Anokha Vivah - 24 in Hindi Love Stories by Gauri books and stories PDF | अनोखा विवाह - 24

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अनोखा विवाह - 24

पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे अनिकेत , सुहानी से पूरी शादी के दिन की पूरी सच्चाई जान लेता है फिर सुहानी को उसके मायके जाने के लिए मानसी को बुलाकर तैयार करवाता है....... अब आगे 


सुहानी और अनिकेत दोनो सुहानी के मायके जाने के लिए सीढियों से नीचे उतरते हैं,, फिर वो दोनों सावित्री जी के कमरे में जाकर उनसे आशीर्वाद लेकर सुहानी के घर के लिए निकल जाते हैं रास्ते में अनिकेत का मूड कुछ अच्छा नहीं होता तो पर फिर भी उसे याद आता है कि दादू का कॉल आया था इसलिए वो दादू को कॉल करके फोन स्पीकर पर करके सुहानी के हाथ में रख देता है तीन कॉल के बाद ही अखण्ड प्रताप अनिकेत का कॉल रिसीव कर लेते हैं और हेल्लो बोलने के बाद उन्हें गाड़ी के हॉर्न की आवाज आती है तो वो खुद ही पूछ लेते हैं," कहीं बाहर जा रहे हो बेटा" ,,,,,,,,जी दादू सुहानी को उसके घर ले जा रहा हूं ,,,,,,, ठीक है अनिकेत ले जाओ मुझे पता है कि मेरा पोता कभी किसी के साथ गलत कर ही नहीं सकता( आखिरी वाली बात अखण्ड प्रताप बहुत रौब से कहते हैं) बेटा मैंने कुछ शगुन का सामन भेज रहा हूं तुम्हारे पहुंचने के साथ ही वो भी पहुंच जाएगा ,,,,,,,,,,जी दादू अब मैं फोन रखता हूं ,,,,,,,फोन‌ के कटने के बाद अनिकेत , सुहानी के हाथ से अपना फोन ले लेता है और थोड़ी देर बाद गाड़ी एक छोटी सी शॉप पर रोकता है और बाहर निकल कर एक पानी की बोतल लेकर आता है उस बोतल को सुहानी के हाथों में रख देता है और थोड़ा सॉफ्ट आवाज में कहता है," सुहानी तुम्हें पता है ना कि तुम्हारी शादी हो गई है और अब तुम्हारा मन हो या ना पर तुम्हें रहना मेरे साथ ही है 


सुहानी, अनिकेत की इस बात का कोई जवाब ना देकर अपना सिर नीचे कर लेती है और धीरे से कहती हैं ," हमें दीदी , मां, पापा सबकी याद आती है ,,,,,,,,, हां मैं मानता हूं कि तुम्हें याद आती है पर समझने की कोशिश करो अगर कोई रोके तो रूक जाना पर अगर ज्यादा कोई कुछ ना कहें तो फिर कोई जरूरत नहीं है रूकने की मैं तुम्हें वापस घर ले चलूंगा अब पानी पी लो हम बस पहुंचने वाले हैं,,,,,,, सुहानी का चेहरा अनिकेत 

