मृत्यु दंड की बात सुनकर राजकुमारी की सेविकायें भयभीत हो उठी. उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, बड़ी सेविका बोली - हमें तुम्हारी शर्त स्वीकार है.
राजा विक्रम ने द्वार खोला और सेविका को कंचुकी दे दी. राजा विक्रम भी सेविकाओं के साथ यान में बैठकर कंचनपुर आये. कंचनपुर के राजकीय अतिथिगृह में ठहरे. अतिथिगृह बहोत बड़ा था. उसमें राजा विक्रम को सभी सुविधायें उपलब्ध थीं.
दिन बीतते गये, किन्तु राजा विक्रमादित्य की राजकुमारी से भेट की व्यवस्था न हो सकी. राजा विक्रम ने दासी से कहा - अपने वचन का पालन करो.
दासी ने कहा - भद्र पुरुष! हम राजकीय सेविकायें है. स्वामिनी से कैसे कहें कि वह एक अपरिचित पुरुष से भेंट करें. यदि प्रयत्न किया और राजकुमारी क्रूद्ध हो उठी तो जीवन पर्यन्त काल कोठरी में पड़ा रहना पड़ेगा. हमारे वचन के बदले में तुम और कुछ मांग लो. क्यों हमारा जीवन नष्ट करने पर तुले हो. कंचनपुर की काल कोठरी के सम्बन्ध में तुम्हें ज्ञात नहीं, साक्षात नरक है.
राजा विक्रम बोला - तुम्हें मेरा काम करना होगा तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे सुखी जीवन के लिये अपने प्राण तक न्योछावर कर दूंगा.
दासी ने कहा - तुम्हारे प्राण देने से हमारा सुख तो नहीं लौट आयेगा. काल कोठरी का स्मरण आते ही भय से शरीर में कंपकंपी छूट जाती है.
राजा विक्रम बोला - व्यर्थ का भय छोडो और राजकुमारी से मेरी भेंट की व्यवस्था करो.
दासी ने पूछा - तुम्हें अपने प्राणों का मोह नहीं ? राजकुमारी नहीं बोली तो तत्काल तुम्हें बंदी बना दिया जायेगा. हठ मत करो, हमारे से पर्याप्त धन सम्पत्ति लेकर हमें वचन से मुक्त करो और तत्काल अपने घर लौट जाओ.
राजा विक्रम बोला - तुम मुझे उपदेश मत दो. मृत्यु का भय मत दिखाओ. मैं अपनी बुद्धि और पराक्रम के संबध में जानता हूं. तुम्हें कोई भी व्यक्ति क्षति नहीं पहुंचा सकता.
दासी ने कहा - तुम तो ऐसे स्वर में बोल रहे हो जैसे तुम कोई सम्राट हो या तुम्हें अलौकिक सिद्दीयाँ प्राप्त हैं
राजा विक्रम बोला - देवी! मेरे विषय में अधिक जानने का प्रयत्न न करो, मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, यह सब रहने दो, पर इतना विश्वास दिलाता हूं कि जिस दिन कंचनपुर से लौटूंगा तुम स्वयं जान जाओगी कि मैं कौन हूं. अब बिना विलम्ब किये राजकुमारी से मेरी भेंट की व्यवस्था करो. मैंने कंचुकी लौटाकर अपना वचन निभाया था,अब तुम भी अपना वचन निभाओ.
दासी ने शेष सेविकाओं से जो चामुंडी माता के मंदिर तक साथ गई थीं उनसे चर्चा की और कहा - व अपरिचित पुरुष जो अतिथिगृह में ठहरा है, हमसे वचन निभाने का आग्रह कर रहा है, अब हमें कोई उपाय सोचना चाहिये. वैसे भी अतिथिशाला में उसका अधिक दिन रुकना हमारे दुर्भाग्य को बुला सकता है. यदि राजकुमारी लीलावती को यह बात ज्ञात हो गयी और वह हमसे पूछेंगी कि उस अपरिचित को अतिथिशाला में क्यों ठहरा रखा है तो हम क्या उत्तर देंगी. यह समस्या एक उलझी हुई पहेली के समान है और इसे सुलझाना अनिवार्य हो गया है, हम सब मिलकर प्रयत्न करेंगी, रानी की प्रतिज्ञा की बलिवेदी पर यदि कोई प्राण चढ़ाने आये तो हम कर ही क्या सकती हैं, अवसर देखकर इस भेंट के कार्य को पूरा करना ही होगा.
एक दिन राजकुमारी सोलह
श्रुँगार सजकर महल के गवाक्ष में प्रसन्न मुद्रा में बैठी थी. उसकी सहेलियां और सेविकायें परस्पर हास-परिहास कर रही थीं. रानी ने कहा - मैं कैसी दिखती हूं.
एक सखी बोली -"आप बहुत
अच्छी दिख रही हैं पर नर के बिना नारी अधूरी है. जीवन वीणा से नर-नारी के समवेत स्वरों के बिना जो संगीत पैदा होता है वह नीरस होता है. उसमें मधुरता का अभाव होता है. जैसे एक पँख से पक्षी उड़ नहीं सकता वैसे ही अकेली नारी है. नर-नारी के मिलन के बिना गृहस्थ जीवन की सुखद यात्रा नहीं की जा सकती और न लौकिक जीवन का गंतव्य ही पाया जा सकता है.
एक सखी ने कहा - ओ हँसीनी तू किसी हँस को खोज ले, समय न रुकता है न किसी की प्रतीक्षा करता है, वह दिन दूर नहीं जब रूप और सौन्दर्य की पंखुरिया मुरझाने लगेंगी. दुःखद वृद्ध अवस्था जीवन की देहरी पर दस्तक देगी और तुम रूप और यौवन की स्मृति पर अकेली पछताओगी.
राजकुमारी ने हँसकर कहा - तुम सब मेरी हितैषी हो मेरे से प्रीति करती हो, तुम्ही कोई हँस खोज कर ले आओ.
उस समय एक चतुर दासी ने कहा - स्वामिनी! एक हंस राजकीय अतिथिशाला में रुका है और आपकी प्रतीज्ञा पूर्ण करने को कतिबद्ध है, आज्ञा दीजिये, परीक्षा की तिथि निश्चित कीजिये.
राजकुमारी लीलावती बोली - क्या उसे मेरी प्रतिज्ञा ज्ञात है ? क्या उसे बता दिया है कि पराजित होने पर जीवन पर्यन्त सूर्य के दर्शन भी न कर सकेगा.
दासी बोली - हां स्वामिनी, उसे सब कुछ ज्ञात है. वह सुंदर और साहसी है, उसका कथन है कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में वह पराजय का कड़वा घूंट पीना ही नहीं जानता.
राजकुमारी लीलावती ने हँस कर कहा - दीप शिखा पर शलभ अपने प्राण निछावर करने को संकल्पित है तो अविलम्ब उसे परीक्षा हेतु राज दरबार में लाया जाय.
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क्रमशः