Yashaswini - 24 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 24

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यशस्विनी - 24

कोरोना महामारी के दौर पर लघु उपन्यास यशस्विनी: अध्याय 24 : सहमा- सहमा सा हर मंज़र 

                       

  अगले दिन यशस्विनी चौराहे के पास निर्धारित स्थान पर पहुंची,जहां छोटे उस्ताद पिंटू से उसकी भेंट हुई थी।पिंटू वहाँ नहीं था।उसकी चलित मास्क की दुकान भी नहीं थी।उसने आसपास के लोगों से पूछने की कोशिश की, लेकिन कोई भी दुकान वाले कुछ बता नहीं पाए। इतना ही कहा,वह लड़का कल तो आया था, लेकिन आज सुबह से नहीं दिखा है।

 

  यशस्विनी का मन कई तरह से सोचने लगा।उसे लगा,हो सकता है वह किसी मुसीबत में हो क्योंकि उसकी मां के पैर में भी हल्का फ्रैक्चर है….. शायद और कोई मुसीबत आ गई हो और बच्चा घर से न निकल पाया हो।दूसरी ओर उसने यह भी सोचा कि हो सकता है, पिंटू बुरे स्वभाव का हो और 500 रुपये मिल जाने के बाद वह फरार हो गया हो। लेकिन इस दूसरे प्रकार की सोच के लिए उसने अगले ही क्षण अपने मन को धिक्कारा। वैसे अपने पैसे के चले जाने का ग़म यशस्विनी को हो ही नहीं सकता था।उसे दुख इस स्थिति में भी होता ... पर केवल इसलिए कि पिंटू ने मेरे विश्वास को तोड़ा है,लेकिन इतने छोटे बच्चे से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं करना सही नहीं था। इसलिए यशस्विनी ने यह निष्कर्ष निकाला कि पिंटू किसी मुसीबत में फंस गया होगा।

  यशस्विनी चौराहे से आगे बढ़ गई। खाद्य सामग्रियों की दुकानों पर भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था। दुकानदारों ने सफेद रंग से जमीन में एक निश्चित दूरी पर अलग-अलग स्थानों में वृत्ताकार पोताई कर दी थी और ग्राहकों को अनिवार्य रूप से इन गोल चिह्नित जगहों पर ही खड़े होने के लिए कहा जा रहा था। सभी ने अनिवार्य रूप से मास्क लगाए हुए थे….

  शहर के स्वयंसेवी संस्थान के लोगों ने श्री कृष्ण प्रेमालय के बच्चों के लिए लगभग एक महीने के राशन की व्यवस्था कर दी थी। अतः महेश बाबा निश्चिंत थे। उनकी टीम कोरोना से लड़ाई में अपना योगदान करने लगी।

14 अप्रैल 2020 को यशस्विनी ने अपनी डायरी में लिखा:-" आज देश में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर कुल 10000 हो गई है। देश में केवल सिक्किम और दादरा नगर हवेली ही ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जो अब तक इस बीमारी से अछूते हैं। यह रोग देश के अनेक हिस्सों में पांव पसार रहा है और प्रधानमंत्री जी ने 3 मई तक फिर से कड़े लॉकडाउन की घोषणा कर दी है। ऐसा लग रहा है कि अगर बीमारी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो अस्पताल में रोगियों को भर्ती करना संभव नहीं होगा …. क्योंकि जगह ही नहीं बचेगी और फिर उन्हें घर पर रखकर ही इलाज करना होगा; लेकिन समस्या तब आएगी जब मरीजों को ऑक्सीजन और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों की आवश्यकता होगी, ऐसी स्थिति में देश को बड़े पैमाने पर वेंटीलेटर्स की आवश्यकता होगी। सरकार बहुत कुछ कर रही है लेकिन अचानक आई इस बीमारी के सामने शायद हम बेबस हो उठते हैं….. भारत की शीर्ष चिकित्सा संस्थान के निदेशक ने टीवी पर कहा है, हमें टेस्टिंग की संख्या बढ़ानी होगी……... ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता है कि इस बीमारी का पीक किस दिन आएगा….. अगर डॉक्टर साहब की बात मानें तो हम लोगों के सामूहिक प्रयास के बीच पीक अर्थात उच्चतम स्तर पर आने के बाद केसेस अपने आप घटने शुरू हो जाएंगे….. यह थोड़ी राहत की बात लग रही थी…. इधर देश में केंद्र सरकार और राज्यों के स्तर पर गरीबों के लिए निःशुल्क राशन की स्कीम लागू की गई है और इसके साथ कार्यकर्ता घर-घर सूखा राशन लेकर भी पहुंच रहे हैं….. अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए अनेक उपायों की तैयारी हो रही है लेकिन डर इसी बात का है कि ये सारी चीजें जब अनुपालन में आएंगी तो कोरोना और संक्रमण के भयंकरतम खतरों के बीच होकर….मानवता को कदम रखना होगा…. मानवता को आगे बढ़ना ही होगा….. यह सोचकर हम लापरवाही नहीं बरत सकते कि यह बीमारी मुझे होगी ही नहीं…..."

