Jununiyat si Ishq - 6 in Hindi Love Stories by Miss Sundarta books and stories PDF | ..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 6

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..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 6

...!!जय महाकाल!!...

अब आगे.....!!

दृशा अपने स्कूल और दर्शित अपने कॉलेज जा चुका था.....द्रक्षता मान्यता के साथ उसके आए केक के.....ऑर्डर पर उसकी मदद कर रही थी.....क्योंकि वो अकेले नहीं कर पा रही थी.....और इस केक के ऑर्डर से उसे बहुत बेनिफिट होने वाला था.....जिससे उस केक को खराब बिल्कुल नहीं होने देना था.....और बहुत सारे केक थे.....
उन्हें यह सब करते करते लगभग.....द्रक्षता के होटल जाने का टाइम हो गया था.....पर उन्होंने इतना काम कर लिया था.....कि अब मान्यता खुद कर सकती थी.....
द्रक्षता अब होटल आ चुकी थीं.....और अपने काम पर वापस जुट चुकी थी.....होटल मैनेजर उसके पास आकर उसे विआईपी रूम में सर्विस देने को बोलते हैं.....
द्रक्षता उनका ऑर्डर लेकर जब वीआईपी लॉबी में जाती हैं.....हर तरफ शांत वातावरण था.....कही भी कोई आवाज नहीं आ रही थी.....वो उस रूम का दरवाजा खटखटाती है.....तो वोह रूम पहले से अनलॉक्ड था.....
कुछ समय तक रुकने के बाद.....भी कोई ना आया.....तो वोह हिचकिचाते हुए अंदर आती है.....तोह हर तरफ अंधकार फैला हुआ था.....ट्रे को वही पड़े टेबल पर रख कर.....जैसे ही जाने को मुड़ी.....तोह वह किसी से टकरा गई.....टकराने से उसके सर पर बहुत तेज दर्द फेल गया.....
उसने अपना सर उठा कर देखा.....तो अंधकार होने के कारण.....वह बस मजबूत शरीर देख पा रही थी.....उसने महसूस किया कि.....वो शरीर उसके पास से हट कर.....कही जा रहा हो.....
फिर वहां की लाइट्स ऑन हो गई.....द्रक्षता ने सामने देखा तो पाया.....की यह वही आदमी था.....जो लगभग उसे हर रोज ही कही न कही दिख ही जाता था.....
सात्विक ने अपने सामने द्रक्षता को देखा.....तो उसका दिल खुशी से उछल उठा.....लेकिन फिर भी भावहीन चेहरा लेकर.....
उसने उससे पूछा:आप यहां क्या कर रही है.....!!
द्रक्षता हिचकिचाते हुए:वोह मैं आपका ऑर्डर देनी आई थी.....सर.....लेकिन दरवाजा खटखटाने पर भी कोई नहीं आया तो.....मैने अंदर आकर रख दिया.....सॉरी सर.....अगर आपको यह पसंद ना आया हो तो!!
सात्विक ने ज्यादा कुछ ना बोला:ह्म्म्म.....अब आप जा सकती है.....!!
द्रक्षता ने जब से उसे देखा था.....उसे कंटीन्यूअस देखते जा रही थीं.....जब सात्विक ने उसे जाने को कहा.....वोह जाने लगी.....लेकिन वो जाना नहीं चाहती थी.....
तभी उसे सात्विक की आवाज सुनाई पड़ी.....
ठहरिए.....!!
वोह झट से पीछे मुड़कर उसे देखते हुए:यस सर.....अपने मुझे रोका.....!!
सात्विक हां में सिर हिला कर.....उसके करीब आ रहा था.....और उसके पास आकर.....
उसकी आंखों में बेहद सिद्दती निगाहों से देख:क्या आप हमसे शादी करेंगी.....!!
द्रक्षता यह सुन बड़ी ही शॉकिंग नजरों से उसे देखने लगी.....उसे अपने कानो पर भरोसा नहीं हो रहा था.....क्या वोह दिन में भी सपना देख रही थी.....उसने अपने आप को कन्फर्म करने के लिए.....
