unknown connection - 75 in Hindi Love Stories by Heena katariya books and stories PDF | अनजान रीश्ता - 75

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अनजान रीश्ता - 75

अविनाश रेड़ी होकर.... दरवाजा खोलने ही वाला होता है की वह पारुल से टकराता है। जिस वजह से वह दोनो सिर को सहलाते हुए कहता है ।

अविनाश: देख कर नहीं चल सकती थी! क्या!? ।
पारुल: ( उल्टा जवाब देते हुए ) तुम भी तो देख के चल सकते थे ।
अविनाश: तुमसे बात करना ही बेकार है ।... फॉरगेट ईट... रमा थोड़ी देर में तुम्हारे कपड़े लेके आयेगी। उसमे से कुछ अच्छा ढंग का पहनके आओ। हमे वैसे भी देर हो रही है।
पारुल: ( सवाल पूछते हुए ) वैट... हम से तुम्हारा क्या मतलब है!!! मैं तुम्हारे साथ कही नही जाने वाली!! । और मेरे पास खुद के अपने कपड़े है तो मुझे कोई जरूरत नहीं तुम्हारे दिए कपड़ो की।

अविनाश: पहली बात तुम मेरे साथ चल रही हो मतलब चल रही हो!! इस पर मुझे कोई बहश नहीं चाहिए!! और दूसरी बात अब तुम मेरी बीवी हो यानी की पारुल अविनाश खन्ना!!! ना की पारुल व्यास!! तो मुझे तुम एक अच्छे खासे इंसान की तरह तैयार होनी चाहिए । बिकोज मेरा नाम डूबे ये मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। एंड प्लीज एण्ड ऑफ द डिस्कशन!! ऑलरेडी दिमाग का दही हो चुका है । ( यह कहते हुए वह कमरे से बाहर चला जाता है।)


पारुल: ( गुस्से में बच्चो की तरह पांव पटकते हुए बाथरूम की ओर जाते हुए । ) एक ... दिन देख लूंगी तुझे... सूत समेत बदला ना लिया तो मेरा नाम पारुल व्यास नहीं!!।


अविनाश: ( चिल्लाते हुए )...... पारुल खन्ना वाइफी इट्स पारुल खन्ना!!! ।


पारुल गुस्से में और कुछ नहीं बोलती और फ्रेश होने चली जाती है । थोड़ी देर बाद जब वह टावल लपेटते हुए बाहर आती है तो उसकी आंखे खुली की खुली रह जाती है। सामने रमा नोकरो के संग कपड़ो की लाइन लगाए खड़ी थी। पारुल आश्चर्य में कहती है ।


पारुल: ये सब क्या है!? ।


रमा: मेम सर ने आपके लिए कपड़े भिजवाए है! तो आप इन सब में से देख लीजिए की आपको क्या पसंद है ।


पारुल: ( बौखलाते हुए ) लुक मुझे इतने महंगे कपड़ो की जरूरत नहीं है । या तो जींस टीशर्ट या फिर सिंपल सलवार कमीज ला के दे दो ।


रमा: सॉरी मेम बट सर के स्ट्रिक्ट ऑर्डर है की आपको इन्ही में से किसी एक ड्रेस को पहनना होगा ।


पारुल: ( गुस्से में ) उस गधे!! ( खुद को रोकते हुए रमा की ओर मुस्कुराते हुए ) देखो... मुझे इतने हैवी कपड़े पहनने की आदत नहीं है और अगर गलती से भी कहीं कुछ खरोच वरोच आ गई तो वह... ग... धा... आई मीन अविनाश मेरी जान ले लेगा!!।


रमा: सॉरी मेम!! पर... ।


अविनाश: वाइफी... तैयार हुई या नहीं ।


पारुल: ( अविनाश की आवाज सुनते ही घबराते हुए बाथरूम की और भागते हुए ) गधे... मैने अभी तक चेंज नहीं किया तो बाहर ही रहना तुम ।


अविनाश: ( सभी को हाथ से बाहर जाने के लिए कहते हुए ) वाईफी... दरवाजा खोलो ( बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए ) ।


पारुल: क्यों!! मैं क्यों खोलू!! ।


अविनाश: वाईफी ये मत भूलो की यह मेरा घर है। तो मेरे पास चाबियां है। तो अब तुम सोच लो की तुम सीधी तरह से दरवाजा खोलोगी या!! ।


