Vakil ka Showroom - 13 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 13

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वकील का शोरूम - भाग 13

दुच्चा सिंह अंजुमन को एक टॉयलेट साफ करते हुए मिला।

“सरदारजी।" वह चिल्लाकर बोली - "आप ये क्या कर रहे हो?"

“टॉयलेट साफ कर रहा हूं। कोई शू-शू या ची-ची करणे

जाए तो उसे जगह साफ मिल सके। एक बहुत बड्डे शख्स ने कहा था, इंसान जितणा बढ़िया टॉयलेट में बैठकर सोच सकता

है, उतणा और कहीं नहीं सोच सकता।"

"लेकिन ये काम आपका नहीं है।"

"तो फिर किसका है?" दुच्चा सिंह ने आंखें निकालकर

पूछा।

"किसी सफाई कर्मचारी का।"

“सफाई कर्मचारी कोई माइयवां आसमान से टपकता है? जिसने भी हाथ में झाडू उठा ली, बन गया सफाई कर्मचारी,

जैसे कि में।"

"लेकिन आप तो वकील हैं?"

"मेरे माथे पर लिखा है, मैं वकील हूं? या मेरी पगड़ी पर

लिखा है?"

"नहीं, लेकिन..."

"तु क्यों मेरे पीछे पड़ी है मैण। जा, जाके अपणा काम कर। हम माइयवें जो करें, हमें करणे दे।"

"लेकिन बैरिस्टर विनोद नाराज होंगे?"

"नाराज होंगे?" टुच्चा सिंह उछलकर बोला- उनके दिखाए रास्ते पर तो मैं चल रहा हूं, फिर भी वो नाराज होंगे? क्या मजाक करती है भैण? क्यूं मेरे को फुद्दू बणाती है?"

"प्लीज वकील साहब फेंकिए परे इस झाडू और पोचे को। बैरिस्टर वकील आपको एक नया काम सौंपना चाहते हैं

“नया काम? कैसा नया काम?" "आपने एक आदमी की तलाश करनी है।"
"क्यूं, यहां सारे गड्ढों (गधे) हैं, जो मैंने आदमी की तलाश करनी है?" "ओहो, अब चलिए भी। बैरिस्टर आपको बुला रहे हैं।"

उनसे जाकर कह हो, जब तक कोठी की पूरी साफ सफाई नहीं हो जाती, मैं नहीं आऊंगा। मेरे लिए सेवा पहला कर्म है। ड्यूटी-व्यूटी सब बाद में।"

अंजुमन ने एक गहरी सांस ली। तभी अचानक उसके हाथ में थमा मोबाइल संगीत की मधुर धुन बजाने लगा

उसने जब स्क्रीन पर नजर दौड़ाई, तो वहां एक जाना पहचाना नम्बर स्पार्क कर रहा था।

हैलो राज बहादुर । फिर अंजुमन मोबाइल कान से सटाकर बोली-कैसे हो ?”

"बिल्कुल ठीक ।" दूसरी ओर से आवाज आई तुम

कैसी हो?

"मेरी हालत का अंदाजा तुम नहीं लगा सकते।"

तो फिर कौन लगा सकता है?"

“मैं। सिर्फ मैं।"

"शोरूम में क्या कुछ चल रहा है?"

दुनिया आ रही है देखने कल उद्घाटन होगा। इसके बाद

कामकाज शुरू हो जाएगा।"

"उदघाटन कल कितने बजे होगा?"

दोपहर एक बजे।"

कौन करेगा?"

“एक पूर्व मंत्री, जो आजकल सांसद है।" नाम ?

"लाला नटवरलाल, लेकिन तुम क्यों पूछ रहे हो?" “पूछने का कुछ तो कारण होगा ही?"

“हां कुछ तो कारण होगा ही। ठीक उसी तरह, जिस तरह मुझे यहां नौकरी लगाने के पीछे कुछ कारण है?"

"लगता है, तुम्हारे आस-पास कोई नहीं है, जो इतना

खुलकर बोल रही हो ।"
"मेरे आस-पास एक सरदार के अलावा कोई नहीं है, लेकिन वह मूर्ख है, मेंटल है, दिमाग से कोरा है।"

"फिर भी तुम्हें सतर्क रहना चाहिए। ऐसे लोग भी कई बार

बड़े खतरनाक साबित होते हैं।”

"मेरी जिंदगी में ऐसा बचा ही क्या है, जिसके लिए कुछ खतरनाक साबित हो सके ।”
“ऐसा क्यों कहती हो? तुम्हारे सामने तो पहाड़ जैसी जिंदगी पड़ी है।"

"और वह जिंदगी कैसे कटेगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।”

“मैं इससे सहमत नहीं हूं। मेरे ख्याल तो जिंदगी का अगला पल कैसे कटेगा, इसी का अंदाजा ही नहीं लगाया जा

सकता ।”

“तो ।”

"तुम डिप्रेस हो रही हो ।”

"इम्प्रेस भी कैसे हो सकती हूं।”

"आज शाम को मिलोगी?"
"कहां ?”

