Vakil ka Showroom - 9 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 9

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वकील का शोरूम - भाग 9

मामला बहुत जल्द आपकी अदालत में आएगा सर ।" ममता दृढ़ स्वर में बोली- "मैं उस वकील के बच्चे को ऐसे जाल में फंसाऊंगी कि वह तो क्या, उसके फरिश्ते भी कानून की खरीद-फरोख्त भूल जाएंगे।"

सुनकर एक बार फिर मुस्करा दिए जस्टिस दीवान। ममता एक ही झटके से उठ खड़ी हुई।

"इजाजत दीजिए सर ।" वह बोली- "मैं चलती हूं।" "जाने से पहले हमारी एक सलाह जरूर सुनती जाइए। "जी जरूर ।"

"जो कुछ भी करना, ध्यान से करना। इंसान किसी खतरनाक नाग को छेड़कर तो शायद बच भी जाए, लेकिन ऐसे वकीलों को छेड़कर बचा नही करता।"

मैं बचुंगी। जरूर बचूंगी।"

"बैस्ट ऑफ लक इंस्पेक्टर ममता। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।"

फिर चेहरे पर किसी तूफान जैसे भाव लिए वहां से विदा हो गई ममता। उसके जाने के बाद न जाने कितनी ही देर तक स्थिर बैठे पता नहीं क्या सोचते रहे दीवान, फिर कॉलबेल के पुश बटन पर उंगली रख दी।

कार्यालय के बाहर कहीं घंटी बजी।

इसके तुरंत बाद अर्दली ने पर्दा उठाकर भीतर झांका। ड्राइवर से कहो, गाड़ी तैयार रखे।” फिर वे बोले- “हमें फौरन पागलखाने जाना है।"

अर्दली ने सहमति में गर्दन हिलाई, फिर वह गधे के सिर

से सींग की तरह वहां से गायब हो गया।

 अगले दिन

सभी समाचार-पत्रों में एक विज्ञापन छपा था, जिसका मजबून कुछ यूं था

'जरूरत है कुछ ऐसे कानून के धुरंधरों की, जो कानून के शोरूम पर कानून की हर धारा की बिक्री करने में माहिर हो  
नए कले कोट वाले भी इस चौकरी के लिए प्रयास कर सकते है। स करें।

बैरिस्टर विनोद

मोबाइल नम्बर 1 698961-82751 और उस विज्ञापन को पढ़कर जिस पहले शख्स से बेरिस्टर विनोद को फोन किया, उसकी आवाज बेहद कठोर व कश थी।

विनोद बोल रहा है?" उसने फोन मिलते ही पूछा। जी हो। आपकी तारीफ

अभी नहीं करेगा। बाद में करेगा।" आवाज आई। क्या मतलब?

तू क्या समझता है, मेरे होते कानून का शोरूम खोलकर कानून की बिकी कर लेगा तू? कानून की बेइज्जती कर लेगा तू कानून की धज्जियां उड़ा लेगा ? मैंने जो कुछ करना है, वह तो मैं करूंगा ही।" विनोद

ला तुम यह बताओ कि तुम कौन हो और क्या चाहते हो?" मैं कानून को अपनी मा समझता हूं। अपनी मां की बेइज्जती कोई सहन नहीं कर सकता। अपनी मां को बिकते

कोई नहीं देख सकता।" "भले ही तुम्हारी वह मां औरों को बिकने पर मजबूर कर दे। भले ही वह औरों का घर उजाड़ दे। भले ही वह...."

मै कुछ नहीं सुनना चाहता।" दूसरी ओर से चिल्लाहट भरी आवाज सुनाई दी बंद करो अपने शोरूम को वर्ना मैं

उसे राख का ढेर बना दूंगा।" ऐसी गीदड़ भभकियों से बैरिस्टर विनोद न तो आज तक डरा है और न ही डरेगा। आज से ठीक दो दिन बाद मेरे शोरूम का आन-बान शान से उद्घाटन होगा। उसके तुरंत बाद

उसमें कामकाज शुरू हो जाएगा।"

"नहीं होने दूंगा मैं ऐसा ।"

"हिम्मत हो तो मत होने देना।"

