Vakil ka Showroom - 4 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 4

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वकील का शोरूम - भाग 4

ये तुम पूछ रहे हो?" फिर वह यूं बोली, जैसे शिकायत

कर रही हो।

“हां । ये मैं पूछ रहा हूं। जवाब दो।"

युवती का चेहरा ऐसा हो गया, जैसे रो देगी।

मैं।” तभी युवक बोला- मुफ्त में कोई काम नहीं करवाऊंगा। पूरी कीमत दूंगा।"

अब सचमुच रो पड़ी युवती।

"इसमें रोने जैसी कोई बात नहीं है।" वह बोला- तुम अपनी सेवाएं बेचती हो और मैं उन्हें खरीदने का तमन्नाई हूँ।

अगर तुम इंकार करोगी तो मैं किसी और को ढूंढ़ लूंगा।"

"ढूंढ लेना ।” एकाएक युवती एक लम्बी हिचकी लेकर बोली- "लेकिन जिस ईमानदारी और वफादारी से मैं तुम्हारा काम कर सकती हूं, शायद दूसरा न कर सकेगा।"

"इसलिए तो तुम्हें बुलाया है ।"

"काम बोलो "

"तुम्हें मेरा काम करने के लिए कहीं नौकरी करनी होगी।"

नौकरी ?”

कुछ ही दिनों के लिए। उसके बाद शायद इसकी जरूरत

नहीं रहेगी।”

“मगर... ।”

“मैं पहले ही कह चुका हूं, तुम्हारा कोई आर्थिक नुकसान नहीं होगा।"

"लेकिन नौकरी?"

"बड़ी अजीब हो तुम भी कई युवतियां नौकरी इसलिए ढूंढती हैं, ताकि शरीर बेचने की नौबत न आए और तुम इसलिए नौकरी करने से हिचकिचा रही हो क्योंकि शरीर नहीं बेच पाओगी ।"

मेरी मजबूरी तुम अच्छी तरह से समझते हो। मैं एक दिन भी बिना मर्द नहीं रह सकती। मैं निम्फो हूं। निम्फोमिनियाक।"

तुम... "
हर रात मुझे कोई ऐसा मर्द चाहिए जो मेरी इच्छा पूर्ति कर सके। जिस रात मैं अकेली होती हूं, मुझ पर क्या गुजरती है, तुम नहीं समझ सकते।"

"मुझसे बढ़कर तुम्हें कोई और भी समझ सकता है क्या?" जब समझते हो तो यह भी जानते ही होंगे कि इंसान दिन

और रात दोनों टाइम ड्यूटी नहीं दे सकता।"

मैं जानता हूँ।"

"फिर भी मुझे नौकरी करने को कह रहे हो?" शायद मुझसे गलती हुई है। मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी।"

"मुझसे उम्मीद करना तुम्हारा अधिकार है।" वह तड़पकर बोली- क्या ऐसा नहीं हो सकता कि दिन के समय मैं तुम्हारे कहने

पर नौकरी करूं और रात को..."

“रात को क्या?"

"तुम मुझे अपने पास रख लो। बीवी की तरह ।"

में ऐसा सोच भी नहीं सकता।"

क्या इसलिए कि मैं कॉलगर्ल हूं। मेरे शरीर में कोई बीमारी

हो सकती है?"

"नहीं।” युवक सपाट स्वर में बोला- "सिर्फ इसलिए, क्योंकि मैं तुम्हें गंगा से भी पवित्र समझता हूं और किसी देवी

की तरह तुम्हें पूजनीय मानता हू

“नहीं।" युवती की आवाज जोरों से कांप गई - " ये तुमने क्या कह दिया?"

“मैंने वही कहा जो मेरे दिल में है।"

“मगर मैं तो..."

“ये पूरी दुनिया ही एक मंडी है अंजुमन ।" युवक दर्द-भरे स्वर में बोला- “यहां कोई अपनी कला बेचता है तो कोई अदा कोई जिस्म बेचता है तो कोई आवाज कोई हुनर बेचता है तो कोई मेहनत । हर आदमी जिंदगी अपने ढंग से गुजारने की कोशिश करता है। कोई गुजार पाता है तो कोई नहीं गुजार पाता। सब किस्मत के खेल हैं।"

युवती ने कसकर अपनी आंखें मुंद लीं। अगले ही पल कुछ आंसू उसके गालों पर लुढ़क गए।

कहां नौकरी करनी होगी मुझे ?"

