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⚡ 4. कमज़ोर नहीं वो जो गिरा है, बल्कि वो है जो फिर भी खड़ा है। जिन्हें खुद पर भरोसा होता है, वो ही इतिहास रचते हैं जब वक़्त बड़ा है। ✍️ लेखक: अभय पंडित मुझे फ़ॉलो करो दोस्तो
🌅 3. मंज़िल वही है जो थका दे रास्तों में, पर रुकने न दे सपनों की चाह में। तू चलते रह यकीन के साथ, किसी दिन जीत होगी तेरे ही नाम में। ✍️ लेखक: अभय पंडित मुझे फॉलो भी कर लीजिए मेरे दोस्त
हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर आता है, हर तूफ़ान के बाद सवेरा मुस्कुराता है। जो झुकते नहीं हालातों के आगे, जीत उन्हीं का मुक़द्दर बन जाता है। ✍️ लेखक: अभय पंडित
🔥 1. थक कर बैठ जाने से मंज़िल नहीं मिलती, हौसलों से ही तो रौशनी निकलती। चलो तब तक जब तक साँस चले, क्योंकि रुक जाने से किस्मत नहीं बदलती। ✍️ लेखक: अभय पंडित
"कविता" : (यारी की चिरागी) चाँदी सी रातें, दीपक का उजाला, कच्चे आँगन में बैठी वो महफ़िल निराला। माटी की खुशबू, खामोश हवाएँ, और दो यारों की हँसी की सदाएँ। "तू है तो क्या ग़म है," कह कर मुस्काना, वो गली के मोड़ पर तेरा मेरा ठिकाना। लाठी लिए बुढ़ा वक़्त भी मुस्काए, जब दोस्ती की राहों में फूल बिछाए। > तू मेरा यार है, तू मेरा फ़क्र है, हर दर्द में तू ही मेरा ज़िक्र है। नफ़्स-नफ़्स में बसी है तेरी ख़ुशबू, दोस्ती में तेरा ही असर है। >बचपन की वो मिट्टी, वो खेल, वो छुपन-छुपाई, तू साथ था तो हर बात थी भाई। अब वक़्त के परिंदे उड़ चले हैं दूर, मगर दिल में अब भी तेरा नाम है हज़ूर। दोस्ती ना वक़्त मांगे, ना हालत की चाह, ये तो वो रिश्ता है जो बस करे राह। न रहे तू पास, न सुन सकूं तेरा स्वर, फिर भी तेरे बिना अधूरा है मेरा ये सफर।
कविता शीर्षक: "तेरा नाम लिखा है साँसों में" ✍️ लेखक: अभय पंडित --- तेरा नाम लिखा है साँसों में, हर लम्हा तुझसे एक रिश्ता सा है। ना कोई दस्तख़त चाहिए इश्क़ का, ये तो रूह का लिखा क़िस्सा सा है। लबों पे जब भी तेरा ज़िक्र आया, दिल ने सज्दों की सदा दी है। तेरे बिना ये ज़िंदगी अधूरी सी, जैसे बिन बारिश के बदली सी। तेरी हँसी में फ़साना बसता है, तेरी ख़ामोशी में भी शेर लिखे हैं। हर एहसास तुझसे होकर गुज़रा, हमने इश्क़ तुझसे इस तरह जिए हैं। तेरा नाम है मेरे अशआरों में, तेरा ज़िक्र मेरी ग़ज़ल बना है। हर हरफ़ में तेरा ही अक्स है, तू ही मेरी मोहब्बत की असल बना है। कभी तुमसे मिलकर वक़्त रुक सा जाए, कभी तेरी जुदाई में सदियाँ बीतें। इश्क़ को देखा है मैंने तेरी आँखों में, जैसे क़ुदरत भी तुझसे रश्क़ करे। ना कोई शिकायत, ना कोई गिला, बस तुझसे जुड़ी हर बात मुक़द्दस है। तेरा नाम जब लिया दिल ने, तो महसूस हुआ — ये इबादत है।
💔 "आख़िरी मुलाक़ात" 💔 वो जुलाई की एक शाम थी, जब शहर की सड़कों पर बारिश की बूँदें झूम-झूम कर गिर रही थीं। लोग भीगने से बचने के लिए दौड़ रहे थे, लेकिन आरव छतरी के बिना ही चलता जा रहा था — जैसे उसे किसी चीज़ की परवाह ही न हो। उसे सिर्फ़ एक जगह पहुँचना था — वही पुराना कॉफ़ी हाउस, जहाँ वो और सिया हर शुक्रवार मिला करते थे। दो साल पहले, इसी जगह पर उनकी पहली मुलाक़ात हुई थी। सिया की मुस्कान, उसकी आंखों की गहराई और वो कॉफ़ी का छोटा कप — सब कुछ अब आरव की यादों का हिस्सा बन चुका था। सिया अब इस शहर में नहीं थी। उसे अपने करियर के लिए मुंबई जाना पड़ा था। उन्होंने वादा किया था कि दूर रहकर भी उनका प्यार कम नहीं होगा। लेकिन धीरे-धीरे फोन कॉल्स कम होने लगे, मैसेज जवाब का इंतज़ार करने