Time Machine"काल" संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "समय"। हिंदू दर्शन में, काल को एक ऐसी शक्ति के रूप में देखा जाता है जो जीवन और मृत्यु, निर्माण और विनाश, और सृष्टि और संहार के चक्र को संचालित करता है। काल का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यम है, जो मृत्यु के देवता के रूप में जाना जाता है।
काल पुरुष को आमतौर पर समय का मानव रूप माना जाता है। इसे ब्रह्मांड के असीमित चक्र का प्रतीक माना जाता है। काल पुरुष को अक्सर समय की निरंतरता और उसकी अनंतता का प्रतीक माना जाता है।
हिंदू ग्रंथों में, काल पुरुष का उल्लेख विभिन्न संदर्भों में किया गया है। इसे सृष्टि के प्रारंभ में देखा गया है, जहाँ यह समय के रूप में कार्य करता है। काल पुरुष को सृष्टि के सभी तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश के साथ जोड़ा गया है।
काल पुरुष का संबंध सृष्टि के चक्र से भी है। यह माना जाता है कि काल पुरुष के माध्यम से ही सृष्टि का प्रारंभ होता है। ब्रह्मा, विष्णु और शिव, तीन प्रमुख देवताओं के साथ काल पुरुष का संबंध गहरा है। ब्रह्मा सृष्टि करते हैं, विष्णु उसे बनाए रखते हैं, और शिव उसका संहार करते हैं। इस चक्र में काल पुरुष का प्रभाव हर चरण में होता है।
काल पुरुष को विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, को भी काल पुरुष का अवतार माना जाता है। इसके अलावा, कालचक्र का प्रतीक भी काल पुरुष के साथ जुड़ा हुआ है, जो समय के अनंत चक्र को दर्शाता है।
योग में भी काल पुरुष का महत्वपूर्ण स्थान है। ध्यान और साधना के माध्यम से, योगी काल पुरुष के वास्तविक स्वरूप को समझने का प्रयास करते हैं। यह समझ साधक को जीवन के अस्थायी और शाश्वत स्वभाव के बीच संतुलन बनाने में मदद करती है।
काल पुरुष का एक कहानी-:
प्रहलाद हिरण्यकशिपु और कयाधु के पुत्र थे। हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली असुर था, जो भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था। प्रहलाद का जन्म एक भक्त के रूप में हुआ था और उन्होंने बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्ति करना शुरू कर दिया था।
प्रहलाद की भक्ति इतनी दृढ़ थी कि वह अपने पिता के आदेशों का उल्लंघन करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करते रहे। यह उनके पिता हिरण्यकशिपु के लिए एक बड़ा अपमान था, जिसने भगवान विष्णु के प्रति घृणा रखी थी।
जब हिरण्यकशिपु को पता चला कि उसका पुत्र भगवान विष्णु की भक्ति कर रहा है, तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को समझाने की कोशिश की, लेकिन प्रहलाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी।
इसके कारण हिरण्यकशिपु ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की पर वह असफल रहे। इसके बाद उसने अपने तांत्रिक ब्राह्मणों को बुलाया और उनको प्रहलाद को समाप्त करने का जिम्मा दिया।
ब्राह्मणों ने प्रहलाद को मारने के लिए एक यज्ञ करने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि यज्ञ के माध्यम से वे काल पुरुष को प्रकट कर सकते हैं, जो उन्हें प्रहलाद को समाप्त करने में मदद करेगा।
इस यज्ञ का मुख्य उद्देश्य यह था कि वे काल पुरुष को प्रसन्न करके प्रहलाद के खिलाफ शक्ति प्राप्त कर सकें। ब्राह्मणों ने सोचा कि यदि वे काल पुरुष को संतुष्ट कर पाएंगे, तो वह उनकी इच्छाओं को पूरा करेगा।
ब्राह्मणों ने यज्ञ की सभी विधियों का पालन करते हुए काल पुरुष का आवाहन किया। उनके मंत्रों और अनुष्ठानों के प्रभाव से, काल पुरुष प्रकट हुआ।
