Anokha Vivah - 13 in Hindi Love Stories by Gauri books and stories PDF | अनोखा विवाह - 13

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अनोखा विवाह - 13

अनिकेत को पता था कि सुहानी छोटी छोटी बातों पर भी रो पड़ती है ,,पर वो सोच रहा था कि अभी वो क्यों रो रही है,,,,,,,,,,,,,, अनिकेत - क्या हुआ अब क्यों रो रही हो ?

बताओ क्या हुआ है ? 

सुहानी - मेरे दर्द हो रहा है,,,,,,,,, अनिकेत, सुहानी से क्या हुआ कहां दर्द हो रहा है,,,, सुहानी" इअरिंग के पास " 

अनिकेत को याद आता है कि उसने उससे कहा था कि उसके कान में दर्द हो रहा है,,,,,,,, अच्छा दिखाओ 

जैसे ही अनिकेत बस उसका घूंघट हटाने के लिए आगे बढ़ा तभी सुहानी, अनिकेत से कहती हैं ," आप अभी नहीं हटाइये " 

अनिकेत कन्फ्यूज होते हुए तो फिर कब हटाऊं आपकी मां ने कहा है कि पहले हम आपके पैर छुएंगे,,,,,, अनिकेत ये बात सुनकर शॉक्ड होते हुए थोड़ा तेज आवाज में कहता है - ," सुनो आज तो ये बात कह दी तुमने आज के बाद मैं तुमहारे मुंह से इस तरह की कोई भी बात ना सुनूं,, ,,,,,समझ गईं? 

सुहानी हां में सिर हिला देती है ,,,अब दिखाओ कहां दर्द हो रहा है,, अनिकेत जैसे ही सुहानी का घूंघट उठाता है वो देखता ही रह जाता है वो बहुत ही प्यारी लग रही थी ,, क्यों कि आज वो उसे  देख रहा था पर उसका रोना सुन अनिकेत उसके कान से धीरे से इअरिंग निकालता है ,,उसके बाद एक एक कर सब गहने निकाल देता है ,,,वो जैसे ही सुहानी के पैर की पायल निकालने के लिए हाथ बढ़ाता है , सुहानी उसका हाथ पकड़ लेती है ,जब से सुहानी आई थी उसने पहली बार अनिकेत का हाथ पकड़ा था,,,,

अनिकेत चौंकते हुए - क्या हुआ इन्हें नहीं निकालना है क्या ,,, सुहानी- आपकी मां ने कहा है कि आप का हाथ मेरे पैरों को ना छुएं,,,, हमें पाप लगेगा,,

अनिकेत अब थोड़ा गुस्से में सुहानी को डांटते हुए कहता है - मेरी बात सुनो तुम्हें अभी मैंने मना किया है कि इस तरह की बातें नहीं करना लेकिन तुम हो कि समझ में ही नहीं आता है एक बार में , आज के बाद मैं ना सुनूं इस तरह की बातें,,,ये लो और कपड़े बदलो और हां यह आपकी मां क्या होता है मां, मां होती है मेरी हो या तुम्हारी "सुहानी अपना सिर्फ एक बार फिर से हां में हिला देती है

सुहानी- पर आपको कुछ बात करनी थी आपने कहा था

अनिकेत- अरे हां ! देखो मैं तो भूल ही गया था ,,,चलो अच्छा जाओ और कपड़े बदल कर आओ , फिर बताता हूं,,,,

सुहानी चलने लगती, तभी उसे याद आता है कि वो कपड़े नहीं उतार पाएगी खुद ,,,,, सुहानी झिझकते हुए कहती है- वो आप वो खोल देंगे, अनिकेत ना समझी की स्थिति में पूछता है क्या, क्या कह रही  हो 

सुहानी - वो पीछे ,,,,, अनिकेत अपने पीछे देखता है फिर सुहानी के पीछे देखता है तब उसे याद आता है कि सुहानी क्या कह रही है , तब जाकर वो सुहानी की चोली की डोरी खोलने लगता है तो सुहानी खुद में ही सिहर उठती है और उसकी धड़कनें नॉर्मल स्पीड से भी ज्यादा तेज चलने लगती है, तभी उसे ऐसा एहसास होता है की अनिकेत ने डोरी खोल दी है इसीलिए वो जाकर कपड़े बदलकर कमरे में वापस आती है ,,,,,,,, दोनों अपनी अपनी साइड बेड पर बैठे होते हैं कि तभी अनिकेत दादाजी के दिए कंगन अपने हाथ में लेता है और सुहानी को अपने पास बुलाकर उसकी कलाई अपने हाथ में लेकर उसे कंगन पहनाते हुए कहता है ," सुहानी,,, मैं चाहता हूं कि तुम इस घर में रानी बनकर रहो और मेरी जिंदगी में भी लेकिन उसके लिए हम दोनों को ही मिलकर एक दूसरे को समझने की कोशिश करनी पड़ेगी,,,,,,,,

