🌌 एपिसोड 44 — “कलम जो खुद लिखने लगी”
(सीरीज़: अधूरी किताब)
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1. लौटना — मगर सब कुछ बदला हुआ
दरभंगा की हवेली पीछे छूट चुकी थी,
मगर उसकी रूह अब नेहा के भीतर बस चुकी थी।
ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ रही थी।
खिड़की से नीला आसमान, और हवा में स्याही की गंध थी।
नेहा की उँगलियाँ अब भी नीली थीं —
जैसे उसने किसी और की जिंदगी लिख दी हो।
उसके सामने लैपटॉप खुला था।
स्क्रीन पर “Untitled Document” झिलमिला रहा था,
पर नेहा ने अब तक कुछ नहीं लिखा था।
अचानक —
कर्सर अपने आप चलने लगा।
लिखा आने लगा —
> “कहानी अब हवेली से निकल चुकी है,
अब वो हर लेखक में जीवित है…”
नेहा का साँस रुक गया।
उसने टाइपिंग रोकने की कोशिश की,
पर अक्षर खुद-ब-खुद बन रहे थे —
हर शब्द के साथ नीली चमक उठ रही थी।
> “रूह की कलम अब इंसान के हाथों से नहीं —
आत्मा के आदेश से लिखेगी।”
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2. नीली रात का दिल्ली में लौटना
दिल्ली की सड़कें आम थीं,
पर उस रात वहाँ भी हवेली की नमी फैल चुकी थी।
एक पुरानी किताबों की दुकान के बाहर
एक लड़का खड़ा था — आरव वर्मा।
उसी नाम का, जिसकी आत्मा हवेली में कैद थी।
उसने पुरानी किताब उठाई —
“अधूरी आत्माएँ — Written by Neha Sharma.”
उसने पन्ना खोला —
और अचानक हवा में नीली रेखाएँ तैर उठीं।
किताब से एक धीमी आवाज़ आई —
> “स्वागत है, आरव। कहानी तुझसे दोबारा मिलना चाहती है।”
उसकी आँखों में कुछ पहचाना-सा कौंधा —
जैसे वो इस किताब को पहले भी जानता हो।
वो बुदबुदाया,
“ये नाम… ये आवाज़… मैंने इसे कहाँ सुना है?”
नीली हवा उसके चारों ओर घूमने लगी।
और उसकी हथेली पर स्याही का एक अक्षर उभरा —
“N” — नेहा।
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3. कलम का अपना वजूद
उधर नेहा घर पहुँची।
थकी हुई, पर भीतर कोई अजीब हलचल थी।
टेबल पर उसकी पुरानी कलम रखी थी —
वही “रूह की कलम”।
वो अब सामान्य नहीं थी —
उससे नीली धड़कनें निकल रही थीं।
नेहा ने उसे छूने की कोशिश की,
पर कलम खुद बोल उठी —
> “अब मैं सिर्फ़ तेरी नहीं रही, नेहा…
मैं हर उस आत्मा की हूँ जिसने कभी कुछ लिखा और खोया।”
नेहा के चेहरे पर डर और अपनापन दोनों थे।
उसने धीरे से पूछा —
“क्या तू मुझसे लिखवाएगी?”
> “नहीं… अब मैं खुद लिखूँगी।”
टेबल पर कलम अपने आप चलने लगी।
स्याही हवा में तैर रही थी,
और शब्दों ने खुद को आकार देना शुरू किया —
> “Chapter 1 — जब आत्माएँ लेखक बनती हैं।”
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4. आरव का जागना
रात के तीन बजे,
आरव को अपने कमरे में नीली चमक दिखी।
किताब मेज़ पर खुली थी —
पन्ने हवा में फड़फड़ा रहे थे।
उसने डरते हुए पन्ना पलटा —
उस पर लिखा था,
> “तू लौट आया है… अब कहानी पूरी होगी।”
आरव ने हाथ से स्याही छुई,
और वो लकीरें उसकी त्वचा में समा गईं।
उसकी आँखें नीली हो गईं —
अब वो इंसान नहीं रहा,
बल्कि कहानी का हिस्सा बन चुका था।
उसने गहरी साँस ली और कहा,
“नेहा… तू अकेली नहीं है अब।”
नीली हवाओं ने जवाब दिया —
> “कहानी अब दो आत्माओं की है।”
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5. आत्माओं की गूँज
दूसरी सुबह,
नेहा ने अखबार खोला —
पहला पन्ना देखकर वो जड़ हो गई।
शीर्षक:
> “दिल्ली में अजीब नीली रौशनी — किताब की दुकान से उठी धुंध में एक लेखक गायब।”
उसने तस्वीर देखी —
वो आरव था।
उसकी आँखों से आँसू गिरे।
वो समझ गई — कहानी ने फिर एक आत्मा को चुना है।
नेहा ने “रूह की कलम” उठाई और बोली —
“तू उसे ले गई, अब मैं क्या लिखूँ?”
