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Kirti kashyap

Kirti kashyap

@kirtimaheshkashyap939064


"पुराने ख़यालात की"

मुझे नहीं गवारा तूने क्यों रक़ीब से हँसकर बात की,
बेशक नई-सी लड़की हूँ, मगर हूँ पुराने ख़यालात की।

तेरी नज़रों में बस अपना ही अक्स देखना चाहती हूँ,
मुझको तलब है बस तेरी मोहब्बत की, न सौग़ात की।

वफ़ा की राह पे चलना है तो मुश्किलें सहनी होंगी,
ये इश्क़ किताब है साहब, लिखी हुई इम्तिहानात की।

हसीन चेहरे तो हर महफ़िल में अक्सर मिल जाते हैं,
पर कीमत वही होती है जो हो दुआओं-नियाज़ात की।

तुझे ही सोच के गुज़री हैं मेरी रातों की तन्हाइयाँ,
तू ही है राहत मेरी, न ज़रूरत किसी नजात की।

"कीर्ति" लिखते हुए मैंने ये राज़-ए-दिल बयान कर दिया,
अब तेरे हवाले है ये ग़ज़ल, दास्तान मेरी जज़्बात की।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️


रक़ीब = प्रेमी की दूसरी प्रेमिका/प्रतिद्वंद्वी/प्रतिस्पर्धी।
सौगात = उपहार, तोहफा
इम्तिहानात = इम्तेहान, परीक्षा
दुआओं-नियाज़ात = दिल से की गई सारी प्रार्थनाएँ/मोहब्बत भरी इल्तिज़ाएँ।
नजात = मुक्ति, छुटकारा

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"मुझे नहीं अच्छा लगता तेरा यूँ हर किसी से हँसकर बातें करना,
बेशक नई-सी लड़की हूँ, मगर हूँ पुराने ख़यालात की”…🖤
- Kirti kashyap"एक शायरा"✍️

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"सफर-ए-वियोग"

दिल में कुछ अजनबी रोग लिए बैठी हूँ,
ज़िन्दगी में कुछ मतलबी लोग लिए बैठी हूँ।

वो संग-ए-दिल मेरी खुशियों का क़ातिल,
मैं हैरान उस पे सौ सोग लिए बैठी हूँ।

ना दर, ना दीद, और वो इश्क़-ए-ख़ुदा,
मैं किस बेवफ़ा का जोग लिए बैठी हूँ।

हर मोड़ पे छल, हर राह पे तन्हाई है,
मैं ज़ख़्मों का ही अनुरोग लिए बैठी हूँ।

वो छोड़ के मुझको गैरों का हो बैठा है,
मैं सफ़र-ए-इश्क़ में वियोग लिए बैठी हूँ।

"कीर्ति" क्या कहे कोई हाल-ए-दिल अपना,
मैं अरमानों का परितोग लिए बैठी हूँ।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️


संग-ए-दिल = कठोर-हृदय, निर्दयी, बेरहम,
सोग = दुख, शोक, या मातम
अनुरोग = प्रेम, मोहब्बत
परितोग = त्याग, अवसाद

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ख़्वार हूँ मैं मगर, न कोई मुझे ग़मख़्वार चाहिए,
मुझे नहीं किसी का ख़ुद पर इख़्तियार चाहिए।

मेरे हिस्से सदा आईं तल्ख़ सदा-ए-शिकायतें,
अब आरज़ू-ए-हयात है कि बस करार चाहिए।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️



ख़्वार = तबाह, बेइज़्ज़त, बदहाल, परेशान
गमख़्वार = दुख हरने वाला, हमदर्द
इख़्तियार = अधिकार, नियंत्रण
तल्ख़ = कड़वी, कष्टदायक
सदा-ए-शिकायतें = शिकायतों की आवाज़ें, तानों-भरी बातें
आरज़ू-ए-हयात = ज़िन्दगी की तमन्ना

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मैं लिखने बैठी तो सारी कहानियाँ लिख दूंगी,
कुछ अनकही बातों कि निशानियाँ लिख दूंगी।

मैं लिख दूँगी अपनी इबादत तेरे लिए,
बदले में तेरी सारी बेईमानियाँ लिख दूँगी।

कैसे बेख़बर था तू मोहब्बत की राहों में,
तेरी की हुई सारी नादानियाँ लिख दूँगी।

कैसे गुज़ार दी मैंने इक उम्र इंतज़ार में,
बर्बाद की हुई अपनी जवाँनियाँ लिख दूँगी।

