"कोई छोटा वकील केस को ले नहीं रहा।" दूसरा ग्रामीण आहे-सी भरकर बोला- "और बड़ा वकील बड़ी फीस मांग
रहा है।"
"कितनी फीस मांग रहा है?"
"पच्चीस हजार कोई इससे भी ज्यादा ।”
“पच्चीस से कम कोई लेने को तैयार नहीं?"
नही है
"किस-किस वकील के पाए हो आए हो?"
"गुगनानी साहब के पास । गढ़वाल साहब के पास । पूनम सांगवान के पास । महावीर प्रसाद के पास ।”
"तुम कितनी फीस देना चाहते हो?”
"हम पंद्रह से ज्यादा नहीं दे सकते।”
"और पंद्रह में वे मानते नहीं। क्यों?"
“हां ।” "तुम लोग सोलह दे सकते हो?"
जी?" दोनों ग्रामीण आंखें फाड़ फाड़कर टुच्चा सिंह की ओर देखने लगे।
"भई साफ-सी बात है। उनमें से किसी न किसी को पंद्रह हजार में मैं मना दूंगा। एक हजार मेरी फीस होगी।" "मंजूर है तो निकालो ।” कहकर टूच्चा सिंह ने किसी
"मंजूर है।" दोनों एक साथ बोले ।
भिखारी की तरह अपने दोनों हाथ फैला दिए। एक ग्रामीण ने हिचकिचाहते हुए जेब से एक हजार रुपए
निकाले तथा टूच्चा सिंह के फैले हुए हाथ पर रख दिए।
दुच्चा सिंह ने जल्दी से उन्हें यूं जेब के हवाले किया, जैसे उनके छिन जाने का डर हो। "तुम लोग पांच मिनट बैठो ।” फिर वह बोला- “मैं गया
और आया।"
फिर बिना ग्रामीणों के जवाब की परवाह किए, दुच्चा सिंह किसी गेंद की तरह लुढ़कता हुआ एडवोकेट आर.सी. गुगनानी के चेम्बर में जा पहुंचा। गुगनानी 70 की उम्र पार कर चुका एक ऐसा वकील था, जो पहले जिला न्यायवादी के पद पर भी रह चुका था। कत्ल के मामलों में उसे महारथ हासिल थी। उस समय वह
चश्मा लगाए किसी फाइल को पढ़ रहा था। “सत श्री अकाल बादशाओ।" टुच्चा सिंह उसके सामने यूं हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, जैसे कोई नेता वोट मांगने आया हो
गुगनानी ने धीरे से अपनी गर्दन को जुम्बिश दी, फिर दुच्चा सिंह को बैठने का इशारा किया। टुच्चा सिंह बैठा जरूर, लेकिन कुर्सी पर नहीं।
वह फर्श पर गुगनानी के चरणों में जा बैठा। ठीक उसी तरह जैसे भगवान राम के चरणों में हनुमान विराजमान रहते है
"अरे अरे ।” गुगनानी चौंककर बोला- “ये क्या करता है। सरदार? ऊपर बैठ कुर्सी पर ।”
"नहीं मालको आपके सामने कुर्सी पर बैठने की जुरंत तो मैं सात जन्म भी नहीं कर सकता। मैं तो आपका दास हूं। आपका गुलाम हूं। आप चाहो तो मेरे को जूते मार लो, लेकिन कुर्सी पर बैठने के लिए मत कहो ।”
"काम बोल कैसे आया।"
दुनिया में पैसा ही सबकुछ नई होता मालको ।” टूच्चा सिंह दार्शनिक अंदाज में बोला- इंसानियत भी कोई चीज होती है। वाहे गुरु साहब ने अगर हमें बंदे का जन्म दिया है तो सिर्फ पैसा कमाणे के लिए नई दिया।"
“साफ-साफ बोल। क्या काम है?" गुगनानी रूखे स्वर में बोला- "भूमिका बांधकर मेरा टाइम खराब मत कर ।"
"जनाब!" टुच्चा सिंह यूं बोला, जैसे गुरुद्वारे में अरदास कर रहा हो "आज तो आपने गजब कर दिया। गरीब मार कर दी।"
वो कैसे ?”
