"यह झुमकियां मुझे राजन जी ने दी है।
मेरा बर्थ डे गिफ्ट।।।।।" महक की नाटक भरी बातें सुनने के बाद त्रिशा ने हल्की सी आवाज में शर्माते हुए कहा। भले ही वह यह ना जानती हो कि उसके दिल ने राजन को साथी के रुप में चुन लिया या नहीं पर वह यह जरुर जानती है कि इस समय महक को यह बताते हुए कि राजन उसके लिए गिफ्ट लाया है त्रिशा को मन ही मन बहुत खुशी हो रही है।
"ओह हो!!!!!!!!!!"
" राजन जी ने दी है।।।।।।।।।
जन्मदिन का तोहफ़ा है!!!!!!!!!"
"क्या बात है??????? "
"पहली ही मुलाकात में गिफ्ट मिल गया।।।।।।।।।।" महक ने त्रिशा को तंग करने के लिए छेड़ते हुए कहा और अपना कंधा त्रिशा कै कंधे में मजाक में मारा।
महक की बात सुनकर त्रिशा भी हंसने लगी और उसे यूं हंसता देख महक खुद भी हंसने लगी। वो दोनों हंस ही रहे थे कि तभी मोनिका उनके पास दो चार साड़िया लेकर आई और बोली,
"त्रिशा दीदी!!!!!! महक!!!! यह कुछ साड़ी है मम्मी जी के बताए रंगों की।।। आप देख के बताओ कौन सी पसंद है आपको।।।। और फिर फटाफट तैयार हो जाओ आप। आप तो जानते हो ना तैयार नहीं मिले तो फिर मम्मी जी डांटेगी मुझे आकर।"
"भाभी!!!!!!! मैनें आपसे कितनी बार बोला है ना कि अकेले मैं आपको मुझे दीदी बोलने की जरूरत नहीं है।।।।।"
" और भले ही मैं आपकी नन्द हूं पर हूं तो आपसे और भईया से पूरे एक साल छोटी ना।।।। आप मुझसे बड़ी है ना तो फिर क्यों बोलती है???? और वो तो बस मामी जी नहीं मानती नहीं तो मैं आपको दीदी कभी ना बोलने दूं!!!!!!!!" त्रिशा ने मोनिका से साड़ी लेते हुए उससे कहा।
"तुम नहीं समझोगी अभी।।।।। ससुराल में ऐसा ही होता है।।।।।।। सास और नन्द को इज्जत देनी ही पड़ती है।।।।।" मोनिका ने त्रिशा को एक एक कर सारी सड़ी दिखाते हुए कहा।
"अरे इज्जत करनी है तो वो तो वैसे भी कर सकते है ना भाभी।।।।।।। माना आप इज्जत कर रहे है हो पर हम भी तो बड़े छोटे का लिहाज नहीं भुल सकते ना। आप भी तो हमसे बड़े हो ना तो हमें आपको इज्जत देनी चाहिए ना कि आप हमें दीदी दीदी बोले।" इस बार महक ने त्रिशा की ओर से बोला।
"पता है भाभी आप भले ही मेरी भाभी हो पर जबसे आप आए हो मैं आपसे एक बड़ी बहन की तरह जुड़ाव महसूस करती हूं। मुझे ऐसा लगता है कि हम दोनों में एक सहेली सा रिश्ता है, दो बहनों सा रिश्ता है। आपके आने से पहले मेरी उम्र की कोई और लड़की नहीं थी यहां पर जबसे आप आए मुझे एक साथी, एक दोस्त और एक बड़ी बहन मिल गई लेकिन जब जब आप दीदी बोल देते हो मुझे तो बड़ा अजीब सा लगता है। जो रिश्ता में दिल का मानती थी हमारे बीच का वहीं रिश्ता औपचारिक सा लगता है। " त्रिशा ने कुछ उदास सा होकर कहा मोनिका से शिकायत करते हुए कहा।
"अरे पगली ऐसा नहीं है!!!!!!! तुम ही तो हो जिस से मैं यहां सबसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करती हूं। जब मैं इस घर में आई थी तुम ही तो जिसने मुझे सबसे ज्यादा सहारा दिया। इस घर के बारे में सब कुछ बताया ताकी मैं घुल मिल सकूं सबसे। तुम ही तो थी जिसके साथ मैं सबसे ज्यादा सहज महसूस करती थी। पर यह भी तो तुम्हारी मामी का हुक्म है ना कि मैं तुम्हें नाम से ना बुलाऊं और मैं उनका कहा कैसे टालूं?????" मोनिका ने अपने विवशता बताते हुए त्रिशा को समझाते हुए कहा और लाई गई साड़ियों में से एक हल्की संतरी और सुनहरी सी साड़ी निकाल कर त्रिशा के ऊपर लगा कर देखते हुए कहा।
"हम्मममम सही कह रही है आप।।।।। मामी की बात तो आपको माननी ही पड़ेगी। पर प्लीज अकेले में तो दीदी ना बोलो।।।।।" त्रिशा ने एक दूसरी गुलाबी और फिरोजी रंग की साड़ी उठाते हुए मोनिका से कहा।
मैं तुम्हारा नाम नहीं ले सकती ऐसा मम्मी दी का हुक्म है और मैं तुम्हें दीदी नहीं बोल सकती यह तुम्हारा तो क्या मैं तुम्हें बिना नाम के पुकारुं ????? मोनिका ने हंसते हुए कहा।
मोनिका की बात का त्रिशा कोई जवाब देती उससे पहले ही महक बोली," ओफ्फो!!!! कितना मेलोड्रामा कर रहे हो आप दोनों भी। बिल्कुल टीवी सीरियल की आदर्श बहू की तरह। अरे भाभी सिंपल है आप इसे छोटी बुला लो।।।।।। वैसे भी इसे छोटी बहन बनने का शौक है। " महक ने हंसते हुए कहा।
"और भाभी आप नाम छोड़ो इसे यह साड़ी पहनाओं गुलाबी वाली। नहीं तो अभी आपकी सांस आकर इसे तो कुछ नहीं कहेगी और हम दोनों की क्लास लगा देगीं।" महक उन दोनों को मामी की याद दिलाते हुए बोली।
"हां यह तो है। महक सही बोल रही है।।।।। छोटी तुम जल्दी से पसंद करो कौन सी सड़ी पहननी है तुम्हें!!!!!!!" अपनी सांस का नाम सुनते ही मोनिका ने फटाफट त्रिशा से पूछा।