Tumse Milne ki Chhuti - 6 in Hindi Love Stories by soni books and stories PDF | तुमसे मिलने की छुट्टी - 6

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तुमसे मिलने की छुट्टी - 6

मेरा हीरो लौट आया मेरा हीरो सुबह का उजाला खिड़की से अंदर गिर रहा था।घर में आज किसी अनकही ख़ुशी की हल्की-सी महक थी।पिछले कुछ दिनों में जो खालीपन था, वो जैसे कम होने लगा था।---सुबह 9:15 — स्कूल का प्रोजेक्टआर्या बैग लेकर भागते हुए आई—“मम्मा! पापा! आज मेरा प्रोजेक्ट है — My Heroऔर मुझे स्टेज पर बोलना है!”जिया मुस्कुराई,“वाह, मेरी शेरनी!”लेकिन आयुष थोड़ा असहज हो गया।उसने धीरे से पूछा—“तुम किसके बारे में बोलोगी? Teacher, doctor… या कोई और?”आर्या ने पूरी चमकती आँखों से कहा—“तुम्हारे बारे में, पापा! You are my hero.”आयुष वहीं रुक गया—जैसे किसी ने उसके दिल को छू लिया हो।जिया ने धीरे से उसका हाथ दबाया।“अब समझे… क्यों हमें तुम्हारी ज़रूरत घर में है?”---स्कूल ऑडिटोरियम — दिल की धड़कनें तेज़लाइट्स धीमी हो रही थीं, बच्चे स्टेज पर आ-जा रहे थे।आयुष जिया के साथ दूसरी कतार में बैठा था।उसका दिल किसी लड़ाई से पहले जैसा धड़क रहा था—बरसों बाद वह अपनी बेटी को इतने करीब से देख रहा था।जब आर्या का नाम बुलाया गया—छोटी-सी, दो चोटियों में, टाई सीधी करते हुए वह स्टेज पर गई।उसने माइक पकड़ा और गहरी सांस ली।---आर्या का भाषण — जिसने सबका दिल जीत लिया“Good morning everyone,”उसकी मीठी आवाज़ गूँजी।“आज मैं जिस हीरो के बारे में बोलूँगी…वो किसी किताब में नहीं,किसी फिल्म में नहीं, वो मेरे घर में है।”सबकी नज़रें उस पर टिक गईं।“मेरे पापा, Major Ayush Thakur.वो देश की रक्षा करते हैं…पर उससे भी ज़्यादा,वो मेरे दिल की रक्षा करते हैं।”आयुष की आँखें भर आईं।“लोग कहते थे मेरे पापा घर से प्यार नहीं करते,लेकिन सच ये है—पापा घर को बचाने जाते हैं।और अब उन्होंने वादा किया है किमैं कभी अकेली महसूस नहीं करूँगी।”आर्या ने भीड़ में बैठे आयुष की तरफ देखा—उसकी आँखें चमक रही थीं।“My hero is not just a soldier.My hero is my papa.”पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा।आयुष अपने आँसू रोक नहीं सका।उसने जिया का हाथ पकड़ लिया—कसकर।---स्टेज पर — एक पल जो हमेशा याद रहेगाटीचर ने कहा—“आर्या, क्या आप चाहेंगी कि आपके हीरो स्टेज पर आएं?”आर्या ने हाँ में सिर हिलाया,और सीधे आयुष की ओर भागी।आयुष स्टेज पर गया,वह घुटनों पर बैठा,और आर्या ने उसकी गर्दन को ज़ोर से गले लगा लिया।भीड़ में खड़े लोग ताली बजाते रहे।लेकिन जिया ने देखा—आयुष रो रहा था,और पहली बार…वह रोने से शर्मिंदा नहीं था।---घर वापस आते समय — एक नए जीवन की शुरुआतकार में एक सुखद चुप्पी थी।फिर जिया ने हल्के से कहा—“मुझे तुम पर गर्व है, Major Ayush Thakur.”आयुष ने उसकी ओर देखा,“और मुझे तुम दोनों पर।”तभी फोन बजा—Army headquarters का कॉल।आयुष ने कॉल उठाया…आवाज़ गंभीर थी— “Major, एक Special Training Assignment का आदेश आया है।Designation upgrade के साथ।पर आपको फैसला 48 घंटे में देना होगा।”फोन कट गया।जिया और आयुष एक-दूसरे की ओर देख रहे थे।कमरे में खामोशी गिर गई।आर्या ने मासूमियत से पूछा—“पापा… आप जाओगे?”आयुष ने उसकी आँखों में देखा—और पहली बार जवाब देने से पहले सोचा यह रहा  दो राहें, एक दिलफोन कट चुका था,पर शब्द अभी भी हवा में तैर रहे थे—“48 घंटों में फैसला…”लिविंग रूम में गहरी चुप्पी थी।दीवार पर लगी घड़ी की टिक-टिकजैसे सबकी धड़कनों को तेज़ कर रही थी।आयुष खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया,हाथ मुट्ठी में भींचे हुए।जिया चुपचाप उसे देख रही थी।वह जानती थी—ये सिर्फ एक ऑफर नहीं,ज़िंदगी का मोड़ था।---जिया — दिल का बोझधीरे से उसने कहा—“कौन-सी पोस्टिंग है, आयुष?”आयुष ने गहरी सांस ली,“Special Operations Training Team…एक साल की off-base assignment…और उसके बाद Promotion to Lieutenant Colonel.”जिया का दिल धड़का—एक साल।यानी फिर अलग रहना।फिर अकेली रातें।फिर आर्या की खाली आँखें।फिर फोन के सहारे जीना।उसने आवाज़ संभालते हुए पूछा— “और खतरे?”आयुष कुछ देर चुप रहा,फिर बोला—“High risk.”कमरे में हवा जैसे रुक गई।---आर्या — छोटी आवाज भी सबसे बड़ीआर्या धीरे से आयुष के पास आई,उसने उसकी उंगली पकड़ी—“पापा…”आयुष घुटनों पर बैठ गया।उसने आर्या के बालों में हाथ फेरा—“हाँ, परी?”आर्या की आवाज़ काँप रही थी— “आप फिर बहुत दूर चले जाओगे?”आयुष के गले में शब्द अटक गए।वह जवाब नहीं दे सका।---जिया का दर्द और साहसजिया ने पास आकर कहा—“आयुष, मैं तुम्हें रोकूँगी नहीं।ये तुम्हारा काम है, तुम्हारा फर्ज़ है।पर इस बार…कृपया ये मत सोचो कि जो भी फैसला तुम करोगे,हम बस मान लेंगे।”आयुष ने उसकी तरफ देखा—आँखों में थकान, डूबा हुआ संघर्ष।जिया ने आगे कहा—“मैं तुमसे पूछ रही हूँ, जैसा एक पत्नी पूछ सकती है…क्या जीत सिर्फ वो होती है जो देश के लिए मिलती है?या वो भी जीत है, जो घर को टूटने से बचाती है?”आयुष की आँखें नम हो गईं।---रात 11:40 — बालकनी मेंसर्द हवा बह रही थी।कॉफी के दो मग, भाप उठती हुई।आयुष ने धीरे कहा—“जिया, बचपन से यही सीखा है…देश पहले, फिर मैं, फिर बाकी सब।”जिया ने उसका हाथ पकड़ लिया—“और मैंने ये सीखा है…घर पहले, क्योंकि घर ही ताकत बनकर देश की रक्षा करवाता है।अगर दिल ही खली हो जाए… तो साहस कहाँ से आएगा?”एक लंबी खामोशी।पर अब ये चुप्पी दर्द की नहीं—सोच की थी।आयुष ने धीमी आवाज़ में कहा—“मैं डर रहा हूँ…गलत फैसला ना ले लूँ।”जिया ने फुसफुसाकर कहा—“हम हैं ना…हम साथ में फैसला लेंगे।”---अगली सुबह — एक नई समझनाश्ता करते हुएआयुष ने आखिर कहा—“आज Headquarter जाकर बात करता हूँ।कहूँगा—Postponement चाहिए।या near-base assignment।अगर ना मिला…तो मैं ये mission शांति से छोड़ दूँगा।”आर्या ने खुशी से ताली बजाई— “पापा घर पर रहेंगे!!”जिया की आँखें नम थीं,लेकिन मुस्कान बहुत सच्ची थी।आयुष ने दोनों को गले लगा लिया—“इस बार—देश का सिपाही नहीं,घर का सैनिक फैसला करेगा।”_____next part