की आखिरी वाली बात सुनकर खिल गया था कुछ ही देर में गाड़ी सुहानी के घर के सामने थी 


गाड़ी रूकने पर अनिकेत कार से उतरकर सबसे पहले सुहानी की तरफ का डोर खोलता है फिर दोनों साथ में घर के अन्दर जाते हैं घर के अन्दर पहुंचते ही दोनों सुहानी के मां पापा से मिलते हैं अनिकेत समझ जाता है कि जिस तरह से शादी हूई थी उसकी वजह से अभी भी सुहानी के मां पापा नाराज़ हैं पर फिर भी वो दोनों उससे बहुत अच्छे से बात कर रहे थे पर सुहानी उदास थी क्यों कि हर बार की तरह आज उसके मां पापा उससे नहीं मिले थे अनिकेत सुहानी का उदास चेहरा देख लेता है वो चुपचाप बैठी थी तभी कमरे के अन्दर नाश्ते की ट्राली लेकर कोई एंटर करता है वो कोई और नहीं बल्कि सुहानी की बड़ी बहन काव्या ही थी जिसने नीरज से शादी करने की वजह से अपनी छोटी बहन को मंडप में बैठा दिया पर काव्या की किस्मत अच्छी ना होने की वजह से नीरज ने भी उसे धोखा दे दिया तो जबसे काव्या लौट कर आई थी वो बस अनिकेत का इन्तजार कर रही थी बल्कि आज उन दोनों को उसने ही रश्म के लिए बुलाया था क्यों कि सुहानी के मां पापा आज भी सुहानी से नाराज़ थे अपनी जान में उन्होंने हमेशा सुहानी की हर ख्वाहिश पूरी की थी और अपनी खुद की बेटी को सुहानी के आगे उतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया था पर उन्हें क्या पता था कि जिसकी वो ख्वाहिश पूरी कर रहे हैं


वो उनकी बेटी का दूल्हा भी ख्वाहिश के तौर पर ले लेगी पर सुहानी के मां पापा को ये भी नहीं पता था कि जो ख्वाहिश सुहानी की वो पूरी कर रहे थे उन्हे काव्या उनकी खुद की बेटी बीच में आकर ही अधूरा छोड़ देती थी और हर बात को इस तरह दबाती थी कि वो काव्या की चालाकियां कभी नहीं खुलती पर इस बार उसने सबसे बड़ी ग़लती की थी उसने किसी और से शादी करने के चक्कर में अपनी ही छोटी बहन को बलि का बकरा बना दिया था और ये बात अनिकेत बहुत अच्छे से जान गया था इसीलिए जब काव्या कमरे में आई तो अनिकेत के चेहरे की नसें गुस्से से तन गई,, काव्या सीधा सुहानी के पास गई और उसके सिर पर हाथ रख कर सहलाते हुए पूछने लगी," छोटी तुम ठीक हो ना मैंने तुम्हारे कहने पर ही अनिकेत को तुम्हें दे दिया तुम खुश तो हो ना सुहानी काव्या की ये बात सुनकर भी चुप थी तो काव्या ने उसे कमरे में चलकर बातें करने के लिए कहा पर अनिकेत सब कुछ बहुत ध्यान से सुन और देख रहा था उसने सुहानी को कहीं भी जाने से रोक लिया,,,,, और अपनी जगह से उठकर गुस्से से उसके पास आया और रौबदार आवाज में काव्या से कहने लगा


," मैं कोई चीज नहीं हूं जो तुमने मुझे किसी और को दे दिया तुम अनिकेत प्रताप सिंह को मंडप में छोड़कर गई थीं शायद इसका हर्जाना कितना है ये तुम्हें मालूम नहीं लेकिन फिर भी मैं तुम्हें माफ़ करता हूं क्यों कि तुम मेरी प्यारी पत्नी की बड़ी बहन हो उस नाते मेरी भी बड़ी बहन हूई ना तो आज के बाद अपनी फ़ालतू बातें अपने पास रखना और बेहतर होगा कि तुम मेरी वाइफ से दूर रहना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा , आज पहली बार किसी ने उससे ऐसे बात की थी काव्या को उम्मीद नहीं थी कि सुहानी को कोई अपनी प्यारी पत्नी कहर सम्बोधित कर सकता है  , काव्या को ये बात सुनकर बहुत गुस्सा आ रहा था फिर भी उसने अपने ऊपर बहुत कन्ट्रोल किया और चुप रही , अनिकेत ने इतना कहकर सुहानी से पूछा ," सुहानी तुम्हारा कमरा कहां है मैं चाहता मैं पहले फ्रेश हो लूं उसके बाद नाश्ता करूं, अनिकेत की बात खत्म होते ही काव्या अनिकेत से अपने साथ चलने को कहती है तो अनिकेत थोड़ी सख्त आवाज में कहता है," मैं अपनी पत्नी के साथ चला जाऊंगा आप ये नाश्ता गर्म कर दे ठंडा हो गया है तब तक हम आते हैं,,,,,,,,,,,,, सुहानी चलें,,,,,,,,,,, हम्ममम चलिए 


