Kayya Rishi: A Love Story in the Rain in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | काव्या और ऋषि: बारिश में एक प्रेम कहानी

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काव्या और ऋषि: बारिश में एक प्रेम कहानी

🌧️ काव्या और ऋषि: बारिश में एक प्रेम कहानी
बारिश उस दिन कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी।
दिल्ली की सड़कों पर लोग भाग रहे थे—कहीं भीगने से बचने के लिए, तो कहीं बस ज़िंदगी की रफ़्तार बनाए रखने के लिए। पर काव्या के लिए वो दिन अलग था—उसकी ट्रेन छूट चुकी थी, ऑफिस के कागज़ भीग चुके थे और ऊपर से छाता भी घर पर ही छूट गया था।
वो बस स्टैंड के शेड के नीचे खड़ी थी, बालों से पानी की बूँदें टपक रही थीं। आँखों में झुंझलाहट थी और होंठों पर वो हल्की मुस्कान जो हालात को हँसी में टाल देती है।
“आपको छाता चाहिए क्या?”
एक धीमी, पर बेहद गर्म आवाज़ उसके पास से आई।
काव्या ने मुड़कर देखा—ऋषि, जिसकी आँखों में बारिश की ठंडक और दिल की गर्माहट दोनों थी। उसके हाथ में एक नीली छतरी थी, जिसमें वो खुद आधा भीग चुका था, पर किसी अजनबी को सूखा रखने की जगह देने में उसे कोई हिचक नहीं थी।
काव्या ने हल्के से कहा,
“आप भीग जाएँगे।”
ऋषि मुस्कुराया,
“बारिश में भीगना मेरी आदत है... किसी को बचाना भी।”
उस पल काव्या को नहीं पता था कि ये ‘छतरी’ सिर्फ बारिश से नहीं, उसकी ज़िंदगी की तन्हाई से भी उसे बचा लेगी।
☕ 1. पहली मुलाक़ात के बाद
दोनों एक ही बस में चढ़े। काव्या खिड़की के पास बैठी थी, और ऋषि सामने की सीट पर। बारिश की बूँदें काँच पर गिरतीं, और वो दोनों बस खामोश होकर उस लय को सुनते रहे। बीच-बीच में जब उनकी नज़रें मिलतीं, तो जैसे पल ठहर जाता था।
“मैं ऋषि हूँ... और आप?”
“काव्या।”
“काव्या... बहुत प्यारा नाम है।”
“आपका भी... थोड़ा फिल्मी है, लेकिन अच्छा है।”
दोनों हँस पड़े।
वो छोटी-सी बातचीत जैसे दोनों की ज़िंदगी में एक नए रिश्ते की शुरुआत लिख गई। बस के झटकों के बीच, एक नया एहसास जन्म ले रहा था—न दोस्ती, न प्यार... बस एक अनकहा एहसास।
🌦️ 2. रोज़ की बारिशें
अगले कुछ दिनों तक बारिश रुकी नहीं, और न ही उनकी मुलाक़ातें।
कभी ऑफिस के रास्ते में, कभी बस स्टॉप पर, कभी चाय की दुकान पर—दोनों की दुनिया अब धीरे-धीरे एक ही छतरी के नीचे सिमटने लगी थी।
ऋषि को काव्या की बातें पसंद थीं—उसकी हँसी, उसका दुनिया को देखने का तरीका, उसका ज़िद्दी बचपना। काव्या को ऋषि का सुकून भरा स्वभाव पसंद था—वो कम बोलता था, पर हर बात दिल से कहता था।
एक शाम, जब बारिश कुछ थम गई थी, ऋषि ने पूछा,
“काव्या, तुम्हें बारिश इतनी क्यों पसंद है?”
काव्या ने मुस्कुराकर कहा,
“क्योंकि ये सब कुछ धो देती है... दर्द, थकान, और शायद तन्हाई भी।”
ऋषि ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,
“कभी-कभी बारिश नया दर्द भी दे देती है... जब कोई साथ न हो।”
काव्या ने जवाब नहीं दिया। बस उसकी तरफ देखा—और उस नज़र में वो सब कुछ था जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता।
☔ 3. दोस्ती के उस पार
दिन हफ़्तों में बदल गए। अब दोनों बिना कहे एक-दूसरे से मिलने लगे। काव्या सुबह ऑफिस जाने से पहले देखती कि ऋषि वहीं बस स्टैंड पर है या नहीं। और ऋषि, हर सुबह अपनी छतरी साफ़ करता—ताकि अगर बारिश हो, तो काव्या भीग न जाए।
एक दिन काव्या ने पूछा,
“तुम हर वक़्त मुस्कुराते क्यों रहते हो?”
ऋषि ने कहा,
“क्योंकि तुम मुस्कुराना सिखा रही हो।”
काव्या हँस पड़ी,
“पता है, तुम बहुत फ़िल्मी हो।”
“और तुम बहुत सच्ची।”
उस दिन काव्या के दिल में कुछ हल्का-सा हिला—जैसे कोई नया एहसास जन्म ले रहा हो। पर उसने खुद से कहा, “नहीं, ये बस दोस्ती है... बस दोस्ती।”
💧 4. वो शाम जब सब बदल गया
उस शाम बारिश बहुत तेज़ थी। सड़कों पर पानी जमा था और हवाएँ पेड़ों को झुका रही थीं। काव्या ऑफिस से निकली तो देखा—ऋषि वहाँ नहीं था।
पहली बार उसे अजीब-सी बेचैनी हुई। वो देर तक खड़ी रही, पर वो नहीं आया।
तभी उसका फ़ोन बजा—ऋषि का मैसेज था:
“काव्या, आज नहीं आ पाऊँगा। थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है।”
बस इतना लिखा था, पर काव्या के मन में जैसे कोई झंझावात उठ गया। वो रिक्शा लेकर ऋषि के घर पहुँची। बारिश से भीगी, गीले बालों के साथ—और आँखों में चिंता।
दरवाज़ा खोला तो ऋषि सच में बीमार था—उसे बुखार था। काव्या ने बिना कुछ कहे उसके सिर पर हाथ रखा।
“पागल हो तुम, इतनी बारिश में घूम रहे थे रोज़... अब देखो।”
ऋषि ने हल्के से मुस्कुराया,
“अगर मैं न आता, तो तुम भीग जातीं... मुझे वो मंज़ूर नहीं था।”
काव्या के दिल में कुछ टूट-सा गया। उसने पहली बार महसूस किया कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं थी।
उस रात वो ऋषि के पास बैठी रही, दवा दी, चाय बनाई, और खिड़की से गिरती बूँदों को देखती रही। बारिश बाहर थी, पर दिलों में एक नई गर्मी जल रही थी।
❤️ 5. एहसास का नाम प्यार
अगले दिन जब ऋषि ठीक हुआ, उसने कहा,
“काव्या, कल तुम आईं... वो मेरे लिए पहली धूप थी।”
काव्या मुस्कुराई,
“अब ज़्यादा भावुक मत बनो।”
ऋषि ने गहरी साँस ली,
“काव्या, अगर मैं कहूँ... कि अब तुम्हारे बिना कुछ अधूरा-सा लगता है?”
काव्या ने उसकी आँखों में देखा—और कुछ पल चुप रही। फिर कहा,
“मुझे डर लगता है, ऋषि... प्यार से।”
“क्यों?”
“क्योंकि हर प्यार एक दिन बिछड़ जाता है।”
ऋषि ने उसकी हथेली अपने हाथ में ली,
“तो हम इसे जाने नहीं देंगे।”
उनकी आँखों में बारिश की परछाईं थी, और उस पर टिमटिमाती उम्मीद।
उस दिन दोनों ने कुछ कहा नहीं, बस एक ही छतरी के नीचे चल पड़े। पहली बार वो बारिश भी कुछ अलग लगी—जैसे खुद आसमान उनकी मोहब्बत पर मुस्कुरा रहा हो।
🌈 6. महीनों बाद
समय बीत गया। अब बारिश उनकी पहचान बन चुकी थी। हर बार जब बादल घिरते, ऋषि छतरी लेकर बस स्टॉप पर पहुँच जाता। काव्या हँसते हुए कहती,
“तुम्हें नहीं लगता हम हर बारिश में वही कहानी दोहराते हैं?”
ऋषि जवाब देता,
“शायद इसलिए कि हमारी कहानी में हमेशा एक नया मौसम होता है।”
धीरे-धीरे उनके रिश्ते ने एक नाम पा लिया—प्यार। पर इस प्यार में कोई दिखावा नहीं था, कोई बड़े वादे नहीं थे, बस छोटी-छोटी बातें थीं जो ज़िंदगी को खूबसूरत बना देती थीं।
कभी साथ में चाय पीना, कभी बारिश के बाद इंद्रधनुष देखना, कभी बस खामोशी में एक-दूसरे को महसूस करना।
💔 7. एक अनकहा मोड़
एक दिन ऋषि को नौकरी के लिए मुंबई जाना पड़ा। दोनों स्टेशन पर खामोश खड़े थे।
काव्या ने कहा,
“जाना ज़रूरी है?”
“हाँ... सपनों के लिए।”
“और हमारे सपनों का क्या?”
“वो तो तुम हो, काव्या... मैं कहीं नहीं जाऊँगा उनसे दूर।”
काव्या ने आँसू रोकते हुए कहा,
“तो वादा करो, बारिश वाले दिन कॉल ज़रूर करना।”
ऋषि ने मुस्कुराकर कहा,
“वादा।”
☔ 8. बरसों बाद—वही बारिश
तीन साल बीत गए। काव्या अब दिल्ली में एक नामी कंपनी में काम करती थी। ज़िंदगी पटरी पर थी, पर कुछ खाली-खाली-सा था।
उस दिन फिर वही बारिश शुरू हुई। वो उसी बस स्टॉप पर खड़ी थी, हाथ में अब खुद की छतरी थी। पर दिल में वही पुरानी यादें।
तभी किसी ने पीछे से कहा,
“माफ़ करना... क्या आपको छाता चाहिए?”
वो आवाज़—वही थी।
काव्या ने मुड़कर देखा—ऋषि खड़ा था, हाथ में वही नीली छतरी, और आँखों में वही मुस्कान।
काव्या ने कहा,
“तुम लौट आए?”
“नहीं, मैं तो यहीं था... बस तुम्हारी बारिश का इंतज़ार कर रहा था।”
और फिर दोनों उसी छतरी के नीचे चल पड़े, जहाँ पहली बार दोस्ती हुई थी, और अब मोहब्बत मुकम्मल हो रही थी।
🌧️ 9. आख़िरी पंक्तियाँ
बारिश अब भी हो रही थी, पर इस बार कोई भी नहीं भाग रहा था।
काव्या और ऋषि साथ चल रहे थे, एक छतरी के नीचे, जहाँ हर बूँद एक दुआ बन चुकी थी।
कभी-कभी ज़िंदगी में बस एक छोटी-सी मुलाक़ात, एक मुस्कान, और एक छतरी ही काफ़ी होती है... किसी की दुनिया बदलने के लिए

बरसों का इंतज़ार आज यूं ख़त्म हो गया,
तुम भी वही थे, मौसम भी वही था।
पहली बार मिली थी, तो बस छतरी थी साथ,
अब जो मिले हैं, तो मोहब्बत का साया है।