“उसी मनहूस बंगले में, जहां राज बहादुर अपने आप को रोज दफनाता है।"

तुम मुझे रात को नहीं बुला सकते ?"

 मै उन लोगों में से नहीं हूँ, जो औरत को सिर्फ भोग की

वस्तु समझते हैं। मेरी नजर में औरत ईश्वर की सबसे सुंदर कृति है। अगर इस संसार में औरत न होती तो यह मरघट से ज्यादा अच्छा नहीं हो सकता था।”

"तुम शायद भूल रहे हो कि मोबाइल पर बात कर रहे हो ।”
।”

"तुमसे जब भी मिलता हूं या जब भी तुमसे बात करने लगता हुं बहुत कुछ भूल जाता हूं।”
अच्छा ?
“शाम को जरूर आना। कुछ जरूरी बातें करनी हैं।"
"जरूरी बातें न करनी होतीं तो न बुलाते ।”

दूसरी ओर से कोई जवाब न उभरा ।

अंजुमन ने मोबाइल ऑफ कर दिया। तभी उसकी नजर सामने की ओर उठ गई।

दुच्चा सिंह अपना काम छोड़कर एकटक उसी की ओर

देखे जा रहा था।
दो आदमी खंभे से बंधी रेणु के निकट पहुंचे। रेणु उस समय अर्धनिद्रावस्था में थी।

उनकी आहट पाते ही उसने आंखें खोल दीं, लेकिन उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव न आया, जिससे यूं लगता कि उन आदमियों को देखकर वह चौंकी हो ।

“साली, कितनी खूबसूरत है।" एकाएक उनमें से एक बोला "है तो बहुत खूबसूरत । मगर अपने किसी काम की नहीं

है।” दूसरा आह-सी भरकर बोला- "हम तो इसे हाथ तक

नहीं लगा सकते।"

“मगर क्यों?"

क्योंकि डॉक्टर सोनेकर बहुत ही सख्त आदमी है। अगर उसे पता भी चल गया कि हमने पागलखाने की किसी औरत को टच किया है तो समझो नौकरी गई।"

"अगर हम किसी औरत को टच तक नहीं कर सकते, तो

यहां क्या करने आए हैं?"
तु कुछा भी करने नहीं आया। तू सिर्फ मेरे साथ आया है।

जो कुछ भी करना है, वह में करूंगा।" "लेकिन तू क्या करेगा?" दूसरे ने आश्चर्य से पूछा ।

“इस लड़की के पास टाइम बम रखूंगा।"

"क...क... क्या?"

"डॉक्टर साहब ने कहा है।"

लेकिन वे इस लड़की को क्यों मारना चाहते हैं?"

क्योंकि यह पागल नहीं है।"
"प...प... पागल नहीं है?"

"यह पागल होने की सिर्फ एक्टिंग कर रही है।"

"एक्टिंग क्यों कर रही है?"

"किसी के कहने पर कर रही है।" "किसके कहने पर कर रही है?"
तूने जानकर क्या करना है? तू परे हट, मुझे मेरा काम करने रने दे। कहीं ऐसा न हो कि टाइम बम मेरी जेब में ही फट जाए ।”

कहकर उसने अपनी जेब से एक छोटा-सा पैकेट निकाला तथा रेणु के निकट रख दिया।

"अब चल यहां से।" फिर वह अपने साथी से बोला- "डॉक्टर साहब के पास इसका रिमोट स्विच है। कहीं वे बटन न दबा दें।"

"बटन दबने से क्या हो जाएगा?"

"इस लड़की का राम नाम सत्य हो जाएगा। हो सकता है। कोई और भी बम की चपेट में आ जाए, लेकिन वह मरे, यह जरूरी नहीं है।"

"मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा।" दूसरा अपने सीने पर हाथ रखकर बोला- "कि मैं इस लड़की के नंगे जिस्म को न देख सकूंगा।"

"अब चल भी यहां से। वर्ना इसके साथ-साथ तेरे भी चीथड़े उड़ जाएंगे।" इसके बाद वे दोनों व्यक्ति वहां एक क्षण के लिए भी न रुके

और फिर, उनके वहां से जाने के बाद दो गुप्त आंखों ने रेणु को ध्यानपूर्वक देखा। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था। वह साफ-साफ भयभीत

दिखाई दे रही थी।

ठीक उस बकरे की तरह, जिसे जिबह करने के लिए किसी कसाई ने छूरा तान दिया हो ।

उसकी फटी-फटी आंखें, कुछ दूरी पर पड़े पैकेट पर टिकी थीं, जिसे वह व्यक्ति वहां रख गया था।