"दो बंदे आए थे आपके पास । कत्ल का केस लेकर । आपने उनसे पच्चीस हजार मांग लिए?"
"तो क्या गलत किया? गरीब देखकर पच्चीस हजार मांगे थे। वर्ना मेरी फीस पांच अंकों में है।"
वाहे गुरु महाराज की आप पर सदा मेहर बनी रहे। आपको दस अंकों में फीस मिले। बादशाओ, लेकिन वे लोग बड़े गरीब हैं। खाणे को आटा नई है उनके घर में। ऊपर से बेटे ने बहू का कत्ल कर दिया। जीते जी मर गए बेचारे। बेटे को बचाणे की कोशिश करें तो मरे। न करें तो मरे ।"
तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं?"
"आप चाहो तो क्या नई कर सकते मालको। वे बिचारे अपना सारा ताम झाम यहां तक कि शरीर के कपड़े भी बेच दें तो भी पंद्रह हजार से ज्यादा इकट्ठे नहीं कर सकते। वे सारे रुपए वे आपको देणे को तैयार हैं।"
"इतनी कम फीस में मैं केस नहीं लड़ा करता।" "जाणता हूं जनाबे आली, लेकिन वो लोग बड्डे ही गरीब
हैं। गरीबों की दुआएं भी कम कीमती नई होती साब मेरे । आप उनका केस लड़ लो। वे जिंदगी भर आपको दुआएं देंगे।”
“और तेरे को क्या देंगे?"
"ज...ज...जी?"
तेरे को कौन नहीं जानता टुच्चा सिंह ?” गुगनानी हंसकर बोला- “पता नहीं क्या ले देकर कहीं से वकालत की डिग्री ले आया। वकालत का कक्का खख्खा तक तेरे को नहीं आता। किसी के केसों में कमीशन खाता है, किसी को बरगलाता है, किसी को उल्लू बनाता है, और...."
"गुस्ताखी माफ बादशाओ।" टूच्चा सिंह हैं है करते हुए बोला- यह काम तो आप भी करते हो । सारे वकील करते हैं। ग्राहकों को उल्लू नहीं बनाएंगे तो क्या कमाएंगे खाएंगे, लेकिन मालको, वे बड़े गरीब हैं। उनके घर में खाणे को आटा नहीं है।"
"तुझे कितना कमीशन दे रहे हैं?"
वाहे गुरु । वाहे गुरु ।” टुच्चा सिंह अपने दोनों कानों को छूकर बोला- "आप क्या मेरे को इतना गिरा हुआ समझते हो मालको । मैंने कहा ना. वे बड़े ही गरीब हैं। उनसे तो कमीशन की बात करना हराम है। उनका केस ले लो साहब जी। जिंदगी भर आपका एहसान मानेंगे।”
तू क्यों बीच में पड़ा है, जब तुझे कुछ मिल ही नहीं रहा तो किसलिए उनकी सिफारिश कर रहा है।"
उनकी हालत देखकर मेरी आंखें भर आई साहब जी। मैं एक घंटे तक रोता रहा फिर मैंने कसम खाई कि या तो गुगनानी साहब को मनाकर रहूंगा, या फिर उनके कदमों में सिर पटक-पटककर अपनी जान दे दूंगा।"
"ओह!” “अब आपकी मर्जी है मालको। या तो उन गरीबों का केस पंद्रह हजार में ले लो। या फिर मैं अपनी पगड़ी उतारकर
आपके कदमों में सिर पटकणा चालू करता हूँ।" “ठीक है, ठीक है।" बोला- गुगनानी बुरा सा मुंह बनाकर बोला -भेज देना उसको मेरे पास
सुनकर किसी बंदर की तरह फुदका टुच्चा सिंह । फिर एक
ही झटके से उठ खड़ा हुआ। उसने झुककर गुगनानी के पैर छुए, फिर यूं चैम्बर से निकल भागा, जैसे भय हो कि गुगनानी अपना फैसला न बदल दे।
'दल्ला। उसके जाने के बाद गुगनानी बड़बड़ाया 'कहता है कमीशन नहीं लिया। मैं क्या जानता नहीं। बिना कमीशन के
तो तूं किसी के लिए उंगली तक न हिलाए।'