इश्क़ के रंग
शाम ढल रही थी। सूरज के ढलते ही आसमान लाल, नारंगी और सुनहरे रंगों में रंग गया था। शहर की भागती-दौड़ती ज़िंदगी के बीच, एक पुराना कैफ़े था, जहाँ अक्सर ज़िंदगी के ठहरे हुए लम्हे मिल जाते थे। वहीं बैठी थी आर्या, अपने हाथों में किताब लिए, लेकिन उसकी आँखें हर पन्ने के पार जाकर किसी के इंतज़ार में खोई हुई थीं।
आर्या के इंतज़ार का नाम था अरमान। वे दोनों पहली बार इस कैफ़े में मिले थे। एक किताब की चर्चा करते हुए, उनका परिचय गहराई में बदल गया। अरमान के अंदर की सादगी और आर्या के चेहरे की मासूमियत ने दोनों के दिलों में एक खूबसूरत अहसास को जन्म दिया।
उस शाम, अरमान ने आर्या से वादा किया था कि वे हर शुक्रवार को यहीं मिलेंगे। और तब से ये कैफ़े उनके इश्क़ की कहानियों का मूक गवाह बन गया।
लेकिन आज का शुक्रवार कुछ अलग था। आर्या की आँखों में इंतज़ार था, लेकिन साथ ही एक हल्की बेचैनी भी। अरमान को आए हुए घंटा भर हो चुका था, लेकिन वह नहीं पहुँचा। आर्या ने अपनी घड़ी की ओर देखा और ठंडी साँस लेकर सोचा, "शायद वह भूल गया होगा।"
वह उठकर जाने को हुई, तभी दरवाज़े की घंटी बजी। अरमान भागते हुए अंदर आया, उसकी साँसें तेज़ थीं। उसके हाथ में एक छोटा-सा पैकेट था।
"सॉरी, देर हो गई," अरमान ने कहा।
"इतना इंतजार करवाना अच्छी बात नहीं होती," आर्या ने हल्के गुस्से से कहा।
"लेकिन अगर वज़ह खास हो, तो?" अरमान ने मुस्कुराते हुए पैकेट उसकी ओर बढ़ाया।
आर्या ने झिझकते हुए पैकेट खोला। अंदर एक छोटी-सी पेंटिंग थी। पेंटिंग में वही कैफ़े था, जहाँ वे दोनों पहली बार मिले थे। और उस पेंटिंग के नीचे लिखा था, "इश्क़ के रंग।"
आर्या की आँखें भर आईं। "तुमने इसे खुद बनाया?"
"हाँ," अरमान ने कहा। "क्योंकि हमारे इश्क़ के हर रंग यहीं से शुरू हुए थे।"
उस लम्हे में, आर्या और अरमान के बीच शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। इश्क़ ने अपने हर रंग को उनके दिलों में हमेशा के लिए बसा दिया।
अरमान ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "और इन रंगों को मैं कभी फीका नहीं होने दूँगा। जैसे हमारा प्यार, ये हमेशा ऐसे ही चमकेगा।"
उस शाम कैफ़े के बाहर अँधेरा छाने लगा, लेकिन अंदर आर्या और अरमान के दिल इश्क़ के रंगों से रोशन हो गए थे। दोनों ने वादा किया कि चाहे ज़िंदगी में कितने ही उतार-चढ़ाव क्यों न आएँ, उनका इश्क़ इन रंगों की तरह हमेशा ताजा रहेगा।
उस पेंटिंग की एक खासियत थी—उसमें सिर्फ उनके अतीत के लम्हे ही नहीं, बल्कि उनके भविष्य की उम्मीदें भी छुपी थीं। और शायद यही इश्क़ का सबसे खूबसूरत रंग था।
वह पेंटिंग अब सिर्फ एक तसवीर नहीं थी; वह आर्या और अरमान के रिश्ते की शुरुआत का प्रतीक बन गई। उन्होंने इसे अपने कैफ़े के हर कोने में देखा, हर मुलाकात में महसूस किया। लेकिन जैसा कि जिंदगी की फितरत है, कुछ रंग समय के साथ फीके पड़ने लगते हैं।
कुछ महीने बाद, उनकी मुलाकातें कम होने लगीं। अरमान अपने काम में व्यस्त हो गया था, और आर्या को उसका समय न मिलने का मलाल रहने लगा।
"तुम्हारे पास अब मेरे लिए वक्त क्यों नहीं है?" आर्या ने एक शाम पूछा।
अरमान ने ठंडी साँस भरते हुए कहा, "मैं अपनी ज़िंदगी को सही दिशा देने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम मेरे लिए कम जरूरी हो।"
आर्या ने समझने की कोशिश की, लेकिन दिल के किसी कोने में एक खालीपन घर कर गया। उनके बीच कैफ़े का वह मेज़ और पेंटिंग अब भी थी, लेकिन उनके बीच की दूरियाँ बढ़ रही थीं।
दीपांजलि--- दीपाबेन शिम्पी गुजरात