"कोर्ट रोड पर। एक शोरूम में।"

"किस चीज के शोरूम में?"

"कानून के।"

"क्या मतलब?"

कोई जवाब देने की बजाय युवक ने पास रखा एक समाचार-पत्र अंजुमन की ओर बढ़ा दिया।

"मैंने लाल निशान लगा रखा है।" यूवक बोला- "सिर्फ उसे पढ़ो ।” अंजुमन ने देखा। वह कोई विज्ञापन था, जिसमें छपा था

'जरूरत है कुछ सुंदर, स्मार्ट व दिमागदार युवतियों की, जो शोरूम पर काम कर सकें, जहां कानून की हर धारा की सेल लगाई जाएगी। युवती का साहसी, व एडवेंचर्स होना वांछनीय है। ट्रेनिंग मुफ्त, आकर्षक वेतन व अन्य सुविधाएं । सम्पर्क करें बैरिस्टर विनोद, मोबाइल नं. 98961827511

"बड़ा अजीब विज्ञापन है।” अंजुमन बोली- "ऐसा शोरूम पहली बार सुन रही हूं, जिसमें कानून की धाराओं की बिक्री होगी।”

"कर सकोगी ऐसे शोरूम पर नौकरी?"

तुम कह रहे हो तो करनी ही होगी।"

 कोई जबरदस्ती भी नहीं है।”

"यही तो कमी है तुम्हारे में। जहां जबरदस्ती करने का

तुम्हें हें पूरा अधिकार है, वहां भी नहीं करते।"

  तो तुम तैयार हो?"

“क्या लिखकर देना होगा?"

"नहीं। सिर्फ अपना हैंड बैग खोलो, मोबाइल बाहर निकालो और नम्बर डायल करो। बैरिस्टर विनोद का ।”

"ओके।" अंजुमन एक गहरी सांस लेकर बोली। फिर करीब रखे अपने हैंड बैग की ओर हाथ बढ़ा दिया।
रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य था।

अलग-अलग खम्भों से बंधी वे कम-से-कम दस औरतें थी। उनके सिर के बाल खुले थे, कपड़े मैले व अस्त-व्यस्त थे तथा चेहरे आंदोलित थे। वे रह-रहकर ठहाके लगा रही थी। ठहाके लगाते लगाते वे अचानक फूट-फूटकर रोने लगती थीं तो कभी बंधन से आजाद होने के लिए पूरा जोर लगाने लगती थीं। उसी हॉल के एक कोने में जंजीरों से जकड़ी पड़ी थी एक सूरत से ही सहमी हुई व कमजोर शरीर वाली एक ऐसी युवती जो कभी अचानक चीखने लगती थी तो कभी जूड़ी के मरीज की तरह कांपने लगती थी।

धीरे-धीरे चलता हुआ बैरिस्टर विनोद उसी युवती के करीब जा पहुंचा। उसे करीब आता देख वह यूं थर थर कांपने लगी, जैसे किसी कसाई को छुरा ताने देखकर बकरे की हालत हो जाती है।

“घबराओ मत ।” विनोद उसे इस तरह कांपते देखकर तड़पकर बोला- "मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा। मैं विनोद हूँ, विनोद । पहचानो मुझे । प्लीज ।

प्रत्युत्तर में युवती चीख उठी। फिर जोर-जोर से 'बचाओ बचाओ' चिल्लाने लगी।

"चिल्ला ।” तभी एक पागल युवती ठहाके लगाती बोली- "और जोर से चिल्ला । कोई नहीं आएगा के बचाने। जहां शेर होता है, वह इलाका 10-10 किलोमीटर तक खामोश हो जाता है।"

मान जा मेरी जान ।” तभी एक और पागल बड़े ही रोमांटिक अंदाज में बोला- “मैं तुझे रानी बनाकर रखूंगा। तू मेरे दिल पर राज करेगी।"

"चोप्प साले ।" उसी वक्त एक और गला फाड़कर चिल्लाई वर्ना आतें चीरकर रख दूंगी। दफा हो जा यहां से। बड़ा आया रानी बनाने वाला। जा, अपनी मां को रानी बना । अपनी बहन को रानी बना ।”