Vakil ka Showroom - 7 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 7

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वकील का शोरूम - भाग 7

लगभग एक सप्ताह बाद!


कोर्ट रोड पर लोगों को एक बंगले के निकट एक बहुत बड़ा बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर लिखा था


'कानून का असली शोरूम


यहां कानून की हर धारा बिकती है। अलग-अलग धाराओं के अलग-अलग भाव । सलाह मुफ्त । जरूरत न हो तो भी एक बार अवश्य आएं। माल अवश्य देखें।


प्रोपराइटर - बैरिस्टर विनोद


उस बोर्ड को आते-जाते सैकड़ों लोगों ने पढ़ा और दांतों तले उंगली दबा ली। उन लोगों में कुछ जज भी थे, कुछ वकील भी और बुद्धिजीवी भी। बोर्ड पढ़ा सभी ने, मगर समझ किसी के कुछ न आया।


और फिर हिचकिचाते हुए कुछ लोग शोरूम का माल देखने के लिए अंदर भी पहुंच गए और उन्हीं लोगों में से एक था हनुमान ।


बंदर की तरह फुदकता हुआ जब वह बंगले के भीतर


पहुंचा तो दाएं-बाएं खड़े दो गार्डों ने उसे सैल्यूट मारा । “माल कहा बिकता है?" हनुमान ने पूछा।


"इस पूरे बंगले में। आपको कौन-सा माल खरीदना है?" एक गार्ड ने पूछा।


"फिलहाल कुछ नहीं खरीदना । मैं सिर्फ शोरूम देखने आया हु 

“आपका स्वागत है। आप यूं कीजिए, मैडम अंजुमन के पास चले जाइए।"


"मैडम अंजुमन ?"


"हॉल में बैठी हैं। चार नम्बर काउंटर पर । इस वक्त फ्री है।"


हॉल किधर है?" गार्ड ने बताया।


हनुमान किसी बंदर की तरह फुदकता हुआ हॉल में जा पहुंचा। वहां जगह-जगह काउंटर बने हुए थे, जिन पर नम्बर लिखे हुए थे। हर काउंटर पर चम चम करती एक खूबसूरत


लड़की बैठी हुई थी। सभी काउंटर्स के पीछे रैक बने हुए थे, जिनमें भारतीय दंड संहिता, आर्ज एक्ट, मोटर व्हील एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट व प्रेस एक्ट, इत्यादि की मोटी-मोटी किताबें लगी थीं। कुछ काउंटर्स के दूसरी ओर लगी कुर्सियों पर लोग बैठे थे तथा लड़कियों से बातचीत कर रहे थे, जबकि कुछ लड़कियां खाली बैठी थीं।


हनुमान ने चार नम्बर काउंटर की ओर देखा। वहां एक बहुत ही सुंदर युवती अकेली बैठी थी। हनुमान


बंदर की तरह फुदकता हुआ उसके निकट जा पहुंचा।


“मेरा नाम हनुमान है।” वह बोला- "मैं कानून का शोरूम देखने आया हूं।"


वैलकम सर ।” वहां बैठी अंजुमन बोली- "प्लीज हैव ए सीट ।”


हनुमान उछलकर एक आप क्या काम करने उसा पर जा बैठा।


"चोरी करता हूं । चकारी करता हूं। लूटमार करता हूँ। आगजनी करता हूं। सुपारी लेता हूं। मर्डर करता हूं।" हनुमान


ने छाती फुलाकर जवाब दिया।


"आपका नाम?"


हनुमान ।”


हनुमानजी ।" अंजुमन अपने होंठों पर व्यावसायिक मुस्कान बिखेरकर बोली- "हमने आप जैसे लोगों की सेवा के लिए ही यह शोरूम खोला है। आप खुलकर जुर्म कीजिए। जब कभी भी आप कानून की गिरफ्त में फंसेंगे, हम आपको बड़ी आसानी से बाहर निकाल लेंगे।" “वो कैसे ?”


"हमारे शोरूम के मालिक धुरंधर वकील हैं। उन्होंने आज तक कोई केस हारना नहीं सीखा। आप कत्ल कीजिए, डाका डालिए, रेप कीजिए, अपहरण कीजिए। नो प्रॉब्लम एट ऑल आप कानून की जिस भी धारा में फंसेंगे, हम उसका रेट आपसे चार्ज करेंगे और आपको आजाद करवा देंगे।"


“न करवा सके तो?"


