Amanush - 20 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२०)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२०)

शाम ढ़ल चुकी थी और सतरुपा अब सिंघानिया विला पहुँच चुकी थी,वो विला के भीतर घुसी ही थी कि तभी दिव्यजीत सिंघानिया कहीं जाने के लिए तैयार खड़ा था,फिर वो उसके पास आकर बोला....
"तुम आ गई देवू डार्लिंग! कहाँ गईं थीं",
"जी! माँल गई थी",देविका बनी सतरुपा बोली....
"लेकिन लगता है शाँपिंग नहीं की तुमने वहाँ,क्योंकि हाथ में तो कुछ भी नहीं है",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"हाँ! कुछ पसंद ही नहीं आया,बस यूँ ही घूमकर वापस चली आई",देविका बनी सतरुपा बोली...
"ठीक है कोई बात नहीं,चलो अपने कमरे में जाकर आराम करो,मैं भी थोड़ी देर में निकलूँगा,अगर मैं चला जाऊँ तो परेशान मत होना",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"क्यों ?आप कहाँ जा रहे हैं?",देविका बनी सतरुपा ने पूछा...
"कुछ जरूरी काम है",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"जी! ठीक है!",
और ऐसा कहकर देविका बनी सतरुपा अपने कमरे में चली गई,दरवाजे बंद किए,फिर फौरन ही उसने अपने पर्स से फोन निकाला और इन्सपेक्टर धरमवीर से बात करने लगी,उसे वो फोन इन्सपेक्टर धरमवीर ने ही दिया था,जो कि साधारण सा कीपैड वाला मोबाइल फोन था,वो उन्होंने इसलिए सतरुपा को दिया था ताकि वो इन्सपेक्टर धरमवीर से बात कर सकें,सतरुपा उनसे फोन पर बोली...
"मैं तो ठीक से घर पहुँच गई हूँ लेकिन ये सिंघानिया ना जाने कहाँ जा रहा है,कह रहा था कि कुछ जरूरी काम है",
"अकेले जा रहा है या ड्राइवर भी है साथ में",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"वो तो देखना पड़ेगा",देविका बनी सतरुपा बोली...
"तो फौरन देखकर मुझे बताओ कि वो ड्राइवर को साथ ले गया है या नहीं",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! मैं अभी देखकर बताती हूँ",
और ऐसा कहकर देविका ने फोन अपने पर्स में छुपा दिया और फिर घर से बाहर आकर वो पार्किंग की ओर आई,वहाँ उसने ड्राइवर को देखा तो उससे पूछा....
"साहब! चले गए क्या?",
"जी! हाँ! वे बोले कि वो खुद ही कार ड्राइव करके ले जाऐगें",ड्राइवर बोला...
"ओह...वे चले गए तो कोई बात नहीं"
और ऐसा कहकर देविका बनी सतरुपा घर के भीतर आई और फौरन ही उसने अपने कमरे में जाकर इन्सपेक्टर धरमवीर को फोन करके कहा कि सिंघानिया अकेले ही गया है,तब इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ठीक है,मैं ये बात करन को भी बताता हूँ"
और ऐसा कहकर उन्होंने फोन काट दिया,इन्सपेक्टर धरमवीर इसलिए इतने परेशान थे कि दो लड़कियाँ फिर से गुमशुदा थीं और उन दोनों लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दूसरे पुलिसस्टेशन में लिखवाई गई थी,उन में से एक बार डान्सर थी और दूसरी काँलेज में पढ़ती थी और ताज्जुब वाली बात ये थी कि बार डान्सर ब्लू व्हेल बार की नहीं थी और काँलेज वाली लड़की भी वी.आर.सी. काँलेज की नहीं थी,इसका मतलब अब दूसरे बार और दूसरे काँलेज की लड़कियों को भी निशाना बनाया जा रहा था और ये कोई सीरियल किलर था जो ये काम कर रहा था.....
