Amanush - 5 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(५)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(५)

करन सतरूपा को लेकर इन्सपेक्टर धरमवीर के घर के सामने पहुँचा और फिर दोनों कार से उतरकर घर के दरवाजे के सामने गए,तब सतरुपा ने धरमवीर के घर की नेमप्लेट पढ़ी और वो करन से बोली...
"सेठ! ये तो किसी पुलिसवाले का घर लगता है",
"तुम्हें कैंसे पता चला कि ये किसी पुलिसवाले का घर है",करन ने पूछा...
"माना कि मेरे पास बड़ी बड़ी डिग्रियाँ नहीं हैं,लेकिन थोड़ा बहुत पढ़ी लिखी है मैं,इतना तो पढ़ ही सकती है, तभी तो फोन चला पाती है",सतरुपा बोली...
सतरुपा की बात सुनकर करन मुस्कराकर बोला.....
"चलो ये तो और भी अच्छा रहा कि तुम्हें पढ़ना लिखना आता है,अब तुम सबकुछ आसानी से सीख जाओगी",
"मैं पुलिस से बचती रहती है और तू मुझे पुलिसवाले के ही घर ले आया",सतरुपा गुस्से से बोली...
"गुस्सा क्यों कर रही हो,कुछ नहीं होगा तुम्हें,यकीन करो मुझ पर",करन बोला....
"अगर मुझे कुछ हुआ ना तो मैं तेरे को जिन्दा नहीं छोड़ेगी",
सतरुपा ने जैसे ही अपना वाक्य पूरा किया तो किसी महिला ने दरवाजा खोलते ही पूछा....
"किसके मरने मारने की बातें चल रहीं हैं करन भइया?"
"नमस्ते भाभी! ये बिगड़ रही थी मुझ पर",करन बोला...
"ये सतरुपा है ना! इन्होंने बताया था कि आप सतरुपा को साथ लेकर आने वाले हैं",वो महिला बोली...
तभी भीतर से आवाज़ आई....
"मिहिका! करन आ गया क्या?",
"हाँ! जी! करन भइया आ गए",मिहिका बोली...
"आज इन्सपेक्टर साहब आँफिस नहीं गए क्या?",करन ने मिहिका से पूछा...
"नहीं ! कह रहे थे कि आप आने वाले हैं तो आपसे मिलकर जाऐगें",मिहिका बोली...
और फिर मिहिका करन और सतरुपा को लेकर घर के भीतर गई और सतरुपा से सोफे पर बैठने का इशारे करते हुए बोली...
"बैठो सतरुपा!"
ऐसा कहकर मिहिका किचन की ओर चली गई,फिर सतरुपा सकुचाती हुई सोफे पर बैठकर करन को गुस्से से घूरने लगी,करन भी समझ रहा था कि सतरुपा उससे नाराज़ है,इसलिए वो उसे अनदेखा कर रहा था,फिर कुछ देर में मिहिका चाय और नाश्ता लेकर हाजिर हुई,तब तक इन्सपेक्टर धरमवीर भी वहाँ आकर करन से बोले...
"माँफ करना यार! बाथरूम में था",
"कोई बात नहीं",करन बोला...
"तो ये है सतरुपा! ये तो हूबहू देविका तरह ही दिखती है",धरमवीर बोला....
"हाँ! मैं इसे इसलिए तो यहाँ लाया था,मैं ने सोचा सतरुपा को तुमसे और भाभी से मिलवा दूँ",करन बोला...
और फिर इसके बाद मिहिका सतरुपा को लेकर दूसरे कमरे में आ गई और उससे बहुत सी बातें की,सतरुपा तो वैसे भी बोलने वाली लड़की थी उसने मिहिका से दिल खोलकर बातें की और अब बारी आई असल बात की तो मिहिका करन से बोली...
"अगर आपको कोई जरूरी काम हो तो अब आप जा सकते हैं,सतररुपा दिनभर मेरे साथ रहेगी",
"हाँ! भाभी! दो चार जरूरी काम हैं तो मैं वो भी पूरे कर लेता हूँ,ताकि आगे कोई अड़चन ना आए",
इसके बाद धरमवीर पुलिसस्टेशन चला गया और करन अपने काम से बाहर निकल गया, मिहिका ने सतरुपा को दिनभर ट्रेनिंग दी,उसे बहुत कुछ सिखाया और सतरुपा उसे मन लगाकर सीख भी रही थी,इसी तरह लगातार एक महीने की ट्रेनिंग के बाद अब सतरुपा देविका बनने के लिए तैयार थी,वो आखिरी दिन जब देविका बनकर धरमवीर और करन के सामने आई तो दोनों उसे बड़े आश्चर्य के साथ देख रहे थे,उसका एटीट्यूड बिलकुल देविका की तरह था,उसका चाल चलन हाव भाव बिल्कुल से देविका से मेल खाते थे,बस उसके चेहरे पर आँख के नीचे जो छोटा सा मस्सा था वो हलका सा उभरा हुआ था,उसे मिहिका ने मेकअप से छुपाने की कोशिश की थी लेकिन वो तब भी नज़र आ रहा था....