लगे, और एक दिन... सब कुछ ख़ामोश हो गया। आरव हर शुक्रवार वहीं आता रहा, उसी कोने की टेबल पर बैठा — दो कप कॉफ़ी मंगवाकर। एक अपने लिए, एक उसके लिए। जैसे वो आज भी यहीं हो। आज बारिश कुछ अलग सी थी। भीगती हवा में कोई पुरानी महक थी — सिया की ख़ुशबू जैसे लौट आई हो। वो जैसे ही टेबल तक पहुँचा, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। सिया वही बैठी थी। वही हलकी नीली शॉल, वही मुस्कान... पर आंखों में कुछ और था। इंतज़ार, पछतावा और प्यार — तीनों एक साथ। “तुम अब भी आते हो?” उसने पूछा। आरव कुछ नहीं बोला। बस हल्के से मुस्कुरा दिया। सिया की आंखें भर आईं, “मैं बहुत कुछ कहने आई थी... लेकिन अब लग रहा है, शायद कुछ कहना ज़रूरी नहीं।” आरव ने उसका हाथ थाम लिया — वो हाथ जो दो साल पहले छूट गया था। “प्यार अगर सच्चा हो, तो वो लौट आता है... तुम्हारी तरह,” उसने धीरे से कहा। उस दिन, बारिश सिर्फ़ मौसम नहीं थी। वो दोनों के बीच जमी हुई चुप्पियों को पिघला रही थी। दो टूटे दिल फिर से जुड़ रहे थे। “आख़िरी मुलाक़ात” एक नई शुरुआत बन गई।
🌙 "तुम्हारे नाम की ख़ामोशी – भाग 2" 🌙 तुम्हारा नाम... अब मैं नहीं लेता ज़ोर से, क्योंकि वो हर बार दिल को तोड़ जाता है, हर बार मुझे तेरी आंखों का सन्नाटा याद दिला जाता है। --- अब मैं तुम्हें पुकारता नहीं, पर हर ख़ामोशी में तुमसे बातें करता हूं। जैसे रातें करती हैं चाँद से — दूर रहकर भी, सबसे पास। --- तुम्हारे नाम की ख़ामोशी अब मेरी आदत बन गई है। हर सुबह तेरे बिना शुरू होती है, और हर रात... तेरे ख्यालों में डूब जाती है। --- लोग पूछते हैं — "क्या अब भी तुझसे मोहब्बत है?" मैं मुस्कुरा देता हूं... क्योंकि मोहब्बत अब इबादत हो चुकी है — जहाँ नाम नहीं लिया जाता, बस महसूस किया जाता है। --- तुम्हारे नाम की ख़ामोशी, अब शोर से प्यारी लगती है। क्योंकि उस चुप्पी में भी, बस "तुम" ही सुनाई देते हो।
💫 "तेरे बिना कुछ भी नहीं" 💫 तेरे बिना जब भी बैठा हूं, तो हर चीज़ अधूरी सी लगती है। चाय में मिठास नहीं, हवाओं में वो सुकून नहीं, और इन आंखों में... बस तेरी ही कमी दिखती है। --- तेरे बिना हर गीत बेसुरा है, हर ख्वाब अधूरा है, तू नज़र न आए फिर भी — हर जगह तेरा ही चेहरा नज़र आता है। --- मेरा हर सवाल, बस तुझसे जुड़ता है, हर जवाब में, तेरा नाम ही गूंजता है। तू पास न होकर भी पास है, दिल की हर धड़कन में बसी एक खास बात है। --- कह नहीं सकता कि कितना चाहता हूं, क्योंकि ये मोहब्बत लफ़्ज़ों से बहुत आगे की चीज़ है। बस इतना समझ ले — तेरे बिना मैं हूं, पर पूरा नहीं हूं।
🌸 "तुम्हारे नाम की ख़ामोशी" 🌸 तुम्हारा नाम जब होंठों तक आता है, दिल जैसे एक पल को रुक जाता है। ना बोला जाए, ना छुपाया जाए, बस तुम्हारा ज़िक्र ही हर बात में समा जाता है। --- तुम्हें देखा तो समझ आया — इश्क़ रंग नहीं, एहसास होता है। हर सुबह तुम्हारी याद में जागना, हर रात तुम्हारे ख़्वाब से सो जाना, जैसे तुम ही मेरी हर सांस में बसते हो — बिना कहे, बिना छुए, फिर भी सबसे करीब। --- लोग कहते हैं, मोहब्बत आंखों से शुरू होती है, मैं कहूं — मेरी तो रूह से हुई थी। तुम्हारे बिना कुछ भी अधूरा लगता है, जैसे कविता में कोई अल्फ़ाज़ छूट गए हों। --- ना तुम मेरे हो, ना मैं तुम्हारा, फिर भी, इस दिल का हर कोना तुम्हारा नाम गुनगुनाता है। शायद इसी को सच्चा इश्क़ कहते हैं — जहाँ चाहत में कोई शर्त नहीं होती, सिर्फ दुआ होती है… "जहाँ भी रहो, बस खुश रहो।"
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