"दस गुना फीस वापस ।"

"क...क... क्या?" आश्चर्य से उछल पड़ा हनुमान ।


12 प्रतिशत ब्याज के साथ ।” अंजुमन आगे बोली। "माई गॉड "


"हम सिर्फ इतना ही नहीं करते कुछ और भी करते हैं?" क...क... क्या?"


“अगर कोई शख्स आपके रास्ते का कांटा बन गया हो तो हम उसे रास्ते से हटाने का काम भी करते हैं।"


"अच्छा!वो कैसे ?" उसे कानून की ही किसी धारा में ऐसा लपेट देते हैं कि उसे कोई नही बचा सकता।”


"अरे वाह ।” हनुमान बोला- "लेकिन इस शोरूम के मालिक बैरिस्टर विनोद क्या अकेले ही शोरूम का काम संभालेंगे?"


"जी नहीं। यहां कई जाने-माने वकील अपनी सेवाएं देंगे।"


"यानी यहां नौकरी करेंगे?"


क्या दिक्कत है। अगर मुंह मांगे पैसे मिल जाएं तो क्यों नहीं देंगे वे अपनी सेवाएं? वैसे एक बात और भी है।"


क्या?" "हमारे बॉस उस जादू की छड़ी की तरह है, जो मिट्टी को


भी महल बना सकती है। वे उस पारस पत्थर की तरह हैं, जिसे छूकर लोहा भी सोना बन जाता है।"


"मतलब क्या हुआ इस बात का ?"


“मतलब यह हुआ कि अगर कोइ जाना माना वकील यहां नौकरी करने को तैयार न हुआ तो बॉस उन नए वकीलों को चांस देंगे जो जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं। जो कुछ बनना चाहते हैं।”


“मैं समझ गया। शोरूम में धंधा कब चालू होगा?"


“एक सप्ताह बाद ! कोई बहुत बड़ी हस्ती इस शोरूम का


उद्घाटन करने आएगी। ” हनुमान किसी उल्लू की तरह पलकें झपकाने लगा।

मुझे जस्टिस राजेंद्र दीवान से मिलना है।"


कोयल जैसी कूकती आवाज पलटा! उसने अपने सामने भने कर संवादार चिहुंककर शरीर वाली एक सुंदर युवती को खड़े पाया। उसने चेकदार सफेद व हरे रंग का सूट


तथा पैरों में सफेद प्लेटफार्म हील्स के स्लीपर पहन रखे थे। "मेरा नाम ममता मुंगिया है।” फिर सेवादार के कुछ बोलने


से पहले ही ी युवती बोली- जज साहब मुझे जानते हैं। सेवादार की गर्दन सहमति में हिली, फिर वह सम्मानपूर्वक बोला- "आप यहीं रुकिए। मैं पूछकर आता हूँ।


इसके बाद वह जस्टिस दीवान के चैम्बर में जा घुसा। लगभग दो मिनट बाद जब वह वापस लौटा तो उसने ममता को भीतर जाने का इशारा किया।


ममता चैम्बर के दरवाजे पर पहुंची, फिर सम्मानपूर्वक बोली- "मे आई कम इन सर?"


“यस ।” भीतर से एक रौबीला स्वर उभरा ।


ममता ने भीतर कदम रखा। सामने अपनी कुर्सी पर जस्टिस दीवान विराजमान थे। उनके शरीर पर चम चम करता सफेद सूट था। चेहरा अलौकिक तेज से जगमगा रहा था।


सिर पर हैट तथा गले में टाई लगी हुई थी। "प्लीज हैव ए सीट ।” उन्होंने सामने रखी कुर्सी की ओर इशारा किया।


"बैंक्यू सर ।” कहकर ममता ने स्थान ग्रहण किया। "कैसे आना हुआ?” फिर दीवान ने मंद मंद मुस्कराते हुए


पूछा। उनकी मुस्कराहट ममता को बेहद भली लगी। उससे भी अधिक भली लगीं उनकी नीले रंग की झील-सी गहरी आंखें।


क्षण-भर के लिए ममता को लगा, संसार का सबसे खूबसूरत, जहीन और विलक्षण युवक उसके सामने बैठा है। उसने दीवान को देखा तो देखती ही चली गई। नजरें हटाने को जी ही न चाहा।