ज़हन की गिरफ़्त by Ashutosh Moharana in Hindi Novels
भाग 1: नींद से पहले की रात कमरे में सिर्फ़ एक बल्ब जल रहा था — पीली, थकी हुई रोशनी में दीवारें चुपचाप साँस ले रही थीं। ए...
ज़हन की गिरफ़्त by Ashutosh Moharana in Hindi Novels
भाग 2: आईने के पीछे की सनाकमरे की दीवारें जैसे हर दिन सिकुड़ती जा रही थीं — या शायद आरव का दिमाग़। कभी जिस कमरे को उसने...