राज ये सब देख कर अपना होश खोने लगा, मुकेश ने उसे सहारा देकर पास के एक पत्थर से टिका कर खड़ा कर दिया। राज अब भी अपनी आँखों को बंद किये हुए है और मुकेश को अपने से दूर कर रहा है, उसे अभी भी लग रहा है की मुकेश की जगह कोई भूत या भूत उसके साथ है, अचानक वहां का मौसम फिर से बदलने लगा और अभी तक दिखने वाले सभी भयावह और बुरे निशान गायब हो गए, एक जानी-पहचानी आवाज राज और मुकेश के कान से टकराई “क्या हुआ बच्चों”।
ये ओर कोई नहीं तांत्रिक भैरवनाथ जी ही थे जो पास ही खड़े हो कर यहाँ का नज़ारा देख रहें हैं, उन्होंने ही आवाज देकर राज का और मुकेश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, भैरवनाथ जी वहां का मंजर देख कर बोले “ये क्या कर रहे हो तुम दोनों, हमारे पास आराम करने का समय नहीं है, तुम्हें पता होना चाहिए की ये जगह सुरक्षित नहीं है, यहाँ कदम-कदम पर अंगारा के भूत -जाल हैं, अभी कुछ देर पहले जो कुछ भी तुम दोनों ने देखा वो सिर्फ एक भूत -जाल था जिसे अंगारा ने तुम्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिए रचा था, पर अब कोई दिक्कत नहीं है में तुम्हारे साथ हूँ, चलो आगे बढ़ते हैं”।
इतना कह कर तांत्रिक भैरवनाथ जी राज और मुकेश को आगे बढ़ने का इशारा कर के खुद भी उनके आगे सामने की ओर पहाड़ी पर चल दिए। करीब आधा घंटा और चलने के बाद वो सभी किले की पश्चिमी दीवार तक पहुँच गए, ये दीवार सिर्फ कहने के लिए ही दीवार थी, क्योंकि वो पहले ही जगह-जगह से टूट कर गिर चुकी थी, तीनों आसानी से उस दीवार को फांद कर किले के अंदर दाखिल हो गए, अब बारी थी एक ऐसी जगह की तलाश करने की जहाँ पर युवराज दक्ष का कुछ सामान मिल सके और जैसा की पहले से पता था की वो जगह सिर्फ और सिर्फ भूल-भुलैया ही थी।
सभी एक दूसरे से बिना कुछ कहे सिर्फ भूल-भुलैया ही ढूँढ रहे थे कुछ देर तक अँधेरे में यहाँ-वहां घूमने के बाद एक पतली और संकरी गली मिली जिसका एक छोर जहाँ पर दो दीवार इस तरह से आकर मिलती थीं की एक दीवार दूसरी दीवार के सामने की तरफ़ थी जिसकी वजह से उन दोनों दीवार के बीच में एक संकरी और पतली गली बन जाती थी जो कुछ दूर बाद एक दरवाजे तक जाती, उस दरवाजे की लम्बाई करीब तीन फिट और चौड़ाई करीब डेढ़ फिट थी, उसकी हालत को देख कर ऐसा लगता था की मानो छूने भर से नीचे गिर जायेगा।
राज धीरे से उस दरवाजे को अंदर की तरफ़ धकेलता है और दरवाजा बिना किसी आवाज के खुल जाता है पर अंदर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने कोई लाश जलाई हो क्योंकि दरवाजा खुलते ही अंदर से बहुत सारा धुआं बाहर आ रहा था, उस धुएँ की गंध बिलकुल जलती हुई लाश की गंध जैसी ही थी, राज इस बात को नज़र अंदाज करता हुआ आगे बढ़ने ही वाला था की तांत्रिक भैरवनाथ ने उसका हाँथ पकड़ कर उसे रोक लिया, और इशारे से उसे अपने पीछे आने के लिए कहा, राज ने सामने से हट कर भैरवनाथ जी को आगे जाने के लिए जगह दी।