यह कहते हुए अनिकेत उसे कंगन पहना देता है और फिर कहता है ,"  अब तुम्हें हमेशा मेरे साथ रहना है और इसी घर में रहना है तो मैंने सोचा है कि मैं तुम्हें पढ़ाऊंगा तो कल से तुम्हे समय देना है , रोज रात में 9 बजे तक किचन का सारा काम तुमको खत्म करना है लेकिन किसी को भी ये बात पता नहीं चलनी चाहिए कि मैं तुम्हें पढ़ाऊंगा लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि तुम किचन के काम नहीं सीखोगी , समझ गईं और हां जो भी पढ़ाऊं उसे अच्छे से पढ़ना ,,,,, सुहानी- हां, ,, अनिकेत - अरे वाह आज तो हां कह रही हो वैसे तो हमेशा ही सिर हिला देती हो ,,,,,,,, अनिकेत की ये बात सुनकर सुहानी हल्का सा मुस्कुरा देती है ,,

अनिकेत - चलो अच्छा अब सो जाओ और कल थोड़ा जल्दी उठ जाना वरना मां डाटेंगी तो मैं नहीं बचाने वाला तुम्हें , सुहानी एक बार फिर बस हल्का सा मुस्कुरा देती है ,,,दोनों अपनी अपनी साइड हो जाते हैं।

सुबह 6 बजे 

सावित्री जी आज भी हर रोज की तरह जल्दी उठ गई हैं मन्दिर में आरती कर रही हैं और अखण्ड प्रताप बाहर गार्डन में बैठे समाचार पत्र पढ़ रहे हैं श्यामू भी उनके बगल में ही खड़ा था तभी अपनी कड़क आवाज में अखण्ड प्रताप कहते हैं , श्यामू ,"  अपनी छोटी मालकिन से कहिए कि आज हम उनके हाथ की चाय पिएंगे " श्यामू - बड़े मालिक वो तो अभी उठी नहीं हैं तो आज हम ही बना दें आपके लिए चाय 

अखण्ड प्रताप - नहीं , आज हम अपनी पोता बहू के हाथों की चाय ही पिएंगे जाइये,,,,,, श्यामू काका मन में - अब मालिक को कौन समझाए कि बहू रानी को तो चाय बनानी आती ही नहीं है,,,,,,, 

अनिकेत का कमरा

आज भी सुहानी 7 बजे तक सो रही है तभी अनिकेत की आंख खुल जाती है और वो घड़ी में समय देखता है तो शॉक्ड हो जाता है,,ओह गॉड 7बज गए आज तो मुझे कालेज भी जाना है प्रैक्टिकल की डेट भी पता करनी है अनिकेत कह ही रहा था कि अनिकेत की नजर पास ही सो रही सुहानी पर पड़ती है पहले तो उसे अच्छा लगा कि सुहानी दुनिया से बेखबर बस अपनी दुनिया में खोई हो रही है पर अचानक ही उसके मन में दादा जी की याद आती है उसे पता है कि दादू को देर से उठना बिल्कुल पसन्द नहीं है ,,,,,,,,

अनिकेत - सुहानी को जगाते हुए अनिकेत को पूरे 5मिनट हो गए थे पर सुहानी है कि उठ ही नहीं रही थी ,,,ओह गॉड ये लड़की जरूर दादू से मेरी डांट करवाएगी और खुद भी खाएगी ,,, यही कहते कहते अनिकेत फिर से सुहानी को जगाने लगता है थोड़ी मसक्त करने के बाद सुहानी उठ गई थी 

अनिकेत - यार तुम कितना सोती हो प्लीज़ अपनी आदतों को बदल लो वरना सब मुझे ही इन सब की जिम्मेदारी भी दे देंगे , चलो अच्छा जाओ और तैयार होकर जल्दी से नीचे आओ मैं तब तक छोटे के कमरे में जा रहा हूं और हां नीचे  जाकर सबसे पहले बड़ों का आशीर्वाद लेना फिर कोई और काम करना

सुबह 9 बजे ब्रेकफास्ट का समय 

सभी लोग अपनी अपनी कुर्सी पर बैठे नाश्ते का इन्तजार कर रहे हैं और सुहानी किचन में ना जाने नाश्ते में क्या बना रही है , सुहानी किचन से बाहर आती हूई अपने हाथ में एक बाउल लिए आ रही थी..........

आखिर क्या है सुहानी के बाउल में, कुछ अच्छा है या फिर कुछ ऐसा जिसे खाकर नहीं,  देखकर ही सबका पेट भर जाए देखते हैं कल के पार्ट में ...............