सात्विक से पूछा:क्या.....कहा आपने सर.....!!
सात्विक उसे देखते हुए:जो आपने सुना.....!!
द्रक्षता हैरानी से अपनी बड़ी बड़ी आंखों को.....और बड़ा करते हुए:क्या.....सच में.....!!
सात्विक ने हां में सिर हिला दिया.....द्रक्षता थोड़ी देर तक सोचते रह जाती है.....तो उसे अपनी मां की बताए गई.....बाते याद आ गई.....
तब उसने अपना सर ना में हिलाते हुए:नहीं सर ऐसा नहीं हो सकता.....और.....मेरी शादी तय हो चुकी हैं.....!!
यह सुन सात्विक की आँखें लाल हो गई.....और वोह गुस्से से कांपने लगा.....यहां तक कि उसकी हाथ की नसे भी उभरने लगी.....उससे अब अपना गुस्सा सम्भल नहीं रहा था.....
द्रक्षता उसे ऐसे देख डर कर पीछे होने लगती है.....तब सात्विक उसे कमर से पकड़ खिच अपने आप से सटा लेता है.....उसके ऐसे खींचने से द्रक्षता का सर उसके सीने से टकरा जाता है.....और वोह बेहद डर से उसे देखे जा रही थी.....
सात्विक उसकी आंखों में बड़ी शिद्दत से देखते हुए.....अपनी बेहद ठंडी आवाज में:आपकी हिम्मत कैसे हुई.....किसी और से शादी करने की.....यहां हम आपके लिए रोज तड़पते हैं.....और आप है कि.....किसी दूसरे आदमी को अपनी जिंदगी में लाना चाहती है.....ऐसा हम कभी नहीं होने देंगे.....आपको हमारा होना होगा.....चाहे मोहब्बत से या चाहे जबरदस्ती से.....समझी आप.....!!
द्रक्षता उसकी बात सुन और ज्यादा हैरानी से:यह क्या कह रहे है आप.....हमारे जिंदगी के फैसले लेने का आपको कोई अधिकार नहीं.....और आप है कौन हमारे जो.....हम आपके लिए आपका इंतजार करे.....और हम करेंगे किसी और से शादी.....आप होते कौन है हमें रोकने वाले.....!!(बोलते बोलते वह गुस्से में आ जाती है)
वोह उसकी पकड़ से छुटने की कोशिश कर रही थी.....सात्विक लगातार उसे देख रहा था.....वो भी बड़ी डरावनी नजरों से.....उसके आज तक किसी ने भी इतने जवाब नहीं दिए थे.....
फिर वह कुछ सोच द्रक्षता को अपनी पकड़ से आजाद कर देता है.....उसके ऐसा करते ही.....द्रक्षता उसे देखने लगी.....
तब सात्विक ने उसे घूरते हुए कहा:अब नहीं जाना.....अभी तक तो हमसे बहुत दूर होने की कोशिश कर रही थी.....क्या हुआ.....!!
यह सुन द्रक्षता उसके एक नजर देख चुपचाप वहां से चली जाती है.....सात्विक सोफे पर बैठ भावशून्य हुए डोर को देख रहा था.....जहां से अभी द्रक्षता गई थी.....
"अभी तुम्हे जहां जाना है जाओ.....लेकिन आना तो तुम्हे मेरे पास ही है.....!!"
उसका फोन जो टेबल पर रखा हुआ था.....बजने लगा.....उसने उठा कर देखा तो उसकी मां कॉल कर रही थी.....उसने कॉल रिसीव कर कान पर लगा लिया.....तो दूसरे तरफ से उसकी मां की गुस्से भरी आवाज सुनाई दी.....
जो कह रही थी:सात्विक कहा हों तुम.....आर्या कब से तुम्हारा लिए रुकी हुई है.....और तुम हो कि सबको इग्नोर करते रहते हो.....अरे वो बहन है तुम्हारी.....उसके खातिर तो आ जाओ.....!!
सात्विक:आ रहे हैं हम.....मां.....कुछ काम था.....इसलिए देर हो रही है.....!!
सुरुचि:जल्दी आओ बेटा.....सब वेट कर रहे है.....तुम्हारा.....!!