तांत्रिक भैरवनाथ जी अपने पास रखे सिंदूर को झोले से निकालकर हाँथ में लेकर जोर से मंत्र का उच्चारण करते हैं “ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय, नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतभूत दमनाय स्वाहाः।।“ और फिर अंदर की तरफ़ सिंदूर फूंक देते हैं, मानो जैसे कमाल हो गया धुआं और वो गंध दोनों ही तुरंत ख़त्म हो गई। अब तीनों अंदर प्रवेश करते हैं, राज और मुकेश साथ लाई टॉर्च को रोशन कर लेते हैं जिससे अंदर देखने में आसानी हो, भूल-भुलैया में कुछ अंदर जाते ही तांत्रिक भैरवनाथ एक दीवार को देख कर रूक जाते हैं, वो उस दीवार पर हाँथ रख कर मन ही मन कुछ मंत्र बोलते हैं और फिर राज को इशारे से अपने पास आने को कहते हैं।
भैरवनाथ जी दीवार की ओर इशारा कर के राज को धीरे मगर स्पष्ट शब्दों में कुछ समझाते हैं, फिर राज अपनी गाड़ी के की-चैन से, जो की एक छोटे चाकू के आकर था, दीवार पर लगी ईंट के एक भाग को काटने लगता है, फिर तांत्रिक भैरवनाथ मुकेश को अपने पास बुलाकर उसे राज की मदद करने को कहते हैं, करीब आधा घंटे की लगातार मेहनत के बाद ईंट का एक टुकड़ा जिसे विशेष आकार में काटा गया था अब दीवार से अलग हो कर राज के हाथों में है और वो उसे अपने साथ लाये एक छोटे पर सुरक्षित बैग में रख लेता है।
अब तीनों लोग उस भूल-भुलैया से बाहर आने के लिए दरवाजे की तरफ़ जाते हैं, दरवाजा जो की पहले एक हल्के से दबाव से खुल गया था अब पूरी तरह से बंद है, राज और मुकेश के काफी प्रयास करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो वो दोनों पूरी तरह निराश होकर तांत्रिक भैरवनाथ जी की तरफ़ देखते हैं जैसे की अब वही एक मात्र हैं जो दरवाजे को खोल सकते हैं, भैरवनाथ जी उन्हें हटने का कह कर खुद दरवाजे को खोलने की कोशिश करते हैं पर उनके कई बार धक्का देने पर भी दरवाजा टस से मस नहीं होता।
काफी समय तक कोशिश करने के बाद भी दरवाजा नहीं खुलता तो भैरवनाथ जी अब एक बार फिर उस दरवाजे को खोलने के लिए अपनी मंत्र शक्ति का प्रयोग करने का विचार करते हैं, पर जैसे ही वो सिंदूर को निकलने के लिए अपने झोले की तरफ़ हाँथ बढ़ाते हैं. “अरे ये क्या मेरा झोला कहाँ है, ओह नहीं अब याद आया में अपने झोले को तो बाहर ही छोड़ आया जब मैंने सिंदूर निकाला था तो मंत्र फूंकते समय झोला हाँथ से सरक कर नीचे गिर गया था”।
राज आगे आता हुआ तांत्रिक भैरवनाथ जी से बोला “पर आप तो मंत्र की शक्ति से भी इस दरवाजे को खोल सकते हो” भैरवनाथ जी राज की ओर देख कर बोले “नहीं कर सकता क्योंकि ये जो तुम्हें सामने दिख रहा है ये दरवाजा नहीं है ये भूत -जाल है जो अंगारा भूत ने अपनी काली शक्ति का प्रयोग करके खड़ा किया है, इसे खोलने के लिए मुझे अभिमंत्रित सिंदूर की जरूरत पड़ेगी जो मेरे कई और सिद्ध सामानों के साथ बाहर ही है, अब केवल एक ही रास्ता है, गुरुदेव वो ही कुछ कर सकते हैं”।
अगला भाग क्रमशः :