Chuppi - Part - 8 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | चुप्पी - भाग - 8

Featured Books
  • અભિનેત્રી - ભાગ 18

    અભિનેત્રી 18*                                "એય.શુ કરે છે?...

  • ફરે તે ફરફરે - 96

    ૯૬ સાંજના ચારેક વાગ્યા હતા.૨૦૦ફુટથી વધારે પહોળા વોશિગ્ટનના વ...

  • Old School Girl - 10

    અમે લોકોએ પાસ થઈ જઈએ અને પરીણામ લેવા જઈએ ત્યારે ભુદરકાકાને ત...

  • મારા અનુભવો - ભાગ 35

    ધારાવાહિક:- મારા અનુભવોભાગ:- 35શિર્ષક:- વાડકો વેચ્યોલેખક:- શ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 247

    ભાગવત રહસ્ય -૨૪૭   નંદ મહોત્સવ રોજ કરવો જોઈએ.મનથી ભાવના કરવા...

Categories
Share

चुप्पी - भाग - 8

क्रांति चाहती थी कि अपनी माँ को सब बता दे। उसके कंधे से लिपटकर सारा दुख बहा दे, परंतु वह यह भी जानती थी यदि सच्चाई उन्हें बता दी तो बस यही हॉकी का अंतिम दिन होगा।

अपने आप को संभालते हुए उसने कहा, "हाँ मम्मी बात कुछ और भी है।"

"वह क्या है क्रांति?"

"मम्मी हमारी टीम ने तीन गोल मारे थे, उनकी टीम ने भी तीन गोल किए थे। समय केवल 3 मिनट ही बाक़ी था, मैं चौथा गोल करने जा रही थी कि उस टीम की एक लड़की ने मुझे जानबूझकर पांव में हॉकी फंसा कर गिरा दिया और बॉल ले जाकर ख़ुद गोल कर दिया।"

"ओफ्फ़ ओह वरना तुम्हारी टीम फाइनल जीत जाती।"

"हाँ मम्मी।"

"कोई बात नहीं बेटा, खेलकूद में यह सब होता चला आ रहा है और आगे भी होता रहेगा तुम हिम्मत मत हारो।"

"ठीक है मम्मी।"

अब तक शाम हो चुकी थी। क्रांति के पापा घर आए तो रोज़ की तरह चाय की चुस्की के साथ उन्होंने टेलीविजन पर समाचार देखना शुरू किया। चैनल बदलते हुए लोकल चैनल पर जाते ही उनकी उंगली वहीं रुक गई। उन्होंने देखा लड़कियों का हॉकी मैच चल रहा है। यह देखते ही उन्हें तेजी से दौड़ती हुई उनकी बेटी क्रांति दिखाई दे गई। उन्होंने आंखों को मसला, अपना चश्मा साफ़ किया और फिर देखा तो उनकी आंखें पलक झपकना ही भूल गईं। कितनी अच्छी हॉकी खेलती है उनकी क्रांति। वह दंग थे, इतना कुछ हो गया और उन्हें कुछ भी नहीं पता। वह उसका खेल देखकर हैरान भी थे और खुश भी थे।

उन्होंने तुरंत आवाज़ लगाई, "रमिया जल्दी इधर आओ।"

रमिया तुरंत ही वहाँ आ गई, परंतु टेलीविजन पर चल रहे हॉकी मैच को देखकर वह घबरा गई।

तभी उसके पति अरुण ने पूछा, "कहाँ है क्रांति बुलाओ उसे? और यह सब कब से चल रहा है?"

क्रांति भी आ गई और डरकर नीचे निगाहें झुका कर खड़ी हो गई। उसने धीरे से कहा, "सॉरी पापा।"

अरुण तो टीवी में क्रांति का खेल देखकर गुब्बारे के समान ख़ुशी से फूल गए थे। उन्होंने क्रांति के पास जाकर उसे सीने से लगाते हुए कहा, "अरे क्रांति कहाँ से लाई है तू इतना टैलेंट? हमारे परिवार में तो कोई हॉकी को नहीं जानता, यहाँ तक कि किसी को भी खेल कूद में रुचि नहीं रही फिर तू कैसे?"

क्रांति और रमिया दोनों अरुण का ऐसा व्यवहार देखकर हैरान थे, खुश भी थे और खुश क्यों ना होते अब तो हॉकी खेलने में कोई रोक-टोक नहीं होगी।

अरुण के सीने से लगते हुए क्रांति ने पूछा, "पापा आप नाराज नहीं हुए, मतलब आप खुश हैं?"

"हाँ बेटा, मैं दरअसल तुम्हारा खेल देखकर खुश हूँ। तुम इतना अच्छा खेलती हो, तो गुस्सा क्यों और कैसे कर सकता हूँ बेटा? मैं तुम्हें मना करता रहा और तुम चोरी-चोरी इतने आगे निकल गईं। रमिया तुमने भी कभी नहीं बताया; मतलब पिकनिक जाना सिर्फ़ एक बहाना होता था एक सफेद झूठ। काश बेटा तुमने मुझे एक बार भी तुम्हारा खेल देखने बुला लिया होता तो मैं कभी मना नहीं करता; क्योंकि तब तो मना करने की कोई गुंजाइश ही नहीं होती। मुझे क्या पता था कि मेरी बेटी तो माँ के पेट से ही यह कला अपने साथ लेकर आई है। खेल बेटा खेल, अब तो मैं भी तुम्हारे साथ हूँ।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः