सुनील दत्त के मुंह से यह बात निशा की आंखों में आंसू निकल आए,,,,
यह देखकर सुनील दत्त बोले अरे अब रोती रहोगी या राखी भी बांध होगी, वह क्या है ना कि जब भी मुझे कोई बेसहारा औरत या लड़की मिल जाती है तो मैं राखी बनवा लेता हूं इसलिए मैं अपनी जेब में रक्षाबंधन के दिन राखी रखता हूं पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए,,,,,
निशा ने बिना देर किए ही सुनील दत्त के हाथ में से राखी लेकर राखी उसकी कलाई पर बांध दी, निशा की आंखों से आंसू टपक पड़े,,,,,
तब सुनील दत्त ने उसे कुछ पैसे देने चाहे तो निशा ने लेने से मना कर दिया और शगुन के तौर पर बस ₹1 का सिक्का लिया और कहा नहीं है भैया आपने तो मुझे नई जिंदगी दी है आपका यह एहसान में जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी,,,,
यह कहकर वह सुनील दत्त के गले लग गई सब सुनील दत्त ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहां जब भी तुम्हें अपने इस भाई की जरूरत हो तो बेझिझक याद करना,,,,,,
निशा को अब सुनील दत्त के रूप में एक भाई मिल गया था, सुनील दत्त के माता पिता बचपन में ही गुजर चुके थे वह अपने माता-पिता की इकलौती औलाद था, सुनील दत्त के दो बेटे थे उसकी पत्नी की मौत भी किसी बीमारी के चलते हो चुकी थी अपने बेटों की परवरिश सुनील दत्त ने खुद ने की थी क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई सौतेली मां उसके बेटों को परेशान करें,,,,,
उधर विजय दिन-रात अपने ससुर के कारोबार में लगा रहता, लेकिन अब विजय और रोमी के बीच रिश्ता ठीक नहीं था क्योंकि एक दिन विजय जब घर आया तो उसने देखा कि रोमी कुछ लड़कों के साथ घर में बैठकर बातें कर रही थी और शराब पी रही थी,,,,,
विजय को यह देखकर बहुत गुस्सा आया तभी विजय ने देखा कि शराब के नशे में वह लड़के रोमी को गलत तरीके से छूने की कोशिश कर रहे थे और रोमी उनका कोई विरोध भी नहीं कर रही थी,,,,,
यह देख कर विजय को गुस्सा आ गया और उन्होंने उन लड़कों को वहां से डांट कर भगा दिया और रोमी को गुस्से में हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा कि तुम्हें शर्म नहीं आती इतनी घटिया हरकत करते हुए,,,,,
यह कहकर विजय को कुछ और भी तेज गुस्सा आ गया और उसने जैसे ही रोमी के तमाचा देना चाहा, रोमी ने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से में धड़कते हुए बोली मैं तुम्हारी कोई गुलाम नहीं हूं समझ क्या रखा है तुमने मुझे,,, मेरे ही पापा के टुकड़ों पर पलते हो और मुझे ही गुस्सा दिखाते हो तुम्हारी औकात ही क्या है मेरे सामने,, तुम एक उस पालतू कुत्ते की तरह हो जिसे मेरे पापा निवाला फेंकते हैं और खबरदार जो आज के बाद मेरे ऊपर हाथ उठाने की हिम्मत भी की तो मेरी जिंदगी है मैं अपने हिसाब से जीना जानती हूं समझे तुम,,,,,,
यह कहकर रोमी वहां से चली गई रोमी के बोले शब्द विजय की आत्मा में तीर की तरह चुभ रहे थे, आज उसे निशा की बहुत याद आई कि जिस रोमी के पिता की जायदाद के लिए उसने रोमी से विवाह किया जिसके पिता के कारोबार को बढ़ाने के लिए वे दिन रात एक कर मेहनत करता रहा आज उसी की रोमी की नजरों में कोई इज्जत नहीं है,,,,,