   

    यशस्विनी ने अपनी डायरी में आगे लिखा," अपने 157 सालों के इतिहास में भारतीय रेल के पहिए पहली बार थमे और देश की यह जीवन रेखा और इसका जाल पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया…. इससे अपने घर लौटने को बेचैन श्रमिकों को पूरी तरह बसों पर ही निर्भर होना पड़ा है….. लेकिन बसे हैं कि वे भी नहीं चल रही हैं…. कहीं किसी बस के संचालन की घोषणा होती है या केवल अफवाह फैलती है, तो हजारों की भीड़ वहां पहुंच जाती है……."

दिन पर दिन बीतते गए। यशस्विनी की डायरी के पन्ने भरते गए…. लंबे लॉकडाउन का दुष्परिणाम भी देखने को मिला लेकिन आखिर किया भी क्या जा सकता था…. इधर कुआं…. उधर खाई….. लॉकडाउन को लेकर अपने-अपने तर्क थे…. अगर लॉकडाउन नहीं किया जाता तो न जाने कोरोना के मामले 1 से 2 महीने में ही कहां से कहां पहुंच जाते और देश एक बहुत बड़ा तबाही का केंद्र बन जाता…. वहीं इसका समर्थन नहीं करने वालों के भी अपने तर्क हैं…..।

  

यशस्विनी ने डायरी में आगे लिखा…. पिछले 1 मई से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन 17 मई तक बढ़ा दिया गया है…. ….सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों में टीवी देख रहे लोगों को यह बात आश्चर्य में डालती है कि लोगों ने कोरोना  प्रोटोकॉल तोड़ा और उन्होंने बिना सोशल डिस्टेंसिंग के बस अड्डों और अन्य जगहों पर भीड़ लगाई हुई है और अनेक श्रमिक पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों को लौटने के लिए चल पड़े हैं... कुछ लोग कहते हैं, ये लोग मूर्खता क्यों कर रहे हैं,क्या वे जहां रहते हैं,वहां उनके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है, क्या वहां सरकारी मशीनरी और स्वयंसेवी संस्थाएं नहीं हैं….. मेरा अनुमान है कि उन लोगों की स्थिति वही लोग समझ सकते हैं ….शायद कंपनी वाले और नियोक्ता कितने दिनों तक अपने बंद काम के लिए मजदूरों को भुगतान करेंगे और बड़े महानगरों में लोग चालों में रहते हैं…. जहां एक ही कमरे में अनेक लोग शिफ्टवाइज रहते हैं…. सोते हैं…... एक सोता है तो दूसरे के कारखाने में जाने और काम करने का समय होता है…. जब वह लौटता है तो सोए हुए व्यक्ति के घर से निकलने का समय हो जाता है…. अब ये सभी लोग एक साथ घर में रहेंगे तो जगह कहां होगी?…... घर लौटने के लिए ट्रेन की पटरियों का इस्तेमाल करने वाले लोगों के दुर्घटना का शिकार होने के कारुणिक दृश्यों को देखकर मैं विचलित हो जाती हूं…... हे बांके बिहारी जी, मानवता पर यह कैसा संकट है?"

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय