...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
सात्विक ने जब यह सुना.....की उसे सीट बेल्ट लगाना नहीं आता.....तोह वह उसे अजीब नजरों से देखने लगा.....फिर आगे बढ़ कर सीट बेल्ट लगा दिया.....
द्रक्षता अपने घर पहुंचने तक कुछ ना बोली.....चुप चाप बाहर देखती रही.....और सात्विक छुप छुप कर उसे देखता रहा.....
जब वो घर पहुंच गए.....तब मान्यता उतर गई और अंदर चली गई.....द्रक्षता उतर ही रही थी.....की सात्विक ने उसका हाथ थाम लिया.....जिससे द्रक्षता की धड़कनें बुलेट ट्रेन की स्पीड को भी पीछे छोड़ रही थी.....
वोह मुड़ कर उसे देखने लगी.....जो उसे ही देख रहा था.....
उसने उसे कहा:अब से आप किसी होटल.....में वेट्रेस का वर्क करने नहीं जाएंगी.....!!(बेहद ठंडी आवाज में)
द्रक्षता को समझ नहीं आ रहा था.....कि वह इस बात पर.....उसे क्या जवाब दे.....
सात्विक उसके हाथों पर दबाव बनाते हुए:सुनाई दिया ना आपको.....नहीं जाएंगी आप ऐसी जॉब करने.....!!
द्रक्षता तो पूरी तरह से हैरान हो चुकी थी.....उसे यह आदमी अब पागल लगने लगा था.....उसने उसे एक सुलझा हुआ आदमी समझा था.....पर अब वो ऐसी हरकते क्यों कर रहा था.....
अगर वह जॉब पर नहीं जाएगी.....तो अपनी मां को क्या बोलेगी.....कि उसे सात्विक ने मन किया है जाने से.....तभी उसे उसकी आवाज सुनाई पड़ी.....
"अगर कोई आपसे पूछे.....तो सीधे कह दीजिएगा.....कि हमने आपको मना किया है.....!!"
द्रक्षता अब हार कर सर हां में हिला दी......और बोली:ठीक है.....हम मां से पूछेंगे.....अगर उन्होंने ना जाने को बोला.....तो नहीं जाऊंगी.....(थोड़ा रुक)अब क्या आप हमारा हाथ छोड़ सकते है.....!!
सात्विक एक दिलकश मुस्कान के साथ.....उसके हाथ को छोड़ देता है.....तोह द्रक्षता जल्दी से अपना हाथ छुड़ा कर.....कार का दरवाजा खोल.....जल्दी से कार से निकल घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लेती है.....
सात्विक उसे तक तक देखते रहता हैं.....जब तक वो दरवाजा न बंद कर ली.....फिर अपनी कार स्टार्ट कर.....अपने महल के लिए निकल जाता है.....
द्रक्षता अपने रूम में थी.....वोह बस करवाते बदल रही थी.....इन कुछ दिनों से उसे अच्छी नींद नहीं आ रही थी.....वोह उठ जाती है.....और सोचने लगती है.....की इन दिनों में उसकी जिंदगी कहा से कहा आ गई थी.....
द्रक्षता बेड के साइड लगे टेबल.....पर रखे जार को उठा कर देखती हैं.....तो उसमें पानी नहीं था.....वो उठ कर बाहर आकर.....किचेन में जाती है.....और पानी लेकर वापस आती है.....तोह उसके मां के रूम की लाइट्स जली हुई थीं.....तोह वह उनके रूम में आती है.....तोह उसकी जागी हुई.....कुछ गहरी सोच में डूबी हुई थी.....
द्रक्षता उनके देख उनके पास आकर बैठ जाती है.....मान्यता उसे अपने पास देख.....उसके सर को अपने गोद में रख सहलाने लगती है.....
मान्यता द्रक्षता से बोली:क्या हुआ.....बेटा सोई नहीं अब तक.....!!
द्रक्षता उसे देखते हुए:मां.....नींद नहीं आ रही.....!!
मान्यता उसके सर को सहलाते हुए:बेटा.....तुमने शादी के लिए हां क्यों कहा.....!!
द्रक्षता उसे देख:क्या मुझे हां नहीं कहना चाहिए था.....मां.....मैने कुछ गलत किया.....!!