काल पुरुष ने एक भव्य और प्रभावशाली रूप में प्रकट होकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। उसकी उपस्थिति से ऐसा लगा जैसे समय की शक्ति स्वयं प्रकट हो गई हो।
जब काल पुरुष प्रकट हुआ, तो ब्राह्मणों ने उन से प्रहलाद के विनाश के लिए कामना की। ब्राह्मणों का कामना पूरी करने के लिए काल पुरुष प्रहलाद की और चल पड़े। प्रहलाद के पास पहुंचते ही काल पुरुष ने हंसते हुए प्रहलाद को भक्षण करने के लिए आगे बढ़े ।यह देख कर प्रहलाद ने भगवान विष्णु का स्मरण किया और प्रभु के नाम का जाप आरंभ कर दिया।
काल पुरुष ने प्रहलाद को भक्षण करने के लिए जैसे ही पकड़ा उसको एक जोर का बिजली की झटका लगा और वह दूर जाकर गिर पड़े। इसके बाद बह तुरंत उठ खड़े हुए और गुस्से में अपने अस्त्र-शस्त्र प्रकट किया और उनसे प्रहलाद को बार करने लगे पर अस्त्र-शास्त्र प्रहलाद को नुक्सान पहुंचा ने स्थान पर प्रहलाद के गले के पुष्प माला हो गए।यह सब देख कर काल पुरुष ने अपना सबसे शक्तिशाली अस्त्र प्रकट किया। इस अस्त्र से प्रहलाद के ऊपर बार करने वाले ही थे तब भगवान विष्णु उनके सामने प्रकट हो गए। भगवान को सामने देखकर काल पुरुष अपने दिव्यास्त्र को नीचे कर दिया और भगवान विष्णु के सामने नात मस्तक हो गये।
इसके बाद भगवान विष्णु उद्दुश्य हो गये। भगवान विष्णु के जाने के बाद काल पुरुष प्रहलाद को आशीर्वाद देकर गुस्से से जिस स्थान से आए थे उसी स्थान की ओर प्रस्थान किया और ब्राह्मणों के पास जा पहुंचे । ब्राह्मणों ने उनको सामने देख कर जान गए थे उनका दिव्यास्त्र उल्टा पड़ गया है। वह कुछ कर पाते उससे पहले काल पुरुष उन सबको अपना निवाला बना दिया और उद्दुश्य हो गये।
काल पुरुष की साधना करने के लिए विधि-:
काल पुरुष हमेशा हर इंसान के साथ रहता है और उसके साथ चलता है। वही ही सत्य है बह ही निराकार है। यह सृष्टि है तब भी वह है और यह सृष्टि नहीं रहेगा तब भी बह ही रहेगा। इनको जो समझ लिय बह अपनी बहुमूल्य जीवन में धन सम्पदा वैभव का मालिक होगा। हर क्षेत्र में वह उन्नति करेगा।
इनकी गायत्री मंत्र -:।।ॐ काल पुरुषाय विद्महे
तन्मे तत्त्वः प्रचोदयात्।।
साधना करने के लिए किसी शुभ दिन या किसी भी दिन से यह साधना आरंभ कर देना चाहिए। रात्रि के ९.०० से ११:३० के बीच यह साधना आरंभ करना है। वस्त्र कुछ भी पहने पर वह साफ सुथरा होना चाहिए।
अपने आसन पर बैठे धूप-दीप जलाए। सामने कुछ भोग रखें। इसके बाद एक शक्तिशाली वीर पुरुष का कल्पना करके इस मंत्र का जाप आरंभ कर देना चहिए। मंत्र जाप प्रतिदिन १० माला होना चाहिए।
मंत्र -:ॐ काल पुरुषय आगच्छ-आगच्छ मम सर्व कार्य साध्य-साध्य स्वाहा।
इस साधना को एक ४१ दिन तक करना है। काल पुरुष किसी भी दिन प्रकट होकर कुछ मांगने के लिए कहे तो अपने मन मुताबिक वरदान मांग ले। इस सिद्धि से शत्रुओं का नाश होता है। धन सम्पदा वैभव प्राप्त होता है। आयु में बुद्धि होती है। वर्तमान-भुत-भविष्य देखने की क्षमता प्राप्त होता है। हमेशा वह निरोग रहता है। इस धरती पर जितने समय तक रहना चहता है बह उतने समय तक रह सकता है । अपनी आयु को कम या ज्यादा करने की शक्ति उसमें आ जाती है। खुद का या दूसरों का भविष्य को छेड़-छाड़ करके वह जैसे चाहे वह अपने मन मुताबिक निर्माण कर सकता है। इस से बह जो चाहता है उसकी जिंदगी और दूसरों की जिंदगी में वही होता है। काल पुरुष जिसके हाथ में होता है उसके हाथ में समय बंधा हुआ रहता है। साधक जो भोग भोगना चाहता है इस धरती पर वह सब कुछ मिलता है।