सात्विक ठीक है.....कह कर कॉल कट कर देता है.....फिर अपना कोट उठा कर पहन रूम से बाहर निकल जाता है.....
जब वो होटल के बाहर निकल रहा था.....तब उसकी नजर द्रक्षता को ढूंढने लगती हैं.....लेकिन वो उसे कही नजर नहीं आती.....तो उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान खिल जाती है.....
"कब तब छुपोगी हमसे.....आना तो हमारे पास ही है.....!!"
राघव जो कि गाड़ी में बैठा.....उसका इंतेज़ार कर रहा था.....वोह उसको आते देख दरवाजा खोल दिया.....तो सात्विक उसमें बैठ गया.....और वोह लोग चले गए.....
द्रक्षता जो कि तबसे होटल के किचेन में थी.....सात्विक को जाते देख.....एक चैन की सांस ली.....
उसके ड्यूटी का टाइम खत्म हो गया था.....और वोह अपनी स्कूटी पार्किंग से निकाल ही रही थी.....कि उसका फोन बजा.....उसके फोन के स्क्रीन पर देखा.....तो मान्यता उसे कॉल कर रही थी.....उसने रिसीव कर लिया.....
और बोली:हां मां.....कोई दिक्कत हो गई क्या वहां.....!!
मान्यता:अरे नहीं कोई दिक्कत नहीं है.....बस जिन्होंने केक का ऑर्डर दिया था.....वह तुमसे मिलना चाहती है.....मैं तुम्हे एड्रेस भेज दे रही हु.....तु आजा.....!!
द्रक्षता कुछ देर रुक:लेकिन मां वो मुझसे क्यों मिलना चाहेंगी.....!!
मान्यता उसे लगभग ऑर्डर देते हुए:बस अब मैं कुछ नहीं सुनूंगी.....चुप चाप आ.....!!
द्रक्षता अब कुछ ना बोल पाई.....कुछ दो सेकेंड्स के बाद.....उसके फोन का मैसेज टोन बजा.....उसने देखा उसकी मां ने लोकेशन भेज दिया है.....जो यन्हा से काफी दूरी पर था.....उसने अब ज्यादा टाइम वेस्ट ना करते हुए.....स्कूटी स्टार्ट कर लोकेशन फॉलो करे हुए चली गई.....
वहां पहुंचने में उसे लगभग 50 से 55 मिनट लग गए.....और आज ज्यादा ट्रैफिक भी नहीं था.....
उसने एक बहुत बड़े घर के सामने अपनी स्कूटी रोकी.....वोह घर आज पूरी तरह लाइट से चमक रहा था.....शायद वहां कोई फंक्शन हो रहा था.....उसने एक नजर लोकेशन को देख सोचा.....
"क्या यही वह घर है.....यह घर कहा से लग रहा है.....ये तो महल को भी पीछे छोड़ दे.....वैसे मुझे क्या मुझे थोड़ी ना इस महल रूपी घर में ब्याहना है.....!!"
उसने अपने खयालों को झटका.....और अपनी मां को फोन लगाया.....कुछ ही रिंग्स में कॉल रिसीव हो गई.....
तो सामने से मान्यता बोली:आ गई तू.....मैं एक मेड को भेज दे रही हु.....तू उसके साथ अंदर आ जाना.....मैं नहीं आ पाऊंगी.....ठीक है.....!!
द्रक्षता बस ठीक है बोल कॉल कट कर देती है.....और मेड का वेट करने लग जाती हैं.....कुछ समय बाद एक मेड आती है.....
उसे बोली:क्या आप ही द्रक्षता चौहान है.....!!
द्रक्षता हां में सिर हिला देती है.....तोह वह उसे अपने साथ आने को बोलती है.....द्रक्षता उसके पीछे पीछे चल देती है.....
उस महल के अंदर सब कुछ आलीशान था.....जिसपर से द्रक्षता अपनी नजर नहीं हटा पा रही थी.....
मेड उसे मान्यता के पास लेकर जाती है.....और खुद वहां से चली जाती हैं.....मान्यता उसे वहां से जो उससे मिलना चाहती थी.....उसके पास लेके जाती है.....

...!!जय महाकाल!!...

क्रमशः...!!