Vakil ka Showroom - 5 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 5

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वकील का शोरूम - भाग 5

इसके बाद कोइ गला फाड़कर हंसने लगी, कोई फूट-फूटकर रोने लगी तो कोई गंदी गंदी गालियां देने लगी।

बैरिस्टर विनोद ने कानों में उंगलियां ठूंस लीं। सामने वाली युवती अभी भी आतंक से चीखे जा रही थी और अपने आप में सिमटती जा रही थी।

न चाहते हुए भी विनोद का चेहरा आंसुओं से भीगता चला गया।

"जिस कानून ने तेरी यह हालत बनाई है, रेणु ।" कुछ ही

क्षणों में वह बड़बड़ाया - “मैं उसकी इससे भी बुरी हालत

बनाऊंगा। उसने तुझे पागल बनाया है, मैं उसे एक ऐसी वेश्या

बना दूंगा, जो टके-टके में बिकेगी। मैं उसकी बोटी-बोटी उधेड़कर उसे अदालत में नंगा नचाऊंगा। तेरे साथ इंसाफ होगा। जरूर होगा। मैं वादा करता हूं तुमसे ।” फिर एक भी क्षण वहां न रुका विनोद । वह एक ही झटके से पलटा तथा तेजी से चलता हुआ हॉल से बाहर निकल

आया। इसके बाद जैसे ही वह अपनी कार की ओर बढ़ा, उसकी जेब में पड़ा मोबाइल अचानक बजने लगा। उसने स्पार्क कर रहे नम्बर को देखा, फिर ऑन करके

कान के साथ सटा लिया।

हैलो ।” फिर वह धीरे से बोला ।

"बैरिस्टर विनोद ?” दूसरी ओर से खनकती हुई आवाज में किसी ने पूछा।

“यस ।”

“मेरा नाम अंजुमन है।" आवाज आई - “आपने एक विज्ञापन दिया था। मैं उसी सिलसिले में आपसे बात करना चाहती हूं।"

"देखने में कैसी हो?"

“एकदम फिट! जैसे कि नौकरी की डिमांड है।"

"कितनी पढ़ी-लिखी हो ?”

"एम.ए. इन साइक्लॉजी । थोड़ा-बहुत देश के कानून के बारे में भी जानती हूं।"
गुड! दिमाग कितना रखती हो?"

"हमेशा पढ़ाई में अव्वल रही हूं। मेरे मां-बाप, अध्यापक या दोस्त, किसी को मेरे दिमाग से शिकायत नहीं हुई।" मैं तुमसे

सिर्फ पांच सवाल पू गा। अगर तुमने तीन के भी सही जवाब दे दिए तो मैं तुम्हें ट्रेनिंग के लिनए इनवाइट

कर लूंगा।"

ट्रेनिंग कितने दिनों की होगी?"

एक सप्ताह की। उसका एक हजार रुपया प्रतिदिन

मिलेगा।"

“और वेतन?"

वह इतना होगा, जिसका तुम अंदाजा नहीं लगा सकोगी।" ट्रेनिंग में कबसे आना होगा?"

"बता दिया जाएगा।

"प्लीज क्वेश्वंस पूछिए। मैं यह जानने को बेताब हूं कि मुझमें कितना दिमाग है।"

"तुम तैयार हो?"

बेशक ।"

"ओके। मेरा पहला सवाल यह है कि कानून क्या है?" "असमर्थ को फंसाने और समर्थ को बचाने का एक आसान रास्ता।" दूसरी ओर से तत्काल जवाब मिला।

"किसी गरीब को न्याय कैसे मिल सकता है?"

"जब वह हथियार उठा लेगा और साबित कर देगा कि जरूरत पड़ने पर वह अपने बाप का खून भी कर सकता है।"

"मेरा तीसरा सवाल यह है कि वर्तमान समय में कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग कौन कर रहा है?"

"मेरे ख्याल से सिर्फ दो शख्स । पहला पुलिस और दूसरा

नई नवेली दुल्हन ।" क्या मतलब?"

