My husband is your husband - 7 in Hindi Moral Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | मेरा पति तेरा पति - 7

Featured Books
Categories
Share

मेरा पति तेरा पति - 7

7

"अरे नहीं! इसमें प्राॅब्लम कैसी?" अनिता ने जवाब दिया।

"ठीक है अनिता! कभी किसी से चीज़ की जरूरत हो तो बिना संकोच के बता देना। मैं चलता हूं।" अमर बोला।

"एक मिनिट रूको अमर! अब आप दोनों यहां आ ही गये है तो मैं एक बात आप दोनों से कहना चाहती हूं।" अनिता बोली।

"हां बोलो!" श्रुति ने कहा।

"अमर! तुमने यहां आकर मुझे और श्रुति को इतना तो बता दिया की तुम अब भी मुझसे ही प्रेम करते हो।" अनिता बोली।

अमर चुपचाप था।

"वह सिर्फ मुझसे प्यार करता है समझी!" श्रुति चिढ़ते हुये बोली।

"नाराज़ मत हो श्रुति! मैंने कहा था न कि एक मौका मैं तुम्हें भी जरूर दुंगी। अगर तुमने साबित कर दिया कि तुम अमर से सच्चा प्यार करती हो तो मैं तुम दोनों के रास्ते से हट जाऊंगी। और अगर मेरा प्यार जीता तो तुम्हें अमर को भूलना होगा। हमेशा-हमेशा के लिए।" अनिता बोली।

"ये क्या है! कोई मज़ाक चल रहा है यहां।" अमर गुस्से में बोल पड़ा।

"एक मिनिट अमर!" श्रुति बोली।

"मुझे मंजूर है।" उसने आगे कहा।

"ठीक है! तो फिर कल से सावन शुरू हो रहा है। इस महिने बाबा महांकाल की नगरी उज्जैन में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। जो पुरे एक महिने तक चलता है। वहां तुम्हें और मुझे मौत के कुएं में बाइक दौड़ना होगी। जो इसमें सफल हुआ, अमर उसका।" अनिता बोली।

"ये क्या पागलपन है अनिता। प्यार तक तो ठीक था लेकिन इसमें जान का जोखिम है।" अमर बोला।

"तुम दुर हट जाओ अमर! अब ये मेरे और अनिता के बीच का मामला है। इसे हम दोनों ही सुलझायेंगे।"

श्रुति बोली।

"वेल सेड! तुम्हारे आत्मविश्वास को सैल्यूट करने का मन करता है श्रुति।" अनिता बोली।

"अमर और मेरी शादी पर अच्छे से सैल्यूट कर लेना अनिता।" श्रुति बोली।

"ऐसा कभी नहीं होगा। कुंए के अंदर बाइक चलाना बच्चों का खेल नहीं है।" अनिता बोली।

"मगर खेल तो है। और खेल खेलना मुझे बचपन से बहुत ज्यादा पसंद है। और फिर खेल कोई सा भी हो चाहे जिन्दगी या मौत का, मुझे आज कोई हरा नहीं सका है।" श्रुति बोली।

"तुम्हारी हारने की ख्वाहिश में जल्द ही पुरी करूंगी।" अनिता बोली।

"पहले प्रैक्टिस तो कर ले अच्छे से। कभी बाइक का हैण्डल भी पकड़ा है?" श्रुति बोली।

"हैण्डल तो पकड़ा है! मगर मुझे नहीं लगता की तुने कभी सायकिल में पैडल भी मारा होगा।" अनिता बोली।

"स्टाॅपिट गाईस! अब तुम लोगों ने लड़ने की ठान ही ली तो कल ही हम लोग उज्जैन चलते है। तुम दोनों को पहले बाइक चलानी सीखनी होगी। फिर मौत के कूंए में इसे चलाने की प्रैक्टिस करनी होगी। तब जाकर दोनों के बीच मुकाबला हो सकेगा।" अमर बोला।

"उसकी चिंता तुम मत करो। मैंने कुंए में बाइक चलाने वाले से बात कर ली है। वो हम दोनों को बाइक भी सीखायेगा और कुएं में बाइक चलाने की प्रैक्टिस भी करवायेगा।" अनिता बोली।

"तो फिर पक्का रहा। हम कल ही उज्जैन के लिए निकल रहे है।" श्रुति बोली।

"कहां जा रहे है आप लोग?" अनिता के पिता दिनेश वहां आकर बोले।

"वोsss पापा! हम लोग एक बिजनेस प्लान कर रहे है। कुछ दिनों के लिए हम उज्जैन में रहेंगे।" अनिता ने बात बदलते हुये कहा।

"ठीक है बेटी। अगर तुम सब मिलकर कुछ नया करना चाहते हो तो भगवान महाकाल तुम्हें इसमें सफल करे।" दिनेश जी बोले।

"अच्छा तो फिर हम चलते है। गुड नाइट।" अमर बोला।

"गुड नाइट।" अनिता ने जवाब दिया।

श्रुति और अनिता अब भी एक-दुजे को प्रतिद्वंद्वी की भांति देख रही थी। श्रुति अमर के साथ कार में बैठकर चली गयी।

'बहुत जल्द अमर की बगल की सीट मेरी होगी।' अनिता बड़बड़ा रही थी। अमर और श्रुति को घर के द्वार तक विदा करने आयी अनिता दूर तक कार को जाते हुये देखती रही।

------------------------