unknown connection - 78 in Hindi Love Stories by Heena katariya books and stories PDF | अनजान रीश्ता - 78

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अनजान रीश्ता - 78

अविनाश अपनी शूट में व्यस्त था । पर उसके मन में पारुल की कहीं हुई बाते दोहरा रही थी। आज भी उसकी बात उसके जेहन पर असर कर रही थी जैसे पहले किया करती थी । अविनाश जैसे तैसे करके शूटिंग को खत्म करके फिर से वैनिटी में जाता है तो देखता है पारुल अविनाश की दीवाल पर लगी तस्वीरे देख रही थी ।


अविनाश: वह देखता रहा मेरी तस्वीर को इस कदर...


जैसे इंसान नहीं मोहब्बत मीनार हू,


पर न जाने क्यों बदलते है आंखो में रंग


कभी प्यार तो कभी नफरत... क्यूं!? ।


पारुल: ( अविनाश की ओर देखते हुए ) क्या!?...।


अविनाश: ( सोफे पर बैठते हुए ) क्या... वाईफी तुम्हे तो वाह... वाह... कहना चाहिए! इतनी अच्छी शायरी तुम्हारी मोहब्बत के लिए बना दी!! ।


पारुल: मोहब्बत... और वो भी तुमसे..!? । ( आइब्रो ऊपर करते हुए ) ।


अविनाश: हां बिलकुल... वैसे भी खुशनसीब हो जो मैं अविनाश खन्ना तुम्हारा पति हूं!! ।


पारुल: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) तुमने क्या मुझे परेशान करने की कोई कसम खाई हुई है !।


अविनाश: अरे! वाईफी कसम ही तो खाई हुई है... सात जन्मों की भूल गई तुम... ।


पारुल: बिलीव मि किसी दिन मेरे हाथों ही तुम्हारा मर्डर होगा अगर ऐसे ही तंग करते रहे तो!! ।


अविनाश: तब की तब देख लेंगे... अब ये बताओ.. की इतनी दिलचस्पी लेके क्यों देखे जा रही थी तस्वीरों को.. कहीं मुझ पे काला जादू करने का तो नहीं सोच रही... ।


पारुल: ( गुस्से को कंट्रोल करते हुए ) मैं कोई दिलचस्पी लेकर नहीं देख रही थी... वो तो मैं बैठे बैठे थक गई थी तो में बस सभी चीजे देख रही थी और फिर तस्वीर पर ध्यान गया.. बस ।


अविनाश: हाए! दिल तोड़ दिया तुमने मेरा मुझे लगा कि तुम तो मेरी मोहब्बत में पड़ गई... अच्छा खासा पैसे वसूल करने का आईडिया फ्लॉप हो गया!! ।


पारुल: एक बात बताओ मुझे परेशान करके तुम्हे मिलता क्या है!? टू बी ऑनेस्ट.. मेरा तो खून इस कदर खोलता है की अगर किसी को मारना जुर्म ना हो तो कब का तुम्हे ऊपर पहुंचा चुकी होती... और ये क्या वसूल एंड ऑल... क्या कोई गुंडे बनने का इरादा है... ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) खुशी... ।


पारुल: हंनअ!?।


अविनाश: तुम्हे परेशान करके मुझे बेहद ही खुशी मिलती है... आए जो दिल को सुकून मिलता है क्या ही बताऊ!!।


पारुल: ( गुस्से में नेपकिन बॉक्स अविनाश की ओर फेकते हुए ) घटिया आदमी!! हमेंशा घटिया ही रहोगे!! ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए बॉक्स को पकड़ते हुए )... अरे! अभी तुमने तो कहां था की माफी दे देनी चाहिए एंड ऑल अब देखो तुम खुद बदला ले रही हो!।


पारुल: ( अविनाश की ओर गुस्से में उंगली करते हुए ) तुम... आहहअ!! तुम्हारे साथ एक भी पल रही तो तुम्हारा तो पता नहीं में गुस्से में पागल हो जाऊंगी!!।


अविनाश: रोंग बीवी.. रोंग... ये कहो तुम पागल हो... महापागल हो जाओगी... हाहाहाहाहा.... ।


पारुल: ( गुस्से में अविनाश को घूरे जा रही थी । ) ।


अविनाश: ( हाथ ऊपर करते हुए ) ओके फाईन... आज के लिए इतना काफी है!! ।


पारुल: बाय द वेय! मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी! ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) मेरा इंतजार वो भला क्यों!?।


पारुल: ( उंगलियों से खेलते हुए ) वो... वो.... ।


अविनाश: ( जानता थी की कोई बात है जिस वजह से नर्वस है । ) बोलो... ।


पारुल: वो.... बात यह है... की... आज जब... हम यहां... आए.... तब... ( अविनाश की ओर देखते हुए ) लोगो ने हमारी तस्वीरें और वीडियो भी शायद बनाई थी..।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) हां तो उसमे क्या प्रोब्लम है... ।


पारुल: ( आश्चर्य में अविनाश की ओर देखे जा रही थी.. सोचती है... ये इतने प्यार से क्यों बात कर रहा है...। ) नहीं... मतलब हां कोई दिक्कत तो नहीं है पर... ।