मान्यता:नहीं तुमने कुछ गलत नहीं किया.....बस मुझे लगा.....अभी तुम तैयार नहीं हो.....शादी के लिए.....लेकिन अच्छा है.....की तुमने मना नहीं किया.....क्योंकि उन्होंने एक समय.....तुम्हारे पापा की बहुत हेल्प की थी बिजनेस में.....!!
द्रक्षता उसे देख:मां.....आप उदास है.....कुछ हुआ है.....क्या.....!!
मान्यता बोली:बेटा.....तुझसे कैसे इतनी दूर रहूंगी मैं.....तू मेरे पास नहीं होती ना.....मुझे अच्छा नहीं लगता.....जब तेरी शादी हो जाएगी.....तोह कैसे रहूंगी मैं.....जानती है मैने ना तेरे बच्चो तक को इमैजिन कर लिया.....अब तक.....की वोह तेरे जैसे होंगे या सात्विक की तरह.....!!
द्रक्षता को उसकी यह बात थोड़ी हैरान कर गई.....की यहां अभी तक उसकी शादी भी नहीं हुई.....और उसकी मां ने.....उसके बच्चो तक के बारे में सोच लिया.....
द्रक्षता से कुछ बोलते नहीं बना.....मान्यता मुस्कुराते हुए उसे देख रही थी.....कुछ देर बाद उसकी आँखें नम हो जाती हैं.....द्रक्षता उसे ऐसे देख कुछ समझ नहीं पाती.....
वोह उठ कर बैठते हुए बोली:मां.....क्या हुआ है.....क्यों तो रही है आप.....बताएंगी नहीं तो पता कैसे चलेगा.....!!
मान्यता भरी आंखों से उसे देखते हुए.....उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए:बेटा.....तू इतनी जल्दी बड़ी कैसे हो गई.....फिर से मेरी गोदी में आ जा.....!!
द्रक्षता उसे देख:मां.....प्लीज़ मत रोइए.....मैं भी रो दूंगी.....!!
मान्यता खुद को संभालते हुए:ना.....ना.....तू नहीं रोएगी.....ये तोह सिर्फ खुशी के आंसू है.....की तू इतने बड़े परिवार की बहु बनेगी.....!!
द्रक्षता उसके गले लग लगी.....मान्यता ने कस के उसे गले लगा लिया.....कुछ देर वोह दोनों शांत हो गई.....द्रक्षता वही सो गई.....
अगली सुबह.....!!
द्रक्षता फ्रेश हो गई थी.....मान्यता ने नाश्ता तैयार कर लिया था.....सब डाइनिंग टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे था.....
मान्यता अपनी सास से बोली:मां.....सुरुचि और विनीता आंटी जी मिली थी.....द्रक्षता की शादी की बात कर रही थी.....और आज कुंडली लेकर बुलाया है.....क्या अभी इसका शादी करना सही होगा.....लेकिन मैं उन्हें मना नहीं कर पाई.....क्योंकि उन्होंने बहुत उम्मीद से ये बात मेरे सामने रखी.....!!
गरिमा जी कुछ सोच कर:बेटा.....कभी न कभी तो वो द्रक्षता की शादी की बात करते ही.....और हम कुछ नहीं कर सकते.....द्रक्षता अगर चाहेगी.....तोह वो परिवार बुरा नहीं है.....सभी दिल के बहुत अच्छे है.....मैं तोह कहूंगी.....अगर द्रक्षता की शादी हो जाएगी तो बहुत अच्छा होगा.....!!
मान्यता उनकी बात सुन:ठीक है.....मां.....तोह आज साथ में चलते है.....उनके घर.....आप भी उनसे मिल लेना.....मेरी बेटी की शादी की डेट फ़िक्स हो जायेगी.....इससे अच्छा मेरे लिए क्या होगा.....!!
दर्शित और दृशा उनकी बात बहुत गौर से सुन रहे थे.....
दृशा खुश होकर बोली:मां.....सच में दी कि शादी होगी.....वॉव.....मैं ना शादी में अपने सारे फ्रेंडस को बुलाऊंगी.....(फिर थोड़ा उदास हो)तोह क्या सच में दी.....शादी के बाद अपने ससुराल चली जाएगी.....!!