ग़मगीन रातों का आलम बताएगा जब,
मैं अपनी तन्हा सी रातानियाँ लिख दूँगी।

तेरे सितम से जो टूटा है दिल बार-बार,
ग़मों की अपनी सारी रवानियाँ लिख दूँगी।

गुमशुदा मुसाफ़िर सी भटकती रही दर-बदर,
तन्हाइयों में लिपटी जिंदगानियाँ लिख दूँगी।

अब "कीर्ति" भी कहेगी देखना दुनिया से,
मैं अपने ग़म की सब दास्तानियाँ लिख दूँगी।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️

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ग़ज़ल-ओ-शायरी से मोहब्बत, लफ्ज़ो से प्रेम करते देखा है,
तुम से बिछड़ के मैंने अपनी क़लम को इश्क़ करते देखा है।
Kirti kashyap "एक शायरा"✍️

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"मोहब्बत नहीं है"

मोहब्बत में उसकी वो शिद्दत नहीं है,
शायद उसे अब मेरी ज़रूरत नहीं है।

हर इक रोज़ बदलता है मिज़ाज उसका,
रंग बदलने की मुझे फ़ितरत नहीं है।

वो रिश्तों में भी करता है सौदे-बाज़ी,
ये मोहब्बत है, कोई सियासत नहीं है।

ग़म-ए-ज़िंदगी से यूँ नाता रहा मेरा,
मुझे ज़्यादा ख़ुशी की आदत नहीं है।

वफ़ा की तलाशें हैं यहाँ बेवफ़ाओं में,
मगर ऐसे सफ़र की मुझे हिम्मत नहीं है।

बहुत सोचा मैंने कि समझाऊँ उसे लेकिन,
किसी पत्थर को समझाने की क़ाबिलियत नहीं है।

सफ़र में मिले ग़म तो चुपचाप सह लिए,
ज़ुबाँ पर कभी कोई शिकायत नहीं है।

अदब तो अभी तक है बातों में उसकी,
मगर आँखों में पहले-सी राहत नहीं है।

लबों पर तो है इश्क़ के चर्चे बहुत से,
मगर "कीर्ति" से उसको मोहब्बत नहीं है।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️

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"इश्क़-ए-पुराना"

दर्द नहीं कुछ खुशियों का फ़साना लिख दूँ,
दो परिंदो का मोहब्बत भरा अफसाना लिख दूँ।

कितनी सादगी हुआ करती थी इश्क़ में पहले,
वो चिठ्ठीयों से इज़हार वाला ज़माना लिख दूँ।

मेरे इक दीदार को तरसती तेरी बेचैन निगाहें,
बात करने को बनाया जो हर बहाना लिख दूँ।

तेरी आवारगी पर मेरा यूँ मुस्कुरा जाना,
और तेरा मेरी गलियों में आना-जाना लिख दूँ।

दुनियां से छुप-छुप के कैसे मिलते थे हम-तुम,
अपनी मुलाक़ात का हर वो ठिकाना लिख दूँ।

एक तेरा ही नाम था शाम-ओ-सहर ज़हन में,
लबों पर तेरे ही नाम का तराना लिख दूँ।

वो गुलिस्तां, गुलो में रंग भरी हुई सी बहार,
और उससे भी नफ़ीस तेरा नज़राना लिख दूँ।

तेरी रूहानी मोहब्बत, मेरा बेशुमार जुनूँ,
तेरी बाहों को ही अपना आशियाना लिख दूँ।

तेरी यादों ने फिर आज क़लम को छू लिया,
तो "कीर्ति" ने सोचा वही इश्क़-ए-पुराना लिख दूँ।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️


नफ़ीस = सुन्दर

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हाथ में क़लम है तो बे-समर किज़्ब लिखावटें कैसे लिखूं,
अब तक सिर्फ दर्द ही पढ़े है मैंने तो मुस्कुराहटें कैसे लिखूं।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️

बे-समर = बेकार, व्यर्थ
किज़्ब = झूठ, गलत
- Kirti kashyap

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ना इतनी जुदा हूँ अस्र-ए-हाज़िर से, ना बिल्कुल पुराने ख़यालात की,
तकनीक के इस शोर में भी, मैं तेरे लफ़्ज़ों की ग़ज़ल होना चाहती हूँ।
- Kirti kashyap "एक शायरा"✍️

अस्र-ए-हाज़िर = आधुनिक युग (मॉर्डन)

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