भाग 8: फाइल नंबर 72
(जो सना से जुड़ी आखिरी कड़ी थी… और शायद आरव से भी।)
अब आरव के लिए सपने, अतीत और वर्तमान में कोई फर्क नहीं रह गया था।
हर रात वो एक ही दृश्य देखता — सना कहीं दूर खड़ी, कुछ कहना चाहती थी, लेकिन हवा में उसकी आवाज़ गुम हो जाती थी।
हर सुबह उसकी यादों में एक और पन्ना खाली मिलता था।
लेकिन आज की रात कुछ अलग थी।
जब अस्पताल की घड़ी ने दो बजाए, और पूरा परिसर सन्नाटे में डूबा हुआ था,
आरव चुपचाप अपने कमरे से निकला।
उसका दिल अब डर से नहीं, सच जानने की जिद से धड़क रहा था।
वो फिर से उस रिकॉर्ड रूम में पहुँचा — वहीं जहाँ पुरानी फाइलें, लावारिस केस स्टडीज़ और बंद पड़ी यादें दबी हुई थीं।
पिछली बार वो यहाँ से एक टेप लेकर लौटा था…
आज उसकी तलाश नाम और सच के बीच की कड़ी थी।
अलमारियों की धूल झाड़ते हुए, एक कोना उसकी निगाहों में अटका —
जहाँ एक लाल रिबन से बंधी फाइल दबा कर रखी गई थी।
रिबन इतना पुराना था कि जैसे उसे फिर से खुलने की इजाज़त कभी नहीं थी।
धड़कनें बढ़ीं।
आरव ने वो फाइल निकाली।
Patient File No. 72 – Sana Malik
Status: Transferred / Discontinued
उसके हाथ काँपने लगे।
"ये फाइल सना की है? वो मरीज़ थी?"
उसने धीरे से फाइल खोली।
पहला पन्ना – मनोरोग रिपोर्ट:
“Patient exhibits signs of delusional emotional attachment towards a senior therapist (Dr. Aarav Mehta). She demonstrates fragmented memory, obsessive reoccurring dreams, and resistance to clinical boundary.”
आरव की आँखों में जैसे बिजली कौंधी।
"डॉ. आरव मेहता?"
“मैं... डॉक्टर था?”
दूसरा पन्ना – हस्तलिखित नोट:
“अगर वो मुझे भूल जाए, तो क्या मैं फिर से ज़िंदा हो सकूँगी?”
सना का हाथ था ये।
शब्द कांपते हुए… जैसे एक बेबस आत्मा की पुकार।
तीसरा पन्ना – डिस्चार्ज समरी:
“Patient disappeared prior to final evaluation. Presumed deceased. Investigation closed due to insufficient evidence.”
गुम हो गई।
बिना किसी समापन के।
और शायद… किसी ने उसे ग़ायब करवा दिया।
आरव ने आगे के पन्ने पलटे।
एक चौंकाने वाला नोट चिपका था —
“If File No. 72 is accessed, initiate Memory Erasure Protocol again.”
(File No. 72 तक पहुँचने की स्थिति में, स्मृति मिटाने की प्रक्रिया पुनः चालू की जाए।)
और नीचे था…
डॉ. मेहरा का सिग्नेचर।
अब तक जो भी आरव ने समझा था — सब उल्टा लग रहा था।
वो मरीज़ नहीं था…
वो डॉक्टर था।
और सना — उसकी मरीज़।
पर शायद… वो सिर्फ़ मरीज़ नहीं थी।
वो उसकी कमजोरी थी… उसका अपराध… या शायद उसका प्यार।
लेकिन अगर ये सब सच है,
तो डॉक्टर मेहरा ने क्यों उसकी यादें मिटाईं?
क्या वो उसे बचा रहे थे —
या कुछ छुपा रहे थे?
अब आरव की आँखों में आँसू नहीं थे।
अब वहाँ एक ठंडा, लेकिन तीखा यक़ीन था:
उसकी यादें छीनी गईं।
सना को मिटा दिया गया।
और शायद… सच को बंद कर दिया गया था।
लेकिन एक सवाल अब भी बाकी था:
"सना कौन थी… वाक़ई?"
अगली कड़ी में पढ़िए:
भाग 9: सना कौन थी… वाक़ई?
(जहाँ सना की असली पहचान और उसकी आखिरी मंशा सामने आती है — और सच, जितना गहरा है… उतना ही ख़तरनाक भी।)