"पुलिस को अगर इच्छानुसारे सुविधा शुल्क न मिले तो वह साधारण-सी मारपीट को अपनी रिपोर्ट में जानलेवा हमला तक दिखा देती है। धारा 307 जड़ देती है। आत्महत्या को हत्या बना देती है। किसी निर्दोष को गोली माकर उसे मुठभेड़ में मरा दिखा देती है। दूसरी तरफ नई नवेली दुल्हन को अगर ससुराल में अनुकूल माहौल न मिले तो वह पुलिस स्टेशन जा धमकती है और अपनी ससुराल के दर्जनों लोगों के खिलाफ दहेज

प्रताड़ना यानी धारा 498 का मुकदमा दायर करवा देती है।" तुम्हारा मतलब, क्या ससुराल पक्ष के लोग नई नवेली को

दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं करते ।” "कुछेक करते होंगे। सभी नहीं। मजे की बात तो यह है कि

नई नवेली न सिर्फ अपने पति या सास-ससुर के खिलाफ केस दर्ज करवाती है, बल्कि देवर देवरानी जेठ जेठानी, ननद ननदोई तक् पर 'दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाती है।

चाहे ये लोग कहीं दूर रहते हों और परिवार के मामलों में दखल न देते हों ।” "मेरा चौथा सवाल - क्या देश के कानून में कोई कमी है 

"नहीं। देश के कानून में कोई कमी नहीं है। भारतीय दंड संहिता अपने आप में बेजोड़ है। अगर कहीं कोई कमी है, तो वह है सी.आर.पी.सी. में यानी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में कोई भी मामला न्यायालय में पहुंचने से पहले जिन प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है, उनमें खामियां हैं।"

“मेरा पांचवां और आखिरी सवाल - केवल भारत में ही कानून का बुरा हाल क्यों है। अन्य देशों में नहीं। ऐसा क्यों?" इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारी अदालतों में

किसी की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। अगर कोई ईमानदारी से गवाही देना चाहता है तो उसे न्यायालय के भीतर ही धमकियां मिलती हैं। यहां तक कि उसे शूट तक कर दिया जाता है। दबाव में आकर गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं और केस का रुख पलट दिया जाता है।"

"लेकिन ..."

"यहां की अदालतों में जजों तक की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। वकीलों और गवाहों की तो बात ही अलग है।

ऐसे में कौन किसका साथ देगा? कोई क्यों जान-बूझकर अपनी जान को सांसत में डालेगा। जब गवाह पीछे हट जाएंगे तो कानून मुजरिम का बिगाड़ ही क्या सकेगा।"

वो तो ठीक है, मगर..."

"बैरिस्टर विनोद । दूसरी ओर से जोश भरा स्वर उभरा हमारे देश का कानून अपनी जगह सही है, मगर इसे लागू करवाने वाले सही नहीं हैं।"

"ओके, ओके " विनोद हंसकर बोला- काफी है। इतना

ही काफी है। इंटरव्यू अब खत्म हुआ।" “मैं पास हुई या फेल?"

तुम्हारे जैसी इंटेलीजेंट लड़की को कौन फेल कर सकता

"यानी मेरी नौकरी?"

“पक्की समझो, लेकिन इससे पहले तुम्हें सेल्सगर्ल की एक

सप्ताह की ट्रेनिंग लेनी होगी।"

“सेल्सगल ?"

"जोकि तुमने बनना है। उस शोरूम की, जो बहुत जल्दी

खुलने वाला है।"

“मैं आपसे कब संपर्क करूं ।"

"तुम्हें सम्पर्क करने की जरूरत नहीं। अब मैं तुमसे

सम्पर्क करूंगा। जल्द । जल्द से भी जल्द ।”

“थैंक्यू सर ।"



विनोद ने मोबाइल जेब के हवाले कर दिया।

दो ग्रामीणों को चिंतित मुद्रा में देखकर टूच्चा सिंह ने उन्हें

अपने पास बुलाया

“क्या बात है गांव वालो?” उसने पूछा- "तुम्हारी शक्ल

पर बारह क्यों बजे हैं? क्या हो गया है?" "बड़ी मुश्किल हो गई है सरदार जी।" उसमें से एक

बोला- "बेटे ने गुस्से में आकर बहू का खून कर दिया।" “हो जाता है गांव वालो, हो जाता है। गुस्से का मारा, इश्क का मारा, मुसीबत का मारा, धोखे का मारा और कर्ज का मारा बंदा किसी की जान ले भी सकता है और दे भी सकता है। तुमने कोई वकील किया?"