Zahan ki Giraft - 9 in Hindi Love Stories by Ashutosh Moharana books and stories PDF | ज़हन की गिरफ़्त - भाग 9

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ज़हन की गिरफ़्त - भाग 9

भाग 9: सना कौन थी… वाक़ई?
फाइल नंबर 72 ने आरव की दुनिया को पूरी तरह हिला कर रख दिया था।

अब सवाल सिर्फ यह नहीं था कि सना मरीज़ थी या डॉक्टर,
बल्कि यह था कि वो झूठ किसने गढ़ा — और क्यों?

आरव अब न डॉक्टर मेहरा पर भरोसा कर पा रहा था,
न अपने सपनों पर,
और सबसे ज़्यादा — न ही अपनी यादों पर।

लेकिन एक सवाल अब उसकी साँसों में गूंज रहा था:
“सना कौन थी… वाक़ई?”


रात के तीसरे पहर, जबकि पूरा अस्पताल नींद में डूबा था,
आरव बेसमेंट की उन सीढ़ियों से उतरा —
जिनके बारे में उसे कभी कुछ बताया नहीं गया।

नीचे जाने वाला रास्ता संकरा था, दीवारों पर नमी और सीलन के निशान थे।
लाइटें झपक रही थीं, लेकिन वहाँ का अंधेरा किसी डर से नहीं —
बल्कि दबे हुए सच से भरा था।

बेसमेंट के एक कोने में एक लोहे का कमरा था,
जिस पर धूल की मोटी परत थी।

उस दरवाज़े के ऊपर एक स्टीकर चिपका था:

“ARCHIVE – Former Patient Art & Recordings. Restricted Access.”
आरव ने झिझकते हुए दरवाज़ा खोला।
अंदर धूल भरी टेबल, टूटे फाइल बॉक्स, और एक पुराना टीवी सेट पड़ा था।
पास में पड़े वीसीआर में एक कैसेट रखा था —
जिस पर हाथ से लिखा था:

“SANA MALIK — Not A Patient (Confidential: Staff Only)”
आरव ने टीवी ऑन किया।
कैसेट प्ले होते ही स्क्रीन पर जो चेहरा उभरा…
उसे देखकर उसकी साँसें रुक गईं।

सना।


वो एक डॉक्टर की कोट में बैठी थी, ठीक उसी कुर्सी पर
जहाँ आज आरव अपनी थैरेपी में बैठता था।

कैमरा रिकॉर्ड कर रहा था, और सना बोल रही थी:

“मुझे डर है कि आरव खुद को खो देगा।
वो मरीज़ नहीं है — लेकिन खुद को मरीज़ मानने लगा है।
शायद… मैंने ही उसे बहुत ज़्यादा करीब आने दिया।”
उसकी आँखों में आँसू थे।

“मैं उससे प्यार करने लगी हूँ।
और अब… मैं चाहती हूँ कि वो मेरी यादों से निकल जाए।
ताकि मैं उसे ठीक कर सकूं…
मुझे उसे भूलना होगा।”
आरव का सिर चकरा गया।

सना कभी मरीज़ नहीं थी।

वो उसकी मेंटर थी — उसकी प्रोफेसर, गाइड, और शायद पहली सच्ची मोहब्बत।


कैमरा बंद हुआ।

पर रिकॉर्डिंग के नीचे एक और नोट पड़ा था —
लिखावट सना की थी:

“अगर मैं खुद से मिट गई…
तो क्या वो फिर भी मुझे ढूँढेगा?”

अब सब कुछ साफ़ हो रहा था:

जब आरव की मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी,
तो सना ने खुद को उसकी यादों से मिटाने का फ़ैसला लिया।

पर वो यादें इतनी गहरी थीं, इतनी भावनात्मक थीं —
कि आरव ने भूलने से इनकार कर दिया।

और तब अस्पताल ने निर्णय लिया:

“हम उसकी यादों से सना को मिटा देंगे।”
“पर इस बार, बिना पूछे।”


आरव वहीं ज़मीन पर बैठ गया।

अब वो जान चुका था —
वो किसी बीमारी का कैदी नहीं था।
वो एक ऐसी मोहब्बत की याद का क़ैदी था,
जिसे सिस्टम ने उसे भुला देने पर मजबूर कर दिया।


लेकिन एक सवाल अब भी बाकी था…

अगर सना अब सिर्फ़ यादों में थी…
तो हर रात वो क्यों लौटती थी?


अगली कड़ी में पढ़िए:
भाग 10: आईने में दूसरी शक्ल
(जहाँ ज़हन के आईने में… सना फिर लौटती है —
लेकिन क्या वो वही है जिसे आरव जानता था?)