Amanush - 13 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१३)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१३)

रोहन के वहांँ से जाने के बाद शैलजा भी अपने कमरे में चली गई ,फिर सतरुपा ने भी चुपचाप अपने कमरे की खिड़की बंद की और बिस्तर पर आकर लेट गई,लेकिन अब उसकी नींद गायब हो चुकी थी,उस घर में चल क्या रहा था,ये वो समझ ही नहीं पा रही थी,उस घर में कोई साँपनाथ तो कोई नागनाथ था और सबसे बड़ी नागिन तो उसे शैलजा नजर आ रही थी और ये देविका क्या थी,वो भी मँझी हुई खिलाड़ी जान पड़ती है तभी तो रोहन उसके बारें में इतना सब कुछ कह रहा था....
सतरुपा के मन में एक अजीब सी हलचल मच चुकी थी,वो ये सब बातें धरमवीर और करन को बताना चाहती थी लेकिन अभी नहीं बता सकती थी,फिर धीरे धीरे उसे नींद आने लगी और वो दोबारा सो गई, सुबह उसकी आँख देर से खुली और फिर वो अपने कमरे से बाहर आई तब उसने देखा कि दिव्यजीत फार्महाउस से वापस आ चुका है और देविका बनी सतरुपा को देखकर वो उससे बोला...
"देवू डार्लिंग तुम जाग गईं,माँ कह रही थी कि कल रात तुम इतनी गहरी नींद सोई कि डिनर भी नहीं किया",
"जी! नींद आ गई थी",देविका बोली...
"अच्छा! ये बताओ आज मेरे साथ लंच पर चलोगी,",दिव्यजीत ने देविका से पूछा...
"जी! चलूँगीं",देविका बोली...
तब दिव्यजीत देविका से बोला...
"अच्छा! चलो फिर जल्दी से तैयार होकर आओ,इसके बाद साथ में ब्रेकफास्ट करते हैं,तुमने उस दिन आलू के पराँठों की फरमाइश की थी,तो देखो आज तुम्हारे सेफ पति ने तुम्हारे लिए आलू के पराँठे बनाएँ हैं,लेकिन पुदीने की चटनी नहीं बनाई क्योंकि तुम्हें पुदीने से एलर्जी है,तो तुम दही के साथ गरमागरम पराँठों का लुफ्त उठाओ,",
"जी! मैं अभी तैयार होकर आती हूँ",
और ऐसा कहकर देविका तैयार होने चली गई,जब वो तैयार होकर आई तो उसने दिव्यजीत के हाथों के बने आलू के पराँठे खाए,पराँठे सच में लाजवाब बने थे और पराँठे लाजवाब क्यों ना हों दिव्यजीत एक जाना माना सेफ जो है,इसलिए तो लोग अब भी अपनी पार्टियों का खाना दिव्यजीत से ही बनाने को कहते हैं, देविका को पराँठे खाता देख दिव्यजीत ने उससे पूछा...
"पराँठे कैसें बने हैं देवू डार्लिंग"
"जी! बहुत लजीज़,बस मज़ा ही आ गया",देविका बोली...
"मेरा मन रखने के लिए कहीं झूठ तो नहीं कह रही हो",दिव्यजीत बोला....
"जी! नहीं! पराँठे वाकई बहुत ही लाजवाब बने हैं",देविका बोली....
देविका के साथ नाश्ता करने के बाद दिव्यजीत उससे बोला....
"अब मैं आँफिस जाने के लिए तैयार होता है,मैं दोपहर में लंच के लिए तुम्हें लेने आऊँगा,तुम कहीं जाना मत",
"जी! मैं तैयार रहूँगी",देविका बोली....
और फिर दिव्यजीत तैयार होकर आँफिस चला गया,दोपहर को वो वापस घर आ गया देविका को लंच पर ले जाने के लिए,देविका उस समय तैयार होकर उसका इन्तजार कर रही थी, फिर दिव्यजीत अपने ही फाइव स्टार होटल में देविका को लंच के लिए लेकर गया,वहाँ सभी देविका का वेलकम कर रहे थे,क्योंकि देविका उस होटल के मालिक की पत्नी थी,दिव्यजीत ने एक स्पेशल टेबल पर देविका को बैठने को कहा और फिर वो भी वहाँ बैठ गया, पहले दिव्यजीत ने सूप का आर्डर दिया,फिर कुछ स्नैक्स मँगाए,वे दोनों अभी स्नैक्स खा ही रहे थे कि तभी दिव्यजीत का कोई जरूरी फोन आ गया और वो बात करने के लिए टेबल से उठकर एकान्त में चला गया,दिव्यजीत अभी रेस्टोरेंट के दूसरे कोने में फोन पर बात ही कर रहा था कि तभी एक शख्स देविका की टेबल पर आकर बैठ गया और उससे बोला....
"हैलो! मिसेज सिंघानिया कैंसी हैं आप!",
"जी! ठीक हूँ,लेकिन आप.....",देविका बोली....
"अरे! आपने मुझे पहचाना नहीं ?,वो शख्स बोला...
"जी! मैं आपको सच में नहीं जानती",देविका बोली...
"जी! मैं शिशिर सरकार हूँ मिसेज सिंघानिया!",वो शख्स बोला....
