Chouboli Rani - 5 in Hindi Women Focused by Salim books and stories PDF | चौबोली रानी - भाग 5

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चौबोली रानी - भाग 5


रात्रि के प्रथम प्रहर में द्वार खुलने की आवाज सुनाई दी. तत्काल ही नूपुरो की ध्वनी एवं मृदुल नारी कंठो की आवाज मुखर होने लगी. माता के मंदिर में राजकुमारी लीलावती प्रवेश कर चुकी थी. संगमंरमर के एक धवल पाषाण खंड पर राजकुमारी लीलावती ने अपनी कंचुकी उतार कर रखी तो प्रजवलित दीपों की आभा फीकी पड़ गयी. ऐसा लग रहा था मानो नील गगन में चंन्द्रोदय होते ही तारों की आभा मंद हो गयी हो. एक दासी ने चामुंडी माता की वेदिका पर रखे दीप को छोड़कर सारे दीप बुझा दिये, किन्तु प्रकाश से देवालय जगमगा रहा था. कंचुकी के रत्नों की आभा से देवालय पूर्व से भी अधिक ज्योतिर्मय था. चामुंडी माता की आराधना प्रारम्भ हुई. रानी लीलावती का रूप लावण्य देखकर, स्वर सुनकर एवम् नृत्य कला निहार कर राजा विक्रम आश्चर्य चकित रह गये.राजकुमारी के रूप के संदर्भ में उन्होंने जो भी सुना था वह उससे भी अधिक सुंदर एवम् आकर्षक लग रही थी. राजा विक्रम नृत्य एवम् संगीत के संमोहन में अपना उद्देश्य ही भूल गये.

       राजकुमारी लीलावती और उसकी सखियाँ रात्रि भर संगीत के साथ नृत्य और गीतों के माध्यम से माता चामुंडी की आराधना करती रही. रात्रि का अंतिम प्रहर निकट आ गया तब राजकुमारी ने कहा - अंतिम नृत्य और गीत के पश्चात माता के चरणों की धूली लेकर हम सब लौट चलेंगी.

      नृत्य और गीतों के आकर्षण में बंधे राजा विक्रम को अपने उद्देश्य की याद आई और उन्होंने यक्ष वेताल को याद किया. स्मरण करते ही वेताल उपस्थित हुआ और बोला "स्वामी!आज्ञा दीजिये."

       राजा विक्रम ने कहा - मित्र वेताल! देवालय के प्रांगण में नृत्य और गीत चल रहे है, वही कंचुकी रखी है, नृत्य और गीतों का क्रम ज्योंही समाप्त हो, भोर की किरणों के आगमन के पूर्व ही तुम वह कंचुकी उठा लाना.

       वेताल बोला - स्वामी! आपकी आज्ञा का पालन होगा.

      देवी की आराधना का क्रम रुका. राजकुमारी और उसकी सखियाँ देवलय के बाहर आई. अनुचर यान लिये राजकुमारी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे.राजकुमारी अपनी सहेलियों सहित कंचनपुर प्रस्थान कर गई दूसरे यांना में सेविकायें बैठी और यान आकाश में उड़ान भरने लगा.

      सहसा एक सेविका ने कहा - संपूर्ण सामान यांना में रख लिया क्या ? स्वामिनी की कंचुकी कहाँ है ?

     सभी सेविकाओं ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट की. सब सेविकाओं में चिंता व्याप्त हो गई. मुख्य सेविका प्रवीणा ने कहा - कंचुकी रत्नों से मंडित है उसका मूल्यांकन करना संभव नहीं है. उसी के दिव्य प्रकाश में माता चामुंडी की आराधना की जाती है. यदि वह नहीं मिली तो निश्चित ही सभी को मृत्युदंड मिलेगा, क्या तुम राजकुमारी लीलावती के कोप को भूल गई.

      सुनते ही कुछ सेविकायें तो भय से कांपने लगी. एक सेविका ने यानचालक से कहा - भाई! यान को लौटाकर माता के मंदिर तक ले चलो.

     प्रकृति के प्रांगण में प्रभात की प्रथम किरणों के आते ही रजनी रानी अपने तारक शिशुओं को लेकर विदा हो चुकी थी. आकाश में पक्षी स्वछंद विचरण और कलरव गान कर रहे थे. सूर्य की प्रथम किरण का स्पर्श पाकर कमल पुष्प विहंसित हो उठे थे, किन्तु माता चामुंडी देवी के मंदिर के पट बंद थे. एक दासी ने द्वार को धक्का लगाया पर वह खुला नहीं. दासी चकित रह गई. फिर उसने पुकारा - अंदर कौन है ?

किन्तु किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया. दासी ने फिर कहा - द्वार खोलो, हमें बहुत आवश्यक काम है. किन्तु फिर भी द्वार नहीं खुला. दासी ने फिर तेज आवाज़ में कहा - कंचनपुर की राजकुमारी लीलावती अपनी कंचुकी भूल गई है, हम उसे लेने

आई है. जो कोई भीतर है व तुरंत द्वार खोले. इस बार भीतर से राजा विक्रम की आवाज़ सुनाई दी - "यदि कंचुकी चाहती हो तो उसके बदले में तुम्हें एक वचन देना होगा"

      पुरुष स्वर सुनकर दासियाँ चौँक उठी, फिर संभल कर बोली - हम बिना वचन जाने वचन नहीं दे सकती, हम राज्य सेविकायें है, हमारी मर्यादायें है हम उनका उल्लंघन नहीं कर सकतीं, तुम कौन हो ?

      राजा विक्रम ने कहा - "मैं कौन हूं, इससे तुम्हें क्या मतलब ? परन्तु विश्वास रखो तुम्हें किसी अनीतिपूर्ण कार्य करने के लिये मैं बाध्य नहीं करूंगा. यदि कंचुकी चाहिये तो वचन देना ही होगा.

     दासी ने कहा - यदि किसी अनुचित कार्य को नहीं करानाचाहते है तो वचन बताने में संकोच कैसा ? हमें क्या करना होगा यह जाने बिना वचन देना संभव नहीं.

      राजा विक्रम बोला - तो सुनो यदि कंचुकी चाहिये तो राजकुमारी से भेट करानी होगी.

     दासी ने कहा - नहीं,यह संभव नहीं है. राजकुमारी किसी से भेट नहीं करती.


राजा विक्रम बोला - मिथ्या भाषण मत करो. यदि किसी से भेट नहीं करती तो क्यों 

अनेक राजा, राजकुमार आदि व्यर्थ ही आजीवन कारावास का दंड भुगत रहे है ?

       दासी ने कहा - किसी पुरुष से उन्हें बोलने के लिये अनुमति देना उनके स्वविवेक पर निर्भर करता है. हम उन्हें बाध्य नहीं कर सकती.

     राजा विक्रम बोला - तो फिर लौट जाओ. जो दंड तुम्हें राजकुमारी लीलावती दे उसे स्वीकार करो. इस गंभीर अपराध के लिये वे तुम्हें मृत्युदंड भी दे सकती है.

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                 क्रमशः