द्रक्षता उसे उदास देख:अरे मेरी प्यारी बहना.....इतना उदास क्यों हो रही हो.....तेरी दी कि शादी है.....खूब मोज मस्ती और डांस करना शादी में.....और क्या हुआ.....अगर ससुराल जाऊंगी.....तोह मैं तुझसे हर रोज वीडियो कॉल पर बात करूंगी.....अगर इससे भी नहीं हुआ.....तोह मैं दो-दो दिनों में वापस आ जाया करती रहूंगी.....ऐसे उदास मत रह.....अच्छी नहीं लगती तू.....!!(इतना बोल वो उसके गले लग गई)
दृशा ने भी उसे गले से लगा लिया..…दर्शित उन्हें देखे जा रहा था.....वोह उठ कर जाने लगा.....द्रक्षता उसका हाथ पकड़ उसे रोक.....
"आ जा.....तू भी.....मुझे अच्छे से पता है.....तू भी किसी कोने में जाकर रोएगा.....इससे अच्छा मेरे पास आकर रो.....!!"द्रक्षता उसे जाते देख बोली.....
दर्शित भी उसके गले लग:क्यों कर रही हो दी शादी.....मत करो.....ना.....!!
द्रक्षता उसे देख:अरे पगले.....तुझे तो मैं स्ट्रांग समझती थी.....लेकिन तू तो इमोशनल फूल निकला.....शादी तो एक ना एक दिन करनी होती है.....सभी को.....मैं अकेले थोड़ी ना हु.....अब रोना बंद कर.....तुम दोनों को चुप कराते कराते.....कही मैं भी ना रो पड़ू.....!!
मान्यता और गरिमा उन्हें देख एक दूसरे को देखने लगी.....उनकी भी आंखें नम हो चुकी थी.....लेकिन वो बस उन तीनों को देखती रही.....
द्रक्षता उन दोनों को उनके जगह पर वापस बैठाते हुए:चलो.....चुप चाप नाश्ता करो.....भूखे पेट कहीं जाने नहीं दूंगी.....!!
दोनों ने अपना सर हिला नाश्ता करना शुरू कर दिया.....
कुछ देर बाद सब अपना अपना नाश्ता कर चुके थे.....दर्शित अपने कॉलेज और दृशा अपने स्कूल चली गई.....
कुछ समय बाद मान्यता का फोन बजा.....उसने स्क्रीन पर देखा.....तोह सुरुचि उसे कॉल कर रही थी.....कल ही उन दोनों ने अपना नंबर एक्सचेंज कर लिया था.....
मान्यता कॉल रिसीव कर कान पर लगाते हुए बोली:हां.....सुरुचि.....क्या कोई काम है.....!!
सुरुचि बोली:मान्यता हम कह रहे थे.....हमारे गुरुजी बस आधे एक घंटे में आ जाएंगे.....तोह तुम भी आ जाओ.....!!
मान्यता ने हां कहकर फोन कट दिया.....
वोह गरिमा जी और द्रक्षता को लेकर उनके घर को निकल गई.....
द्रक्षता कैब में बैठे रहने के कुछ देर बाद.....उसे सात्विक का उसे जॉब करने पर इंकार याद आया.....
वोह मान्यता से बोली:मां.....वो उन्होंने मुझे यह जॉब करने से मना किया है.....तो मैं ना जाऊं.....!!
मान्यता उसे देख:मुझसे क्या पूछ रही है.....सात्विक ने मना किया है.....तोह कुछ सोच कर ही किया होगा.....!!
द्रक्षता:मतलब मैं ना जाऊं.....!!
मान्यता हां में सर हिला दी.....
कुछ आधे घंटे बाद उनकी कैब उस महल के सामन रुकी.....वोह तीनों उतर कर.....अन्दर चली गई.....
बाहर ही उन्हें सुरुचि और राम्या मिल गई.....वोह दोनों बहुत आदर के साथ उन्हें अंदर लेकर गई.....अभी गुरुजी नहीं आए थे.....उन्हें कुछ समय लगता.....
तब तक वो सभी आपस में ही बात करती रही.....तभी वहां एक भारी आवाज सुनाई पड़ी.....सब बड़े और विशालकाय दरवाजे की ओर देखने लगे.....
...!!जय महाकाल!!...
क्रमशः..!!