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Avdhut Suryawanshi

Avdhut Suryawanshi

@avdhutnirvan


जीवन का आधार है साहस
मृत्यु की खोज है साहस

एक जीवन जो चलता सीधा, बिना प्रश्न उठाए
प्रश्नों की कतार है साहस।

कुछ लोग आयु की तीस साल में ही मर जाते हैं
देह के गिरने तक जीवन का उत्सव मनाना है साहस

अपने आप को ना समझ, दूसरों की आँखों में पहचान ढूँढना बहुत आम है
अपने आप को अग्नि में डाल, अपने आप से प्रश्न पूछना है साहस

अपने होने पे लाखों सवाल हैं, समाज की तुलना से भरे
गणित और काव्य का क्या मेल — यह सवाल पूछना है साहस

रोज़ दर्पण में जो दिखता, क्या वही सच है
भविष्य, भूत, वर्तमान से सवाल पूछना है साहस

बहुत आसान है अपने आप को दुखी कहना, समाज साथ देगा
समाज के सामने आनंदित रहना है साहस

कुछ सवाल समाज की भेड़चाल को विचलित कर जाते हैं
कितना भी विचलित कर दें, पर सवाल पूछते रहना — यह है साहस

सुख को कैसे भोग ले अपनी मृत्यु तक — यही ढूँढता है समाज
मृत्यु के आगे भी क्या जीवन है — यह सवाल पूछना है साहस

बलिदान का अर्थ अपने बल को दान करना है अगर
तो अहंकार की बलि दे देना — यही है परम साहस

जीवन रहस्य है अज्ञात का, अवधूत
अंधेरे राजमार्ग से हट, अपना रास्ता बनाना है साहस

_अवधूत सूर्यवंशी

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दिल का सफ़र अफ़सर न हुआ
मैं तेरे दफ़्तर में क्लर्क भी न हुआ

बाज़ार से खरीद लाता कुछ किस्मत
अफ़सोस, किस्मत को भी
मेरी किस्मत पर यक़ीन न हुआ

तोड़ लाता चाँद अगर हाथ लंबे होते मेरे
हाथ बढ़ा के देखा, तो चाँद को यक़ीन न हुआ

ग़ुलज़ार की ग़ज़ल कहूँ या फ़ैज़ की ज़ुबां
अपना हाल देख शेर भी शर्मिंदा हुआ

अब और क्या रुलाएगा अवधूत
तू कब ज़िंदा था... जो मौत ना हुआ

_अवधूत सूर्यवंशी

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आग आग में मिले तो क्या होगा
राख होगा, जमाना भला क्या होगा

पता मालूम नहीं, पता पूछनेवालों का
पता मिल भी गया तो क्या पता होगा

अगर सुलग उठी चिंगारी कुछ इस कदर बारिशों में
हाँ, मगर बारिशों के पानी का हाल क्या होगा

मैं तेरे शहर में अजनबी था शायद
रात रुक जाता तो तेरा क्या होता

अब के सफ़र, हमसफ़र पे क्या बात करता अवधूत
ख़ाक होने बाद क्या तू फिर आग होता

_अवधूत सूर्यवंशी

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मन से आगे बढ़ना सीखो
मन की अपनी अति और प्रीति की मांग है

अपने मन को व्यक्त कर समझना सीखो
मन चेतना और देह के बीच का बस एक संदेश वाहक है
पर संदेश वाहक को लगता की वही मालिक है

असल में हर समस्या का मूल मन के विस्तार से ही शुरू होता है
चेतना और बुद्धि अपने इनपुट देती है
पर मन अपने वायरस के साथ मस्त होता है

मन के आगे निकलने के बहुत मार्ग हैं
इसमें से सरल है, अपने आप को कुछ समय देना
यह ऐसा है जैसे आपने खुद को पढ़के एडजस्ट कर लिया है

असल में ड्राइविंग सीट पे चेतना को होना चाहिए था इस देह में
पर मन है, अब मन सैकड़ों बार रास्ता बदलता तो यात्री परेशान है

प्रेम, रस, करुणा, आनंद से भरा हमारा होना है
पर संदेशवाहक अगर मालिक हो तो बस अपने आप को खोना है

ज़िंदगी बहुत ज़्यादा खूबसूरत है मगर
मन के कारण आत्मकेश से सभी हैरान हैं

मन समझने का विषय है, लड़ने का नहीं
रोज जैसे हम नहाते हैं तन के लिए
मन को भी कैथार्सिस ध्यान से साफ करना है

चलो अभी सुबह सुबह ज़्यादा ज्ञान ना देता यह अवधूत
यह अभी आनंदित है, पर अपना संदेशवाहक भी ज़रा संवेदनशील है
_अवधूत सूर्यवंशी

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रचनात्मकता हमारा स्वभाव है
रचना स्वयंम को रचने निकली है
प्रेम रस लीन रचना उसका अविरत भाव है

हृदय आँखें है उसकी और मौन स्वभाव है
रचना गहन समाधि में लीन अनंत की पुकार है

काव्य छंद कविता गीत यह उसके अंग हजार है
अनासक्त चले जैसे लावण्यवती हर थिरकन में
झंकार है

रचना रचना के प्रेम में आतुर, रचना को रचना से ही मिलन सार है

देह बस एक व्यंग है, रचना को रचना में मिल जाना है,
रचना रचना को अंगीकार है

प्रेम मग्न रचना प्रेम अधीर, शरीर सुख तो उसका एक अमूल्य गले का हार है,
प्रेमी नित नूतन उपहार लाता उसे, रचना को रचना के हर रूप का स्वीकार है

रचना स्वस्वतंत्र अपने आप में पूर्ण है
इसी कारण शायद, रचना के इस यात्रा में सुख दुख का ही बंध है

साक्षी स्वयंम को कर्ता समझ रहा अब
मोह भंग ताप शाप है

सुख दुख का स्वप्न देखता अनंत का यात्री
अनंत यात्रा स्वतंत्र रचना अभी स्वयंम का विस्तार है

अवधूत रचना प्रेमरस से भरी आनंद स्वरूपा
अजन्मा, की अनाहत पुकार है

_अवधूत सूर्यवंशी

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