दोनों लड़कियों की गुमशुदगी की बात उन्होंने सतरुपा को इसलिए नहीं बताई कि कहीं वो परेशान ना हो जाएँ,लेकिन अब उनके लिए इस समस्या का समाधान ढूढ़ना बहुत जरूरी हो गया था क्योंकि ये उनका फर्ज था,इसलिए ही तो उन्होंने पुलिस की नौकरी की थी और अब तक उन सभी हत्याओं के सुरागों का कुछ भी पता नहीं चल पाया था ,क्योंकि अब तक किसी भी गुमशुदा लड़की की लाश नहीं मिली थी,किसी की भी लाश मिल जाती तो कुछ तो अन्दाज़ा लग जाता कि उन हत्याओं के पीछे कातिल का मकसद क्या है,कोई ठोस सुबूत नहीं,कोई गवाह नहीं,बस अँधेरे में निशाना लगाया जा रहा था और अब इन्सपेक्टर धरमवीर का पूरा शक़ दिव्यजीत सिंघानिया पर ही था, लेकिन उसे पकड़ने के लिए भी उनके पास कोई भी ठोस वजह नहीं था...
उधर करन भी परेशान था क्योंकि सतरुपा ने जो माइक्रोफोन दिव्यजीत सिंघानिया के स्टडीरूम में लगाया था वो काम नहीं कर रहा था,इसलिए वो इस बात को लेकर बहुत परेशान था,ये बात बताने के लिए करन ने इन्सपेक्टर धरमवीर को फोन किया,तब इन्सपेक्टर धरमवीर उससे बोले...
"शायद सतरूपा ने माइक्रोफोन ठीक से नहीं लगा पाया होगा",
"तो अब मैं क्या करूँ,उससे बात कर लूँ क्या फोन पर,",करन ने इन्सपेक्टर धरमवीर से पूछा...
"नहीं! अभी उससे बात मत करो,क्योंकि कुछ देर पहले उसने मुझे फोन करके ये बताया कि सिंघानिया अपनी कार लेकर अकेला ही कहीं गया है,वो ड्राइवर को अपने साथ नहीं ले गया",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"तो अब हम दोनों क्या करें,चलकर सिंघानिया को ढू़ढ़े क्या कि वो कहांँ गया है",करन बोला...
"आज नहीं,क्योंकि दो लड़कियांँ फिर से गुम हो गईं हैं,इसलिए हम दोनों उन लड़कियों का पता लगाने की कोशिश करते हैं,शायद छानबीन करने से कुछ पता चल सके",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ठीक है तो मैं थोड़ी देर में तुम्हारे घर पहुँचता हूँ,तुम मेरा वहीं इन्तजार करो"
और ऐसा कहकर करन ने फोन काट दिया,फिर कुछ देर बाद वो इन्सपेक्टर धरमवीर के घर पहुँचा,इसके बाद दोनों उन गुमशुदा लड़कियों की खोजबीन करने निकल पड़े,वे दोनों आधी रात तक पूछताछ करते रहे लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा,दोनों परेशान थे कि आखिर चल क्या कर रहा था,फिर दोनो खाली हाथ ही अपने अपने घर लौट आएँ और इधर जब आधी रात के वक्त सतरुपा की आँख खुली तो आज फिर से रोहन और शैलजा के बीच बहस हो रही थी,आज फिर से रोहन नशे में धुत होकर घर लौटा था और शैलजा उसे खरीखोटी सुना रही थी,वो उससे कह रही थी कि....
"क्यों अपनी जिन्दगी बर्बाद कर रहा है,तेरा ऐसा ही हाल रहा तो तुझे दिव्यजीत कुछ नहीं देगा"
"तुम्हें क्या लगता है कि मैं उसे आसानी से इस दौलत का मालिक बनने दूँगा,वो मुझे नहीं देगा तो मैं ये सब उसे मारकर हासिल कर लूँगा",रोहन बोला....
"पागलों वाली बात मत कर,किसी नौकर ने कुछ सुन लिया तो दिव्यजीत तुझे कुत्ते की तरह इस घर से लात मारकर निकाल देगा,चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो जा,सुबह बात करेगें",शैलजा बोली...
