तक कि देवेश के दयालु दादा भी गंभीर दिखे, और उन्होंने कहा....वैष्णवी यह खिलवाड़ करने का समय नहीं है!"
"मिस वैष्णवी, अब मज़ाक करने का समय नहीं है। हर कोई चिंतित है, हालात को और ख़राब मत करो!" मेघना ने कहा, उसकी आँखें उपहास से भरी हुई थीं।
एक पल के लिए सभी की निगाहें वैष्णवी पर टिक गईं।
सुमित्रा कुलकर्णी ने उसके पास जाते हुए कहा...."तुम छोटी वेश्या, तुम्हें पीटे हुए कुछ दिन हो गए हैं, और तुम पिटने के लिये क्या फिर से उत्सुक हो रही हो।"
"पहले, पुरुषों को लुभाना ठीक था, लेकिन अब, तुम रौनक ओबेरॉय के बारे में भी सोचने की भी हिम्मत कर रही हो। तुम एक बेशर्म वैश्या के अलावा कुछ नहीं हो! मैं आज तुम्हें यहीं मार डालूँगी!"
देवेश की माँ सुमित्रा कुलकर्णी अब और बर्दाश्त नहीं कर सकी और वैष्णवी पर हमला करने के लिए तैयार हो गई।
किसी ने यह नहीं देखा कि वैष्णवी की आँखें धीरे-धीरे ठंडी हो रही थीं।
हालाँकि, हर कोई वैष्णवी को उपहास, क्रोध और तिरस्कार से देख रहा था, सुमित्रा कुलकर्णी ने वैष्णवी के माथे पर वार करने के लिए अपना हाथ आगे बढा दिया।
तो क्या होगा आगे क्या सुमित्रा कुलकर्णी वैष्णवी को पिटने में हो जायेगी सफल या मौत की रानी का लोग कमाल देखेंगे.... या कुछ और होने वाला है..... जानने के लिये पढ़ते रहिये इस मजेदार कहानी को।।