इतना कहकर सुहानी, अनिकेत के साथ अपने कमरे में आ जाती है  ,पर अनिकेत को नहीं पता था कि जिस कमरे में वो आया है वो कमरा काव्या का भी है , अनिकेत  सुहानी को वहीं छोड़ कमरे से लगे वाशरूम में चला जाता है थोड़ी देर बाद सुहानी अपनी दीदी से मिलने के लिए कमरे से बाहर निकलने ही वाली थी तभी काव्या खुद ही कमरे में आ गई और स्टूल पर रखा अपना फोन हाथों में ले लिया जिससे अगर अनिकेत बाहर आए तो वो फोन का बहाना बना कर कमरे में आने का रीजन दे सके , काव्या आज इतने गुस्से में थी कि उसने सुहानी के सामने बिना अच्छा बन उसका हाथ पकड़ मोड़ते हुए उससे कहने लगी मैंने तुम्हें अपनी जगह दी है पर अब मैं अपनी जगह वापस चाहती हूं अब से तुम यहीं रहोगी अनिकेत से कहना कि तुम यहीं रहना चाहती हो और वैसे भी तुम अभी सत्रह साल की हो ना तुम क्या ही करोगी अनिकेत के साथ तुम्हें तो कुछ आता भी नहीं ठाकुर हवेली के लिए तो मैं बनी हूं ठीक है ना जैसा कहा है वैसा करना, पर सुहानी को तो अनिकेत ने पहले ही कह दिया था कि रूकने की जरूरत नहीं है तो उसने काव्या से साफ मना करते हुए हवेली जाने की बात कह दी,"सुहानी ने रोते हुए कहा दीदी हम नहीं रूक सकते " 


काव्या- मुझसे जवान लड़ा रही हो काव्या ने जैसे ही अपना हाथ उठा सुहानी को थप्पड़ मारने की कोशिश की वैसे ही किसी मजबूत हाथ ने काव्या के हाथ को रोक लिया उसे दूर धकेल दिया और गुस्से से दहाड़ने लगा," तुमसे कहा था ना मेरी पत्नी से दूर रहना तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसको हाथ लगाने की , काव्या बहुत गुस्से में थी उसने एक बार फिर , सुहानी पर झपट्टा मारा और गुस्से से चिल्लाने लगी ," इस लड़की ने पहले मेरे मां पापा को ले लिया मेरी सारी ख्वाहिशें ले लीं फिर उस नीरज को भी उसे तो जब से ये दिखी इसके पीछे पागल हो गया मुझसे शादी तक नहीं की और ये पता नहीं किस मिट्टी की बनी है मैं कितनी भी कोशिश करूं मरती ही नहीं है मैंने कितने बार कोशिश की और जब खुद से इसका पीछा नहीं छोड़ा पाई तो इसका स्कूल ही छोड़ा दिया ये अनपढ़ हैं अनपढ़ और इसे मैंने ही बनाया अनपढ़ तुम्हारी पत्नी अनपढ़ हैं कुछ नहीं आता है इसे कहां ले जाओगे इसे अपने साथ, तुम तो ठाकुर इन्टरप्राइजेज के सीईओ बनने वाले हो ना तो फिर इससे छुटकारा नहीं चाहिए तुम्हें तुम्हारे लिए मैं सबसे अच्छी लड़की हूं तुम जानते हो ये सिर्फ सत्रह की है ये शादी झूठी है देखो तुम मुझसे शादी कर लो बहुत खुश रखूंगी तुम्हें ,,,,,,,,,,,, काव्या बस बोले जा रही थी और सुहानी आज पहली बार अपनी दीदी को इतने गुस्से में देख रही थी जिससे वो सबसे ज्यादा प्यार करती थी , अनिकेत काव्या का पागलपन देख बिल्कुल शॉक्ड था उसने गुस्से से चिल्लाया," बस बहुत हुआ सुहानी चलो यहां से तुम्हारी बहन पागल हो गई है इतना कह वो जैसे चलने लगा काव्या ने आगे बढ़ सुहानी की गर्दन पकड़ उसे दबाने लगी तभी अनिकेत ने काव्या के हाथ से सुहानी की गर्दन छुड़ाकर काव्या के एक थप्पड़ लगा दिया और चिल्लाने लगा," हिम्मत कैसे हूई मिस काव्या मेरी पत्नी को हाथ लगाने की और क्या कहा था तुमने कि इसे कुछ आता नहीं है ये अनिकेत प्रताप सिंह की पत्नी है तुम तो इसके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हो लेकिन फिर भी तुम्हें ये जो ग़लत फहमी है ना इसे कुछ आता नहीं जल्द ही दूर कर दूंगा बस आज के बाद इसके आस पास भी मत भटकना वरना मैं तुम्हें जान से मार दूंगा,,,,,,,,,,,, इतने शोर को सुनने के बाद सुहानी के मां-पापा भी ऊपर आ चुके थे और अपनी बेटी का ये रूप देखकर गुस्से से भर गए थे पर उससे ज्यादा वो टूट चुके थे उन्होंने आगे बढ़कर सुहानी के सिर को प्यार से सहलाया और उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहने लगे ," मुझे माफ कर देना बेटा मुझे नहीं पता था कि मैं तुम्हें अनाथालय से तो ला रहा हूं पर मैं तुम्हें नरक में ढकेल रहा हूं कभी अहसास ही नहीं हुआ कि मेरी बेटी के मन में तुम्हारे लिए इतनी नफ़रत है हम दोनों आएगे तुमसे मिलने बहुत जल्दी 