तब करन को थोड़ा शक़ हुआ और वो मिहिका से बोला....
"भाभी! ये मस्सा मेकअप से भी छुप नहीं पाया है,अगर किसी को सिंघानिया के घर में सतरुपा पर शक़ हो गया तो फिर वो पकड़ी जाऐगी",
"तो अब क्या करें",धरमवीर बोला...
"इस मस्से को निकलवा देने में ही भलाई है",करन बोला...
"मैं ये मस्सा नहीं निकलवाऊँगी",सतरुपा बोली...
"क्यों"?,करन ने पूछा...
"दर्द होगा",सतरुपा बोली....
"किसी अच्छे डाक्टर के पास जाकर इसे निकलवाऐगे,तब तुम्हें बिलकुल दर्द नहीं होगा,घर में थोड़ी ही निकाल रहे हैं",करन बोला...
"तब ठीक है",सतरुपा बोली...
और इसके बाद मजबूरी में सतरुपा के मस्से को निकलवा दिया गया और दो चार दिनों के बाद अब बारी थी ,सतरुपा को देविका बनाकर सिंघानिया के घर भेजने की और फिर एक रात एक नाटक रचा गया और पुलिस स्टेशन से सिंघानिया के घर फोन पहुँचा,सिंघानिया ने फोन उठाकर नंबर देखा और बोले...
"हाँ! इन्सपेक्टर धरमवीर कहिए कि क्या बात है"?,
तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने सिंघानिया साहब से कहा....
"मिस्टर सिंघानिया! अभी कुछ देर पहले हाइवे पर एक लड़की मिली है और वो बिलकुल बदहवास सी हाइवे पर घूम रही थी तो कोई ट्रक वाला उसे पुलिस स्टेशन तक छोड़ गया है ,शायद उसकी याददाश्त चली गई है,उसके कपड़े बहुत मैले हैं और वो हमारे सवालों के जवाब नहीं दे पा रही है"
"कहना क्या चाहते हैं आप,आखिर वो लड़की कौन है"? सिंघानिया साहब ने पूछा....
"जी! उस लड़की की शकल आपकी पत्नी देविका से हूबहू मिलती है,कहीं वो आपकी पत्नी देविका तो नहीं",इन्सपेक्टर धरमवीर ने कहा....
"आखिरकार वो मिल ही गई,मैं अभी पुलिस स्टेशन आता हूँ" ऐसा कहकर सिंघानिया साहब ने फोन काट दिया....
और फिर मिस्टर सिंघानिया नाइट सूट में ही कार की चाबी उठाकर घर के बाहर निकलकर अपनी कार में जा बैठे और कुछ ही देर में वो पुलिस स्टेशन भी पहुँच गए और घबराए हुए से पुलिस स्टेशन के भीतर पहुँचकर बोले....
"कहाँ है वो"
इन्सपेक्टर धरमवीर मिस्टर सिंघानिया का ही इन्तजार कर रहे थे,फिर वो मिस्टर सिंघानिया से बोले...
"आइए मेरे साथ,मैंने उस लड़की को अपने केबिन में बैठा रखा है",
और फिर मिस्टर सिंघानिया उस लड़की के पास जाकर उसे गौर से देखने लगे और इन्सपेक्टर धरमवीर से बोले....
"इन्सपेक्टर साहब! ये मेरी देविका ही है,कहाँ है वो ट्रक ड्राइवर जो इसे यहाँ लाया था",
"वो तो चला गया और जाते हुए कहता गया कि मुझे इस लफड़े में मत घसीटिएगा,मुझे लड़की की मदद करनी थी जो कि मेरा फर्ज था सो मैंने उसकी मदद कर दी,बस इसके आगे मेरा काम खतम हो गया", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"वो ड्राइवर यहाँ होता तो मैं उसे सोने से तोल देता,उसने बहुत बड़ा एहसान किया है मुझ पर,उसकी वजह से ही मेरी देविका आज मेरी आँखों के सामने है",मिस्टर सिंघानिया बोले...
"हाँ! लेकिन अभी इन्हें इलाज की सख्त जरूरत है,इनकी याददाश्त जा चुकी है शायद या कोई गहरा सदमा लगा है",इन्सपेक्टर धरमवीर ने कहा...
"ये एक बार घर जाऐगी तो सब ठीक हो जाऐगा,पुरानी यादों के साथ रहेगी तो इसकी तबियत में भी सुधार हो जाएगा",मिस्टर सिंघानिया बोले...
"ठीक है! तो आप इन्हें घर ले जा सकते हैं,लेकिन इनका मेडिकल आप नहीं पुलिस करवाकर देगी,इसलिए कल मैं इन्हें मेडिकल के लिए लेने आऊँगा ",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"ठीक है"
और ऐसा कहकर मिस्टर सिंघानिया देविका को लेकर अपने घर चले गए...

क्रमशः...
सरोज वर्मा....