दूसरी ओर से सम्बंध विच्छेद कर दिया गया
विनोद ने जल्दी-जल्दी अपने मोबाइल से एक नम्बर डायल किया

“नमस्कार!" दूसरी ओर से एक सुरीला व मधुर स्वर उभरा कानून के शोरूम में आपका स्वागत है। कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं।"

"अंजुमन को लाइन दो।” विनोद बोला- "जल्दी ।”

यस सर।” दूसरी ओर से आवाज आई। इसके बाद कुछ क्षणों तक लाइन पर खामोशी रही, फिर अंजुमन की आवाज आई - "अंजुमन एट योर सर्विस प्लीज ।"

विनोद बोल रहा हूं।" विनोद बोला- "मैं तुम्हें एक नम्बर नोट करवा रहा हूं। एसकोटल मोबाइल कपनी का है। तुमने यह पता लगाना है कि यह नम्बर किसे अलॉट किया गया है।"

"कोई खास बात है सर?" "अभी-अभी मुझे शोरूम बंद करने की चेतावनी दी गई है।”

"ओह नो सर ।”

"प्लीज नोट द नम्बर ।” कहकर विनोद ने उसे एक नम्बर

नोट कराया।

"आप इस वक्त कहां हैं सर?" "कोर्ट में।”

“वहां क्या कर रहे हैं? अब आपका वहां क्या काम? शोरूम के उद्घाटन की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।"

लेकिन शोरूम में काम अभी शुरू नहीं हुआ।” विनोद

बोला- इसलिए फिलहाल मैं फ्री हूं। यहां फलों मार रहा हूं।"

“ओके सर। मैं अभी इस नम्बर का पता लगाकर आपको

बताती हूं।"

"बैंक्यू अंजुमन । मैं जानता हूं कि सबसे जल्दी तुम्हीं इस काम को कर सकती हो।"

यह तो आपकी उदारता है सर ।”

“मैं तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा कर रहा हूं।” कहकर विनोद ने मोबाइल ऑफ करके अपनी जेब में डाल लिया ।
तभी वहां किसी गेंद की तरह लुढ़कता हुआ दुच्चा सिंह आ पहुंचा।

"ओए सोण्यो। ओए मक्खणो ।" वह छाती पर हाथ रखकर बोला- तुसी तो बड़े डेंजरस चीज निकले। फूंक निकाल दी आपने तो सारे वकीलों की। सब दहाड़े मारकर अपणी छाती पीट रहे हैं।"

"आप भी पीट रहे हैं?" विनोद ने हंसकर पूछा।

मैं ?" दुच्चा सिंह एकाएक गंभीर होकर बला - "मैं क्यूं छाती पिटूंगा ? मेरी केड़ी मां मर गई है।"

"यानी आपकी एक नहीं निकली?"

"मजाक कर रहे हो मलाई वालयो। ऐसा माइयवां इस दुनिया में कौण पैदा हुआ है, जो दुच्चा सिंह की फूंक निकाल सके।" "यहां किसलिए आए?"

“ये लो।” दच्चा सिंह माथे पर हाथ मारकर बोला- बड़ा अजीब सवाल पुच्छा आपणे भी। क्या बिना काम के आपके पास कोई नहीं आ सकता।”

"तुलसी, सुर मुनि की यह रीति । स्वार्थ लाग करें सब प्रीति "

"रामायण मेरी समझ में नहीं आती। मोतियां वालो । गुरु

ग्रंथ साहब का कुछ बोलो । शायद समझ जाऊं ।” “मैं ये कह रहा हूं कि स्वार्थ के बिना कोई किसी से प्रेम

नहीं करता।”

“मैं आपसे कौण-सा प्रेम कर रहा हूं मालको । तुम्हें देखा तो श्री अकाल करणे चला आया। मेरे को क्या पता था कि तुम इसका गलत मतलब निकालोगे।"

“मैंने कौन-सा गलत मतलब निकाला है ।"

"नहीं निकाला?"

"बिल्कुल नहीं ।"

“फिर तो ठीक है। मेरे को ई गलतफहमी हो गई थी।" "कोई बात नहीं। अब बताओ, मैं तुम्हारी क्या सेवा कर

सकता हूं?"