अविनाश: पर क्या..!? ।


पारुल: पर.... वह लोग ऑनलाइन अपलोड करेंगे और .... ( आंखे बंद करते हुए एक ही सांस में ) मैं अपने.... घरवालों... को बताए बिना ही यही आई हूं और से... म....( और कुछ नहीं बोल पाती.. वह दीवाल के सहारे खुद को संभालते हुए अविनाश के गुस्से के लिए खुद को तैयार कर रही थी। थोड़ी देर बाद जब कोई जवाब नहीं आता तो वह धीरे धीरे अपनी एक आंख खोलते हुए देखती है तो अविनाश कुछ सोच रहा था। जिस वजह से पारुल को आश्चर्य हो रहा था की वह इतना समझदार कैसे हो गया की बातों की गंभीरता से सुन रहा है और सोच भी रहा है। हिम्मत करते हुए वह कहती है। ) अगर.... तुम गुस्सा ना करो तो मेरे पास एक आइडिया है... ।


अविनाश: ( सोचते हुए ) बोलो..! ।


पारुल: ( खुश होते हुए ) अगर मैं घर चली जाऊं तो... ।


अविनाश: ( पारुल की ओर फटाक से देखते हुए.... उसकी आंखों का रंग बदल सा गया था । ) ।

पारुल: ( मन में, शीट... शीट... भगवान प्लीज बचा लो यार!! ).( तभी दरवाजा खोलने की आवाज आती है।) ( पारुल चेन की सांस लेते हुए... ) विशु.... ( विशी को खुशी में गले लगाने आगे बढ़ती है लेकिन फिर बीच में ही रुक जाती है क्योंकि अविनाश अभी भी पारुल की और ही देख रहा था। और यह अच्छा संकेत नहीं था । ) ।


विशी: ( मुस्कुराते हुए पारुल को साईड से गले लगाते हुए ) क्या... बात है अभी सुबह ही तो मिले थे हम!! इतना ज्यादा मिस.. कर रही थी क्या मुझे... ( मजाक के लहजे में कहते हुए ) ।


पारुल: ( तुम तो और भी बात बिगाड़ रहे हो यार उल्टा सीधा मत बोलो... ) ( मुस्कुराते हुए सिर्फ सिर को हां में जवाब देती है। ) ।


विशी: ( पारुल के बाल बिगाड़ते हुए ) तुम मुझे बिगाड़ रही हो...वैसे... फिर... ।


अविनाश: ( उसकी नजर अभी भी पारुल की ओर ही थी, विशी की बात काटते हुए ) विशी यहां पर क्या लेने आए हो...!? ।


विशी: क्या मतलब है क्या लेने आए हो! अरे यार... अब शूटिंग भी ऑलमोस्ट पूरी हो चुकी है... तो मैने सोचा अब पहली बार मैं पारु...।


अविनाश: भाभी...।


विशी: आई मीन भाभी से मिल रहा हूं और फिर हम तीनो साथ भी है तो क्यों ना लंच कहीं अच्छी जगह करे!।


अविनाश: ( खड़े होते हुए ) नॉट बेड आईडिया... ।


विशी: है ना... तो एक अच्छा सा रेस्टोरेंट बुक करवाता हूं.... ( बाहर जाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया ही था की ) ।


अविनाश: रुको... ( पारुल की ओर फिर से देखते हुए ) आज हम कहीं और लंच करेंगे... ।


विशी: क्या मतलब..! ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) मतलब मेरे ससुराल.. ।


पारुल: ( चौंकते हुए अविनाश की ओर देखती है तो अविनाश उसी की ओर देख रहा था । वह मना करना चाहती थी लेकिन... मुंह से लफ्ज़ नहीं निकल रहे थे । ) ।


विशी: हन!? ।


अविनाश: मेरी वाइफ.. को पगफेरे की रश्म भी करवानी बाकी है तो दोनो चीज़े एक साथ हो जाएगी... और वैसे भी इसे बहुत याद भी आ रही थी है ना वाईफी ... ( मानो जैसे अजाब उगल रहा हो ) ।


पारुल: ( कुछ कह नहीं पाती... । ) ।


विशी: पर अवि.. बाकी सब तो ठीक है! पर तुम्हे लगता है वह लोग बिना कोई तमाशा किए मान जाएंगे ।


अविनाश: पता नहीं.. पर अब सारी जिंदगी छुपा तो नहीं सकते कभी ना कभी तो पता चलेगा ही तो आज ही सही .. ।


विशी: यह भी सही है!! ।


अविनाश: और हां मेरे उस सो कॉल्ड घर भी बता देना की में अपनी बीवी के साथ आ रहा हूं तो स्वागत के तैयारी कर ले ।


विशी: ( ना चाहते हुए भी हां में सिर हिलाता है वह जानता था आज नहीं तो कल सब को पता तो चलना ही है तो जितनी जल्दी! उतना बेहतर!! । ) ( वह कॉल करते हुए वेनिटी से बाहर चला जाता है )।


अविनाश अभी भी अपनी जगह पर खड़ा था और पारुल भी। दोनो कुछ बोल नहीं रहे थे। शायद दोनो ही जानते थे अगर किसीने भी कुछ भी बोला तो बात बनने से तो रही । पारुल अविनाश को रोकना चाहती थी पर उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे!? । क्योंकि उसके मॉम डैड का सामना करने की हिम्मत नही थी और सेम... उसे तो क्या ही कहेंगी... की ऐसा कौन सा पहाड़ टूट रहा था जो पारुल को किसी और से शादी कर ली। वो भी उसके भाई से.... पारुल का दिल यह सारी बातें सोच सोच कर बैठा जा रहा था । और अविनाश कब बाहर चला गया उसे पता भी नही चला ।