अब जैसे ही देविका बनी सतरुपा ने शिशिर नाम सुना तो वो चौंक पड़ी क्योंकि ये तो वही शिशिर था जिससे देविका का चक्कर चल रहा था,जैसा कि रोहन ने बताया था..
और तभी सिंघानिया साहब शिशिर के पास आकर बैंठ गए और उससे बोले...
"शायद आपको देविका ने पहचाना नहीं",
"जी! हाँ! ये तो बड़ी ताज्जुब वाली बात हो गई कि मिसेज सिंघानिया मुझे पहचान नहीं पाईं",शिशिर बोला....
"क्योंकि अभी तक ये पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हैं,इन्हें अभी ठीक से पुरानी बातें याद नहीं हैं", मिस्टर सिंघानिया बोले...
"ओह...तो ये बात है,गुस्ताखी माँफ हो मिसेज सिंघानिया!",शिशिर बोला...
"जी! कोई बात नहीं",देविका बोली....
"तो अब मैं चलता हूँ",
और ऐसा कहकर शिशिर वहाँ से चला गया,उसके जाते ही दिव्यजीत सिंघानिया देविका से बोला...
"इससे दूर ही रहा करो,ये अच्छा इन्सान नहीं है,छिछोरा कहीं का ,जब देखो तब शादीशुदा औरतों के पीछे पड़ा रहता है",
"जी! मुझे तो वैसे भी पुराना कुछ याद नहीं है,तो इसे भी भूल ही चुकी हूँगीं",देविका बोली...
"अच्छा! ये सब बातें छोड़ो ,बोलो क्या आर्डर करूँ,चाइनीज,थाई या कॉन्टिनेन्टल", दिव्यजीत ने देविका से पूछा...
अब सतरुपा के लिए ये सब नया था लेकिन वो थोड़ा बहुत चाइनीज़ खाने के बारें में जानती थी,क्योंकि वो भी कभीकभार चाउमिन और मोमोज खा लेती थी,इसलिए वो दिव्यजीत से बोली....
"जी! चाइनीज मँगा लीजिए"
फिर देविका के कहने पर दिव्यजीत ने चाइनीज़ खाना आर्डर किया,फिर देविका ने लंच किया और लंच करने के बाद वो दिव्यजीत से बोली....
"तो मैं घर जाऊँ,मुझे थकावट सी लग रही है",
"हाँ! ठीक है!,मैं ड्राइवर से कहे देता हूँ वो तुम्हें घर छोड़ आएगा",दिव्यजीत बोला...
"नहीं! मैं अकेले जाना चाहती हूंँ,देखती हूँ कि घर पहुँच पाती हूँ या नहीं",देविका बोली....
"नहीं! मैं तुम्हें अकेले घर नहीं जाने दूँगा,तुम पिछली बार अकेली घर जा रही थी,फिर देखो क्या हुआ था,अब जैसे तैसे तुम मुझे दोबारा मिली हो ,मैं वही सब फिर से नहीं होने दूँगा",दिव्यजीत बोला....
देविका इन्सपेक्टर धरमवीर से मिलने की योजना बना रही थी,इसलिए वो अपना फोन भी साथ लेकर नहीं आई थी ताकि उसकी लोकेशन पता ना चल सके,लेकिन दिव्यजीत ने उसकी योजना पर पानी फेर दिया और फिर उसे वापस सिंघानिया के घर जाना पड़ा....
लेकिन फिर वो शाम को सिंघानिया के घर से बाहर निकल पड़ी और शैलजा से ये कहा कि वो पार्लर जा रही है,उसे हेयरकट कराना है, दिव्यजीत का दिया हुआ फोन वो घर पर ही छोड़कर इन्सपेक्टर धरमवीर के घर पहुँची और उसने फिर मिहिका के फोन से धरमवीर और करन को घर बुलवा लिया,तब उसने रोहन की कही सारी बातें उन दोनों को बता दीं,तब करन बोला....
"कल रात मैंने सिंघानिया को रघुवीर के साथ देखा था,दोनों एक ही कार में थे,मुझे उन दोनों पर कुछ शक़ सा हुआ, इसलिए मैंने दोनों का पीछा किया,पीछा करने के बाद सिंघानिया की कार उसके फार्म हाउस के बाहर रुकी,वहाँ उस वक्त वाँचमैन नहीं था,इसलिए मेन गेट का ताला सिंघानिया ने खुद खोला था,फिर कार गेट के भीतर चली गई और दोबारा सिंघानिया ने गेट पर ताला लगा दिया,
मैंने मेन गेट से भीतर की ओर झाँककर देखा तो दोनों ने कार की डिग्गी में से एक बोरा निकाला जो काफी भारी था,दोनों ही उस बोरे को उठाकर फार्म हाउस के भीतर ले गए, तब मैंने सोचा कि पीछे की झाड़ियों की तरफ से जाकर देखता हूँ कि क्या माजरा है, तो वहाँ पर पहला कदम रखने से ही मुझे करंट का जोरदार झटका लगा,उस सिंघानिया ने बाउन्ड्री में करंट फैला रखा है,हो ना हो उस फार्म हाउस में कुछ तो ऐसा है,जिसे वो दोनों छुपाने की कोशिश कर रहे हैं"
फिर करन की बात सुनकर धरमवीर और सतरुपा की आँखें खुली की खुलीं रह गईं....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...