कलम ने जवाब दिया —
> “जो अधूरा है, वही लिख।”
वो बोली,
“और अगर मैं भी अधूरी रह गई?”
> “तो तू अमर हो जाएगी।”
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6. जब शब्द साँस लेने लगे
नेहा ने टेबल पर खाली पन्ना रखा।
उसने लिखा —
> “आरव — मैं तुझसे नहीं मिली,
पर शायद तेरी रूह मेरे हर शब्द में बसती है।”
स्याही चमकी, और हवेली का दृश्य फिर उसके सामने आया।
दीवारों से वो सभी आत्माएँ उभरीं
जो उसने पहले मुक्त की थीं —
तन्वी, आदित्य, मीरा…
सब बोले —
> “नेहा, कहानी अब तुझसे बड़ी हो चुकी है।”
कलम ने खुद उड़कर पन्ने पर शब्द लिखे —
> “हर बार जब कोई लेखक कुछ अधूरा छोड़ता है,
मैं उसकी रूह को अपने पन्नों में समा लेती हूँ।”
नेहा ने धीरे से कहा —
“तो अब मैं भी तेरी किताब का हिस्सा बनूँगी?”
> “हाँ, पर तेरे शब्द ज़िंदा रहेंगे।”
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7. दुनिया तक पहुँचती रूह
कुछ ही हफ्तों बाद,
“अधूरी आत्माएँ — Volume II” पर प्रकाशित हुई।
पाठकों ने कहा —
> “ये कहानी खुद साँस लेती है…”
लोग पढ़ते, और उनके कमरे में हल्की नीली रोशनी फैल जाती।
कुछ ने बताया कि किताब पढ़ते-पढ़ते
उनकी उँगलियों पर स्याही के निशान उभर आते हैं।
कोई नहीं जानता था —
कि वो नेहा की रूह थी,
जो अब हर पाठक के माध्यम से लिख रही थी।
कलम अब किसी एक के पास नहीं थी।
वो हवा में, विचारों में, और शब्दों में घूम रही थी।
हर लेखक जो लिखने बैठता —
उसके मन में एक आवाज़ गूँजती —
> “कहानी मत लिख,
उसे महसूस कर —
क्योंकि अब कहानी तू खुद है।”
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8. अंतिम दृश्य — अनंत कलम
कई साल बाद,
दरभंगा हवेली फिर खुली।
एक छोटी लड़की अंदर गई —
उसका नाम था आर्या।
टेबल पर एक पुरानी किताब रखी थी,
जिस पर लिखा था —
> “रूह की कलम — Written by The Soul Itself.”
उसने किताब खोली,
और पहला वाक्य उभरा —
> “स्वागत है, आर्या… अब तू लिखेगी वो जो हमने अधूरा छोड़ा।”
लड़की मुस्कुराई।
उसने कहा —
“पर मेरे पास तो कलम नहीं है।”
नीली हवा फुसफुसाई —
> “तू ही कलम है।”
और उसी क्षण,
नीली रोशनी फिर से पूरे कमरे में फैल गई।
कहानी ने एक नया लेखक पा लिया था।
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🌙 एपिसोड 44 समाप्त
🕯️ आगामी एपिसोड 45 — “जब कलम ने वक़्त को लिखना शुरू किया”
जहाँ “रूह की कलम” अब समय के नियमों को तोड़ते हुए
भविष्य के पन्नों पर वो लिखेगी,
जो अभी घटा ही नहीं है —
> “कभी-कभी वक़्त भी लेखक के शब्दों में बंध जाता है…”