Amanush - 9 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(९)

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(९)

इन्सपेक्टर धरमवीर कुछ ही देर में सतरुपा को लेकर अपने घर आ गए और फिर सतरुपा से बोले...
"सतरुपा! तुम अब जल्दी से मिसे सिंघानिया के गेटअप में आ जाओ,इसके बाद मैं तुम्हें मिस्टर सिंघानिया के घर पर छोड़कर आता हूँ",
"मेरा उस नर्क में जाने का जी नहीं कर रहा",सतरुपा बोली...
"लेकिन जाना तो पड़ेगा ही सतरुपा! तुम्हारे जरिए ही हम देविका के कातिल को पकड़ सकते हैं", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! मैं तैयार हो जाती हूँ",
और ऐसा कहकर सतरुपा दूसरे कमरें में तैयार होने चली गई तब मिहिका ने इन्सपेक्टर धरमवीर से पूछा...
"अब करन भइया की तबियत कैंसी है"?
"अभी तो ठीक लग रही थी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
मिहिका और धरमवीर के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि तभी सतरुपा तैयार होकर आ गई और इन्सपेक्टर धरमवीर से बोली...
"चलिए! मैं तैयार हूँ"
और फिर इन्सपेक्टर धरमवीर देविका बनी सतरुपा को मिस्टर सिंघानिया के घर पर छोड़ने पहुँचे,उस समय दिव्यजीत घर पर नहीं था,तब दिव्यजीत की माँ शैलजा ने इन्सपेक्टर धरमवीर से पूछा...
"क्या कहा डाक्टर ने,मेरी देविका ठीक तो है ना!",
"जी! घबराने वाली कोई बात नहीं है,उन्होंने कहा है कि ये धीरे धीरे सदमे से उबर जाऐगीं,बस थोड़ा वक्त लगेगा",इन्सपेक्टर धरमवीर ने कहा...
"ठीक है आप बैठिए,मैं तब तक आपके लिए अच्छी सी काँफी बनाकर लाती हूँ",शैलजा बोली...
"जी! उसकी कोई जरूरत नहीं है,मुझे अब चलना चाहिए,पुलिस स्टेशन में बहुत सा काम है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ठीक है! अगर आपको बहुत काम है तो फिर मैं आपको रुकने के लिए जोर नहीं दूँगी",शैलजा बोली....
और फिर इन्सपेक्टर धरमवीर मिस्टर सिंघानिया के विला से वापस आ गए,वे पुलिस स्टेशन पहुँचे तो उन्हें हवलदार बंसी यादव ने एक चौकाने वाली बात बताई कि.....
"वी.आर.सी.काँलेज की जो लड़की गायब हुई थी उसे आखिरी बार उस कैंटीन के हेल्पर रघुवीर के साथ देखा गया था और यही नहीं जो भी लड़कियाँ गायब हो चुकीं हैं उन्हें भी आखिरी बार रघुवीर के साथ ही देखा गया था और जिसने रघुवीर के साथ उन लड़कियों को देखा था,आज सुबह रेलवे फाटक के पास उसकी लाश मिली है,उसने ये बात कैंटीन के मालिक को बताई थी और उसके बाद किसी ने उसका काम तमाम कर दिया,लाश को देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे उसे जहर दिया गया है,लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई है,रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा कि उसके साथ क्या हुआ था"
"जिसकी लाश मिली है उसका नाम क्या है?"इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"उसका नाम छुट्टन था और वो रघुवीर के ही गाँव का था",हवलदार बंसी यादव बोला...
"ये केस तो सुलझने के वजाय और उलझता जा रहा है,कहीं से भी कोई सुराग नहीं मिल रहा है और उस पर से ये छुट्टन की लाश का मिलना,पता नहीं क्या चल रहा है और कौन है इन सब हत्याओं के पीछे", इन्सपेक्टर धरमवीर परेशान होकर बोले...
"जब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट नहीं आ जाती तो तब तक हम लोग कुछ नहीं कर सकते",हवलदार बंसी यादव बोला...
"ठीक है तब तक इन्तजार कर लेते हैं,लेकिन अब कुछ तो करना ही होगा",
इन्सपेक्टर धरमवीर ऐसा कहकर अपनी सीट पर जा बैंठे और कुछ सोचने लगे...
और उधर मिस्टर सिंघानिया के घर पर....
रात हो चुकी थी,रात के लगभग नौ बज रहे थे तभी मिस्टर सिंघानिया की कार घर के गेट पर आकर रुकी,सिंघानिया साहब उसमें से उतरकर घर के अन्दर आए और ड्राइवर उनकी कार को घर की पार्किंग में लगाने चला गया,वे जैसे ही घर के हाँल में दाखिल हुए तो उन्होंने देविका को आवाज़ देते हुए कहा...
"देवू....देवू...कहाँ हो तुम! देखो तो मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आया हूँ",
सिंघानिया साहब की आवाज़ सुनकर देविका बाहर आई और उसने मिस्टर सिंघानिया से कहा...
"आ गए आप"
"हाँ! देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ"?,मिस्टर सिंघानिया बोले...
"जी! क्या है ये",देविका ने पूछा...
"तुम्हारे लिए मोबाइल फोन लाया हूँ मैं,मैंने इसमें कुछ जरूरी नंबर सेव कर दिए हैं,बाकी तुम सेव कर लेना,अब से तुम कहीं भी जाना तो इसे हमेशा अपने साथ रखना,मुझे तुम्हारी लोकेशन पता चलती रहेगी", मिस्टर सिंघानिया बोले...
ये सुनकर तो देविका बनी सतरुपा के चेहरे का रंग ही उतर गया और वो सोचने लगी कि इसका मतलब है कि वो कहाँ कहाँ जाती है,अब ये सब इस हरामखोर सिंघानिया को पता चल जाएगा,वो तो बुरी फँसी...
वो यही सब सोच ही रही थी कि सिंघानिया ने उससे पूछा...
"क्या सोचने लगी देवू! गिफ्ट देने पर पहले की तरह मुझे हग नहीं करोगी"
और ऐसा कहकर सिंघानिया ने देविका को अपने गले से लगा लिया,जो कि देविका को अच्छा नहीं लगा,तभी शैलजा भी अपने कमरे से बाहर निकलकर आई और उसने दिव्यजीत से कहा...
"आ गया बेटा! मैं तेरा ही इन्तजार कर रही थी,चलो अब डिनर करते हैं,",
"रोहन कहाँ है,वो हम सभी के साथ डिनर नहीं करेगा क्या?",मिस्टर सिंघानिया ने पूछा...
"वो शायद बाहर गया है",शैलजा बोली...
"गया होगा कहीं आवारागर्दी करने,माँ! तुम उसे मना क्यों नहीं करती कि वो उस मारिया के पास ना जाया करें",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"तुझे क्या लगता है कि मैं उसे मना नहीं करती ,बहुत मना करती हूँ उसे ,जवान खून है कुछ कह दो तो गुस्से से उबल पड़ता है,इसलिए अब मैंने उसे मना करना छोड़ दिया है",शैलजा बोली...
"मारिया शादीशुदा है और एक बच्चे की माँ भी है,रोहन का उससे मिलना जुलना ठीक नहीं है,कहीं उसके हसबैंड डेविड को पता चल गया तो उसकी शामत आ जाऐगी",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"अच्छा! अब ये सब बातें छोड़कर,खाना खाते हैं",शैलजा बोली...
"ठीक है आप तब तक खाना परोसिए,मैं चेंज करके आता हूँ"
और ऐसा कहकर दिव्यजीत अपने कमरे में चला गया,कुछ देर के बाद वो चेंज करके आया और खाना खाने बैठ गया,देविका और शैलजा भी खाना खा रहे थे तो तभी दिव्यजीत अपनी माँ से बोला....
"माँ! मिस्टर खोसला हैं ना! जिनका रिजोर्ट है, तो परसों उनके यहाँ पार्टी है और खाने का आँर्डर उन्होंने मुझे दिया है",दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
"तेरे होटल में तो इतने अच्छे अच्छे सेफ हैं,तो तू उन्हीं में से कोई अच्छे से सेफ चुनकर मिस्टर खोसला के यहाँ भेज दे",शैलजा बोली...
"नहीं! उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी का खाना मैं बनाऊँ,क्योंकि जो पिछले साल मैंने सिंह साहब की पार्टी में खाना बनाया था तो उसका स्वाद उनकी जुबान पर अब तक है,खासकर बिरयानी का", दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"पहले की बात और थी,जब तू लोगों की पार्टियों का खाना बनाया करता था,तब तू होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहा था,लेकिन अब बात कुछ और ही है,तू लोगों की पार्टियों में खाना बनाएँ,ये बात मुझे पसंद नहीं",शैलजा बोली...
"वो तो डैड चाहते थे कि अपने दम पर मैं कुछ करके दिखाऊँ,उनके पास बेशुमार दौलत थी,होटल थे,लेकिन वो नहीं चाहते थे कि मैं उनके नाम का सहारा लेकर आगें बढ़ू,जो कुछ करूँ तो अपने दम पर करूँ",दिव्यजीत बोला...
"और तेरी मेहनत रंग लाई",शैलजा बोली....
"ये सब डैड और तुम्हारा आशीर्वाद है",दिव्यजीत बोला...
"ठीक है तो तू मिस्टर खोसला की पार्टी का खाना बना ले,मुझे कोई दिक्कत नहीं है",शैलजा बोली...
और फिर ऐसे ही बातें करते करते सबने खाना खतम किया और सोने के लिए अपने अपने बेडरूम की ओर बढ़ गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...