और फिर रोहन अपनी माँ की बात मानकर अपने कमरे में चला गया,अभी तक सतरुपा रोहन और शैलजा के कमरे में माइक्रोफोन नहीं लगा पाई थी,लेकिन दिव्यजीत के स्टडीरूम में माइक्रोफोन लगाने में वो कामयाब हो चुकी थी,उसे अभी तक रोहन और शैलजा के कमरे में माइक्रोफोन लगाने का मौका ही नहीं मिला था,यही सब बातें सोचते सोचते वो फिर से सो गई,सुबह लगभग छः बजे उसकी आँख खुल गई और वो शैलजा के पास जाकर उससे बोली...
"माँ! जी! मैंने आज से योगा क्लास ज्वाइन कर ली है और मैं वहीं जा रही हूँ"
"ठीक है बेटी! अपने शरीर का ध्यान रखना तो बहुत अच्छी बात है",शैलजा बोली...
और फिर देविका बनी सतरुपा फ्रैश होकर योगा क्लास ज्वाइन करने चल पड़ी,वो योगाक्लास नहीं इन्सपेक्टर धरमवीर के घर जा रही थी और कुछ ही देर में वो वहाँ पहुँच भी गई,तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने उसे बताया कि करन कह रहा था कि दिव्यजीत के स्टडी रुम में लगाए गए माइक्रोफोन काम नहीं कर रहे हैं,फिर कुछ देर तक वो उनसे बात करती रही,इसके बाद वो फिर से सिंघानिया विला चली आई और फिर वो घर आकर सीधे दिव्यजीत के स्टडी रुम की ओर मुड़ गई,वो दिव्यजीत के स्टडीरूम में माइक्रोफोन चेक कर ही रही थी कि तभी दिव्यजीत बाथरुम से निकलते हुए बोला....
"क्या हुआ देवू डार्लिंग क्या ढूढ़ रही हो"?
दिव्यजीत की आवाज़ सुनकर पहले तो सतरूपा थोड़ा चौकी ,फिर बोली...
"आप कब आएंँ?"
"अभी थोड़ी देर पहले ही आया"दिव्यजीत बोला...
"मुझे लगा आप रात में ही घर लौट आऐगें",देविका बनी सतरूपा बात टालते हुए बोली...
"अभी तक तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया कि तुम यहाँ क्या ढूढ़ रही थी",दिव्यजीत बोला...
"कुछ नहीं,कोई किताब लेने आई थी,दिन भर घर में बैठे बैठे बोर हो जाती हूँ ना!"
"ओह...तो ये बात है",दिव्यजीत बोला..
"जी!",देविका बोली...
"तुम्हें किताबों का शौक कब से हो गया",दिव्यजीत बोला....
"बस यूँ ही,अब मन करता है कुछ पढ़ने का",देविका बोली...
"अच्छा! ठीक है! माँ कह रही थी कि तुम ने आज से योगा क्लास ज्वाइन की है,योगाक्लास से आई हो ना तो थक गई होगी,इसलिए चलो पहले तुम नहा लो,फिर नाश्ता करके आज बाहर कहीं चलते हैं लोन्ग ड्राइव पर, तुम्हारी बोरियत मिटाने के लिए,चलोगी ना मेरे साथ",दिव्यजीत बोला....
"जी! ठीक है! देविका बोली....
इसके बाद देविका बनी सतरुपा नहाकर आ गई और दोनों ने साथ बैठकर नाश्ता किया,फिर दोनों कार से लोन्ग ड्राइव के लिए निकल गए,जब उनकी कार सुनसान सड़क पर आ पहुँची तो तब देविका बनी सतरुपा ने दिव्यजीत से पूछा...
"हम कहाँ जा रहे हैं"
"हमारे फार्महाउस",दिव्यजीत बोला....
और फार्महाउस का नाम सुनते ही सतरूपा के होश उड़ गए....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....