अनिकेत बहुत गुस्से में था उसने सुहानी से घर चलने को कहकर सीधा जाकर गाड़ी में बैठ गया और जो शगुन का सामन आया था उसे सुहानी के घर पर छोड़ दिया थोड़ी तेज आवाज में सुहानी को बुलाने लगा ," सुहानी सुहानी 


सुहानी जल्दी से आकर गाड़ी में बैठ गई और दोनों अपने घर के लिए निकल गए अनिकेत का मूड बहुत खराब था उससे अपना गुस्सा शांत नहीं हो रहा था और सुहानी बस रोए जा रही थी तभी अनिकेत ने गाड़ी अचानक से रोक दी और अपने गुस्से पर कंट्रोल करते हुए सख्त आवाज में कहने लगा ," सुहानी रोना बन्द करो " ,,, अनिकेत की आवाज सुनकर वो बस चुप हो गई अनिकेत ने उसके सिर को कार की शीट पर  टिका दिया, और फिर से गाडी स्टार्ट की और थोड़ी देर बाद गाड़ी हवेली के सामने थी , अनिकेत पहले खुद गाड़ी से बाहर आया फिर सुहानी को साथ लेकर सीधा अपने कमरे में चला गया आते आते दोनों को रात का आठ बज गया था सुहानी कमरे में आते ही लेट गई और अनिकेत ने किसी को फोन‌ करके मिलने को मीटिंग फिक्स की थोड़ी देर बाद कपड़े चेंज कर घर से बाहर चला गया


मीटिंग प्लेस 


  एक रेस्टोरेंट में दो लोग बैठे बात कर रहे थे तभी उनमें से एक ने कहा ठीक है मैं दादू से बात कर लूं आज फिर जैसा आगे होगा वैसा बताता हूं ओके चल बाय ,,,बाय 


आखिर क्या करने वाला है अनिकेत और किसे मिलने बुलाया था अनिकेत ने और अखण्ड प्रताप से क्या बात करेगा वो जानने के लिए पढ़ते रहिए " अनोखा विवाह" 

❤️आप हमेशा मुस्कुराते रहिए ❤️