पारुल: ( जल्दी से दरवाजा खोलते हुए ) ( सिर्फ सिर बाहर निकालते हुए ) कुते कमीने इंसान... तुम्हे ना सिंगर नहीं गैंगस्टर होना चाहिए था । जब देखो तब धमकी और कोई काम नहीं है तुम्हे क्या !? इतने पाप इकठ्ठा करके क्या आचार डालना है!! थोड़े बहुत पुण्य भी कर लिया करो!!।


अविनाश: वैल! वैल!! तारीफ के लिए शुक्रिया!! और रही बात काम की तो तुम्हे परेशान करने के अलावा और कोई बड़ा पुण्य का काम है क्या भला!!? ( मुस्कुराते हुए )


पारुल: ( गुस्से में अविनाश को घूरे जा रही थी । ) ।


अविनाश: नाऊ! अब मुझे बाद में इत्मिनान से बाद में देख लेना!! पहले जल्दी से कोई ड्रेस पसंद करो।


पारुल: लुक यार! ये देखने में भी महंगी लगती है और मुझे ऐसी ड्रेस पहनने की आदत भी नहीं है। प्लीज... प्लीज... कोई सिंपल सी ड्रेस मंगवा दो... यार इट्स रिक्वेस्ट प्लीज... ( आंखे पटपटाते हुए ) ।


अविनाश: ( हारते हुए ) फाइन... मुझे पता था तुम ऐसा ही कुछ करने वाली हो!! और उम्मीद भी क्या की जा सकती है । ( ताली बजाते हुए रमा को बाहर से बुलाता है। ) ये ड्रेस ले जाओ और डिजाइनर से कहो हमारे सारे कांट्रेक्ट केंसल... और दूसरे ड्रेस लेकर बाकी लोगो को अंदर भेजो!! ।


रमा: यस सर!! ।


अविनाश: अब तुम वहां चुड़ेल की तरह मुंडी निकाले क्या देख रहीं हो कम से कम बाहर तो निकलो!! ।


पारुल: ( दरवाजे को कसकर पकड़ते हुए ) नहीं! क्यों मुझे यहीं अच्छा लग रहा हैं। काफी कंफर्टेबल है।


अविनाश: सीरियसली!!? । ( पारुल जैसे कोई जोकर हो वैसे देखते हुए ) ।


पारुल: ( सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देते हुए ) ।


तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है ।


अविनाश: कम इन!! ।


रमा: सर!! ( कपड़ो को लाइन लगाते हुए ) ।


अविनाश: यू केन गो!! ।


पारुल: ( कपड़ों की ओर देखते हुए!! मानो जैसे सलवार कमीज की कोई दुकान हो!! ) ये क्या लगा रखा है !! कोई एक जोड़ी ही मंगवा लेते इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी।


अविनाश: ( पारुल के लिए ड्रेस सिलेक्ट करते हुए ) भूलो मत अब तुम किस की बीवी हो!! इन सब की आदत डाल लो तो बेहतर है। ( ये लो ... पारुल को ड्रेस देते हुए । ) ।


पारुल: ( अविनाश के हाथ में ड्रेस देखते हुए... रेड एण्ड ब्लैक कलर की सलवार कमीज थी । ) पर.. मुझे वो पिंक वाली ज्यादा अच्छी लग रही है।


अविनाश: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) पापा की परी जी!! फिलहाल ये ड्रेस पहन लीजिए बाद में पिंक ड्रेस पहनकर उड़ते रहिएगा ठीक है।


पारुल: इसमें पापा की परी वाली कोन सी बात है । ( दरवाजे में से हाथ निकलते हुए अविनाश के हाथ में से ड्रेस जपटते हुए ... दरवाजा बंद कर देती है ।)।


अविनाश: हरकते अभी भी बिल्कुल जंगली बिल्ली वाली ही है। सिर्फ नाम की ही बड़ी हुई हो... पापा की पली... । ( हाथ पर लगे नाखून के निशान देखते हुए ) ।


पारुल: ( बाथरूम में से चिल्लाते हुए ) जो जैसा होता है उनके साथ बिल्कुल वैसा ही होता है।


अविनाश: ( उपहास के लहजे में ) हां हां ठीक है! पापा की परी!। ( रूम से बाहर जाते हुए ) ।


पारुल कपड़े बदलने के बाद बाथरूम का दरवाजा जोर से पटकते हुए बाहर आती है। वह गुस्से में बाल सवारते हुए बड़बड़ाती है । समझता क्या है अपने आपको!! कहीं का राजा है क्या जब देखो तब परेशान करने के अलावा और कोई काम नहीं है। ( बिंदी लगाते हुए ) भगवान कभी इसको उठाना हो तो प्लीज ये महान काम मेरे ही हाथो से करवाना । मेरे सारे पाप धुल जाएंगे । रावण कहीं का । पारुल आखिरी बार खुद को शीशे में देखते हुए कमरे से निकलते हुए हॉल की ओर आगे बढ़ती हैं। तभी अविनाश डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए नाश्ता कर रहा था । पारुल चारो और देख रही थी। घर दिन के उजाले में और भी खूबसूरत लग रहा था । वह बस घर को देख ही रही थी की उसकी नजर अविनाश पर पड़ती हैं। वह मुंह बिगड़ते हुए कहती हैं । क्या भगवान जी आपने नवाजा भी तो किसे इस काले दिल वाले इंसान को!! रॉन्ग डिसीजन.. भगवान जी ।


अविनाश: बीवी अगर मेरी बुराई हो तो .. जल्दी से नाश्ता करो!! ।


पारुल: ( बौखलाते हुए अविनाश की ओर देखते हुए सोचती है ... इसे कैसे पता चला ।) (टेबल पर बैठते हुए...।)


अविनाश: बोलो क्या खाओगी!!? ।


पारुल: आई एम फाइन!! वैसे भी मुझे भूख नहीं है।


अविनाश: वाइफी मैं पूछ नहीं रहा बता रहा हूं... और वैसे भी ... ( दवाई टेबल पर रखते हुए ) ये बिना खाए ले नहीं सकते तो तुम्हे खाना तो पड़ेगा... माई नाश्ता ले आए।


पारुल: ( दवाई की ओर देखते हुए ) ये किस क्या है!? ।


अविनाश: वाइफी लगता है तुम्हारे दिमाग के साथ साथ आंखे भी खराब हो गई है । अभी हम जा ही रहे है तो चेक अप करवा लेना ।


पारुल: सीधी तरह जवाब नहीं दे सकते ।


अविनाश: क्या करू वाइफी तुम्हारे सवाल ही अटपटे होते हैं। मन ही नहीं करता सीधे जवाब दू!! खैर ये कल डॉक्टर ने दवाई है तुम जो कल पापा की परी बनी हुई थी भीगकर तो..!।


पारुल: डॉक्टर...!? मैंने तो नहीं बुलाया... तुमने कहां था उन्हें चेक अप के लिए!!? ।


अविनाश: बीवी खुद को इतनी खास मत समझो!! विशी ने... कहां था उसे थोड़ी तरस आ गई तुम पर ... वर्ना मैने तुम्हे मारने का प्लान भी कर लिया था... बिलकुल नेचरल डेथ!!।


पारुल: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) ( धीरे से ) बिल्कुल तुम जैसे राक्षस में उम्मीद भी क्या की जा सकती है ।


अविनाश: क्या!? क्या! कहां? ( आईब्रो ऊपर करते हुए )।


पारुल: ( बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ ) कुछ भी नहीं.. ।


तभी माई पारुल को नाश्ता प्लेट में रखती है । आचार और पराठा... । मानो जैसे पारुल का मूड बिल्कुल बदल गया था । वह मायूस सी हो गई थी । तभी माई उसे कहती हैं।


माई: क्या हुआ बेटा नाश्ता पसंद नहीं आया!? कुछ और बनाके लाउ क्या!? ।


पारुल: ( सिर को ना में हिलाते ) नहीं ( पराठा खाते हुए ) बहुत ही अच्छा है ! बस ( दर्द के साथ मुस्कुराते हुए ) किसी खास इंसान की याद आ गई ... उसे बहोत ज्यादा ही पसंद है पराठे ।


माई: ( मुस्कुराते हुए ) कोई बात नहीं तो कभी उसे भी खाने पे बुला लेना! इसमें कौन सी बड़ी बात है!?।


पारुल: ( धीरे से ) आई विश!! । ( सिर को ना में हिलाते हुए ) वह अब शायद मेरी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करेगा ।


माई कुछ कहने ही वाली होती है कि किसी के टेबल पर हाथ पटकने की आवाज आती है । वह दोनो देखती है तो अविनाश था। वह खड़े होते हुए कहता है ।


अविनाश: माई मेरा हो गया। ( पारुल की ओर गुस्से में देखते हुए ) में कार में इंतजार कर रहा हूं ।


यह कहते हुए वह मुख्य द्वार का दरवाजा जोर से पटकते हुए चला जाता है । पारुल उसकी और ही देखते हुए सोचती है की अब इसे क्या हो गया!!? । वह पराठा खतम करते हुए वह भी अविनाश के पीछे चली जाती है ।